सिस्टम को चक्कर में डाले रखते हैं सत्ता पर काबिज ‘अपराधी’

punjabkesari.in Saturday, Dec 08, 2018 - 04:53 AM (IST)

ये लोग रसूख वाले हैं, इनके पास बहुत पैसा है। मामले चाहे आपराधिक भी हैं, तो भी वकील बड़े कर लेते हैं, ताकि दशकों तक केस लटकते रहने पर ये सत्ता का सुख भोगते रहें। सिस्टम में चोर छिद्र इतने हैं कि आप इन रसूखदारों को किसी भी तरह हरा नहीं सकते, लिहाजा आज देश की जो हालत है, जिस तरह अपराध बढ़े हैं, बुलंदशहर वाली घटना से ही उसका अंदाजा लगा लें। 

पुलिस ही यदि सुरक्षित नहीं तो आम आदमी का क्या बनेगा? फिर यदि ये सत्ता के सिर पर बैठे लोग अपराधी हैं तो उनके नीचे वालों के हौसले भी बढऩे ही हैं। वे भी वही करेंगे जो उनके आका करते हैं। जब यह एक तरह का रुझान ही बन जाएगा तो देश में नैतिक गिरावट तो आनी ही है। इस गिरावट से मानवता के मुद्दे कहीं अलग रह जाते हैं और राजनीति रह जाती है एक-दूसरे पर घटिया आरोप लगाने की। फिर कोई भी प्रधानमंत्री के पद की शान, गौरव नहीं देखता। कोई मंत्री अपने ही मुख्यमंत्री को यहां तक कहने लग पड़ता है कि ‘कौन-सा कैप्टन’? बाद में चाहे उस कैप्टन को बाप कहना पड़ जाए। 

भारतीय राजनीति के मामले में यह जो मामला इन दिनों राजनीतिक अपराधियों से केसों वाला उठा है, जिसे माननीय सुप्रीम कोर्ट ने प्राथमिकता देने को कहा है, बहुत ही भड़काऊ है और हमारे सामाजिक, राजनीतिक तथा न्यायिक ढांचे पर बहुत बड़े प्रश्र खड़े करने वाला है क्योंकि इस समस्या की परतें बहुत हैं। इसकी जड़ें यहां तक फैलती हैं कि हम सांस्कृतिक तौर पर भी पतन की ओर चलने लगते हैं। यदि आने वाली पीढिय़ां इतने नीचे सांस्कृतिक ढांचे की होंगी तो वे न केवल नैतिक मूल्यविहीन होंगी बल्कि कई किस्म की मानसिक बुराइयां साथ लेकर ही पैदा होंगी। यह किसी भी देश के लिए बड़े खतरे की घंटी हो सकती है। 

सत्ताधारियों के विरुद्ध 4122 आपराधिक मामले लम्बित 
माननीय सुप्रीम कोर्ट यह ध्यान में लाई है कि कैसे देश में गत तीन दशकों से वर्तमान तथा पूर्व विधायकों, सांसदों के विरुद्ध करीब 4122 आपराधिक मामले लम्बित हैं। जो रिपोर्ट अदालत ने तैयार करवाई है, उसके अनुसार 264 मामले तो वही बनते हैं जिन पर विभिन्न हाईकोर्टों ने रोक लगा दी है। ऐसे ही 2324 सांसदों, विधायकों तथा 1675 पूर्व सांसदों, विधायकों पर वर्तमान में आपराधिक मामले चल रहे हैं। आपको हैरानी होगी कि निचली अदालतों में इन मामलों पर सुनवाई इतनी धीमी है कि ये केस  दशकों से लटके पड़े हैं। असल में समस्या क्या है?

समस्या यह है कि ये लोग सत्ता में हैं, पैसे वाले हैं, सिस्टम की सारी बारीकियां जानते हैं तथा सिस्टम के सभी कलपुर्जे  इनसे ऊर्जा लेकर चलते हैं। सभी जगह तो इनके प्रभाव वाले लोग बैठे हैं, वे चुप हो जाते हैं, गवाह मुकर जाते हैं, मर जाते हैं, केस ठंडे बस्ते में और खुद सत्ता के गलियारों में। इस सिलसिले में दूर क्या जाना, हमारे पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह के खिलाफ 2007 से भ्रष्टाचार का मामला लम्बित पड़ा है। इस मामले में अभी तक आरोप पत्र दाखिल नहीं किया गया। कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बी.एस. येद्दियुरप्पा के विरुद्ध 18 मामले दर्ज हैं। इनमें से भी 10 मामले वे हैं, जिनमें उनको उम्रकैद तक की सजा हो सकती है। इसके बावजूद उनके विरुद्ध आरोपपत्र दाखिल नहीं किया गया। ऐेसे ही केरल के विधायक एम.एम. मणि के विरुद्ध 1982 में हत्या का मामला दर्ज किया गया था। 

आप हैरान होंगे कि इस मामले का ट्रायल भी शुरू नहीं हुआ। पूर्व सांसद अतीक अहमद के विरुद्ध 22 मामले चल रहे हैं। इनमें से 10 हत्या के मामले हैं। इन मामलों को लटकते लगभग 16 वर्ष हो चले हैं। ओडिशा के चार विधायकों पर 100 से अधिक आपराधिक मामले दर्ज हैं। इस सूरतेहाल को हम कैसे देख सकते हैं? इन तथ्यों का एक पहलू यह भी है कि माननीय सुप्रीम कोर्ट ने ये मामले बिहार तथा केरल को जल्द निपटाने को कहा है, विशेष तौर पर उम्रकैद तक की सजा वाले मामलों को, क्योंकि अकेले केरल में ही इन मामलों की गिनती 312 है तथा बिहार में 304 लेकिन ये मामले सारे देश में ही महत्व रखते हैं। इसलिए सभी राज्यों में ये ट्रायल तेज होने चाहिएं। 

अपराध हमारी संस्कृति बना
अब संकट की गहराई मात्र इतनी ही नहीं, इससे कहीं अधिक है क्योंकि इन मामलों में लगातार वृद्धि हमारी राजनीतिक पहचान बन रही है। यह एक तरह का रुझान ही बन गया है। पार्टियां भी ऐसे लोगों को प्राथमिकता दे रही हैं। हमारी सांस्कृतिक पृष्ठभूमि ऐसे व्यवहार को रद्द करने वाली है परंतु यदि यह हमारी संस्कृति ही बनने जा रही है तो लोगों के मनों में पैदा असुरक्षा की भावना किसी भी तरीके से कम नहीं होगी। हम 24 घंटे तनाव में रहने लगे हैं। हमारी बच्चियां सहमी हुई हैं। हमने एक बीमार पीढ़ी पैदा कर ली है, मानसिक तौर पर बीमार तथा सहमी हुई। यह सहम दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है। इस संकट का एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू, जिस पर ध्यान दिया जाना चाहिए, यह है कि ऐसे माहौल में जनमुद्दों पर न कोई नजर डालता है और न ही उन्हें उभारना चाहता है। आज पंजाब में बेरोजगारी सबसे बड़ी समस्या है, कैंसर उससे भी बड़ी।

शिक्षा के क्षेत्र में जो गिरावट आई है वह सबके सामने है। आर्थिक तौर पर पंजाब के लोगों की कमर टूट गई है। हजारों की संख्या में उद्योग हिजरत कर गए हैं। आज हमारे राजनीतिक दलों के मुद्दे क्या हैं? आज कांग्रेस का मुद्दा है ‘पंजाब दा कैप्टन, साडा कैप्टन’, अर्थात केवल आंतरिक लड़ाई। अकाली दल का मुद्दा क्या है? ‘अकाली बनाम टकसाली’, केवल अंदरूनी लड़ाई। भाजपा कहीं नजर नहीं आ रही। उसका जैसे पंजाब से कोई नाता ही नहीं है। सुखपाल खैहरा धड़े का मुद्दा क्या है? ‘इंसाफ मार्च’। किससे, कैसा इंसाफ? कोई पता नहीं। कम्युनिस्ट धड़े कहीं नजर नहीं आते, बहुजन समाज पार्टी के पास कोई लीडर नहीं दिखाई देता। उनकी दलितों के मुद्दों बारे समझ भी जाती रही। 

आम आदमी पार्टी के भगवंत मान लतीफों के अलावा कुछ बोलते ही नहीं। वैसे भी आम आदमी पार्टी का पंजाब से लगभग सफाया हो गया है। बैंस भाइयों की राजनीति ‘स्टिंग ’ वाली है। वे क्या सिद्ध करना चाहते हैं, यह कभी भी स्पष्ट नहीं हुआ। फिर ऐेसे अंधेरे समय में पंजाबी व्यक्ति किससे उम्मीद रखे? वह तो सहमा बैठा है लेकिन ऐसा हरगिज नहीं है कि पंजाब ने पहले ऐसे सहम नहीं देखे। देखे हैं और उनसे उबरा भी है। अब भी उसके उभार की उम्मीद की जा सकती है क्योंकि अंधेरे के बाद सुबह होनी ही होती है। यह प्रकृति का नियम है तथा पंजाबियों का भाग्य।-देसराज काली(हरफ-हकीकी)


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Pardeep

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