मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव किसान और नौजवान का गुस्सा क्या रंग लाएगा

punjabkesari.in Wednesday, Nov 21, 2018 - 04:18 AM (IST)

मध्य प्रदेश के दमोह की कृषि उपज मंडी में उड़द दाल के ढेर ही ढेर लगे थे। नीलामी हो रही थी। खराब किस्म की उड़द के 3000 प्रति किं्वटल के भाव लग रहे थे तो ठीक-ठाक किस्म के 4000 तक मिल रहे थे। उड़द का न्यूनतम समर्थन मूल्य 5600 रुपए है और सरकारी खरीद शुरू नहीं हुई है। जाहिर है कि किसान गुस्से में थे कि कहां तो मोदी सरकार ने एम.एस.पी. पर 50 फीसदी मुनाफा देने की बात की थी और कहां एम.एस.पी. से 40 फीसदी कम पर दाल बेचनी पड़ रही है। 

यहीं मिले एक किसान वीरेन्द्र पाल। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को वोट नहीं देने की बात करने लगे। कहने लगे कि कांग्रेस ने कर्जा माफ करने की बात की है और इस बार वोट उसे ही मिलेगा। वीरेन्द्र का आगे कहना था कि पिछले साल का भावांतर का पैसा भी अभी तक नहीं मिला है। कुछ अन्य किसानों से बात होने लगी और वे सब भी आमतौर पर खफा दिखे। 

करीब 5 मिनट बाद ही वीरेन्द्र पाल हमारे पास आए और मोबाइल दिखा-दिखा कर शिवराज सिंह सरकार की तारीफ करने लगे। कहने लगे कि वोट तो शिवराज को ही मिलेगा। बदलाव की बात करने वाले वीरेन्द्र की 5 मिनट में बदल जाने की वजह पूछी तो बताया कि मोबाइल पर सूचना आई है। पिछले साल के भावांतर के उनके एक लाख 70 हजार बकाया थे जो अभी-अभी बैंक में जमा हो गए हैं। 

मुआवजा व सबसिडी को लेकर नाराजगी
दमोह के अलावा सागर, पन्ना, सतना, छतरपुर, खजुराहो, आगर, मालवा, मंदसौर, उज्जैन, शाजापुर, रतलाम यानी निमाड़ मालवा और बुंदेलखंड इलाकों में करीब 3 हजार किलोमीटर घूमने के बाद हर जगह वीरेन्द्र पाल जैसे किसानों के गुस्से का सामना हुआ। जिनका बकाया मिल गया वे खुश हैं, जिसकी फसल सरकारी खरीद में बिक गई वह प्रसन्न है, जिसकी सोयाबीन की फसल अच्छी निकली वह मस्त है और जिसका बकाया अटका हुआ है, सरकारी खरीद में जिसकी फसल बिकी नहीं, जिसकी फसल बैठ गई और फसल बीमा योजना के तहत बीमा करवाने के बाद भी मुआवजा या तो मिला नहीं या फिर आधा अधूरा ही मिला, वह बदलाव की बात कर रहा है। 

वैसे नाराज किसानों की संख्या ज्यादा है। शाजापुर में संतरा उगाने वाले किसानों का कहना है कि पहले उन्हें 5,000 रुपए प्रति बीघा सबसिडी मिलती थी लेकिन शिवराज सिंह सरकार ने 2 साल पहले इसे बंद कर दिया। आगर में तो एक संतरा उत्पादक किसान ने इससे दुखी होकर खेती करना ही छोड़ दिया और अब आगर में बस स्टैंड के पास चाय-समोसे का रेस्तरां चला रहे हैं। किसानों का यह भी कहना है कि फसल बीमा योजना के तहत संतरे का 4 फीसदी की दर से बीमा करवाया था लेकिन पिछले साल फसल हुई तो न तो सरकार ने गिरदावरी करवाई और न ही बीमा कम्पनी ने एक पाई ही दी। कुल मिलाकर फसल बीमा योजना में धोखा खाने वाले किसानों की तादाद ज्यादा दिखी। 

एक खास बात देखने में आई कि जिन किसानों को आवास योजना के तहत घर मिला है वे बेहद खुश हैं और वोट देकर अहसान भी चुका रहे हैं। निमाड़ मालवा ही पिछले साल जून में किसानों के उग्र आंदोलन का केन्द्र रहा था। मंदसौर से कुछ आगे सड़क किनारे आशीष पाटीदार की मूॢत लगी थी। 17 साल का आशीष भी उन किसानों में शामिल था जिन पर पुलिस ने पिछले साल जून में गोली चलाई थी, जिसमें आशीष सहित 5 लोग मारे गए थे। आशीष की मां अलका पाटीदार मूॢत की सफाई कर रही थी। उनका कहना था कि बेटे की कुर्बानी बेकार गई। न तो किसानों को फसल का पूरा पैसा मिल रहा है और न ही सरकारी खरीद पर ही सोयाबीन, मक्का, दालें खरीदी जा रही हैं। अलका का कहना था कि फसल बीमा योजना में भी किसानों के बीमे का हिस्सा जबरन काट लिया जाता है लेकिन फसल खराब होने की सूरत में मुआवजा नहीं मिल पाता है। 

आशीष के दादा चल नहीं पाते। कहने लगे कि खेती करना घाटे का सौदा हो गया है और सरकार चाहे कांग्रेस की हो या भाजपा की, हर कोई किसान को सिर्फ वोटों के रूप में लेता है। दादा को कांग्रेस के उस वायदे पर भी यकीन नहीं है जिसमें राहुल गांधी ने चुनाव जीतने के 10 दिनों के भीतर कर्जा माफ करने की बात कही है। आशीष के परिजनों को शिवराज सिंह सरकार ने एक करोड़ रुपए का मुआवजा और एक सदस्य को नौकरी देने की बात कही थी और इस वायदे को निभाया गया है। जो दो अन्य किसान मारे गए थे, उनकी विधवाएं जरूर मुआवजा लेने के 6 महीने बाद दूसरी जगह शादी रचा बैठीं और मृतक किसानों के मां-बाप मुआवजे तक से वंचित रह गए। 

शिवराज व राहुल के वायदों पर संदेह
किसानों के साथ ही नौजवान भी नाराज दिखाई देते हैं। युवा वर्ग का कहना है कि शिवराज सरकार के समय सरकारी नौकरियों में भर्ती बहुत कम हुई और अब वह 2 लाख नौकरियां देने का वायदा कर रही है जिस पर यकीन नहीं किया जा सकता। राहुल गांधी की उस घोषणा पर युवा संदेह जताते हैं जिसमें बेरोजगारों को 10,000 रुपए बेरोजगारी भत्ता देने की बात की गई है। रतलाम में नमकीन खरीदने आए नौजवान अमित का कहना था कि युवा को नौकरी चाहिए, भीख का भत्ता नहीं। रतलाम के अलावा मंदसौर से लेकर पन्ना-सागर तक नौजवान तीखे स्वर में अपना गुस्सा जाहिर करते नजर आए। कुछ का कहना था कि आरक्षण आॢथक आधार पर होना चाहिए और यह काम सिर्फ मोदी सरकार ही कर सकती थी जो खुद जातिवाद के खेल में फंस गई है। कुछ का आक्रोश है कि युवाओं के लिए आगे बढऩे के मौके कम होते जा रहे हैं। हैरानी की बात है कि कम लोगों ने ही प्रधानमंत्री मुद्रा योजना का नाम सुना है। 

नेताओं की सम्पत्ति कैसे दोगुनी-तिगुनी हो जाती है
वैसे रतलाम में महालक्ष्मी मंदिर में दिलचस्प कहानी देखने को मिली। यहां दीवाली पर लोग नकदी, सोना, चांदी, जेवरात मंदिर में 5 दिनों के लिए रख देते हैं। मान्यता है कि पैसा रखने से बरकत होती है और एक साल में ही पैसा दोगुना हो जाता है। इस बार करीब सवा सौ करोड़ रुपए इस तरह रखा गया लेकिन पैसा वापस लेने की बारी आई तो आचार संहिता आड़े आ गई। प्रशासन ने कह दिया कि 50,000 से ज्यादा पैसा रखने वालों को आय का हिसाब देना पड़ेगा। जब हम मंदिर पहुंचे तो प्रशासन व पुलिस के अधिकारी पुजारी के साथ बैठ कर किसका कितना पैसा की सूची बना रहे थे और पैसा रखने वालों को उस आय का हिसाब देना पड़ रहा था। वहीं कुछ का कहना था कि नेता तो मंदिर में पैसा रखने नहीं आते लेकिन 5 साल बाद चुनाव का पर्चा भरते समय उनकी संपत्ति दोगुनी-तिगुनी कहां से हो जाती है। 

निमाड़ मालवा की 66 सीटों में से पिछली बार भाजपा को 56 और कांग्रेस को 9 सीटें मिली थीं। इसी तरह बुंदेलखंड की 26 सीटों में से भाजपा को 20 और कांग्रेस को 6 सीटें मिली थीं। कहा जाता है जो ये दो इलाके जीतता है वह मध्य प्रदेश जीतता है। लेकिन इस बार जहां-जहां हमारा जाना हुआ, हर जगह भाजपा एक-दो सीटें गंवाती नजर आ रही थी। ऐसा स्थानीय पत्रकारों का कहना था। हमने जो देखा और जो पत्रकारों ने कहा, उससे साफ है कि भाजपा इन इलाकों की बहुत सी सीटों पर मुश्किल चुनाव लड़ रही है।-विजय विद्रोही


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Pardeep

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