जोगी के क्षेत्र में होगी निर्णायक जंग

punjabkesari.in Monday, Nov 19, 2018 - 05:01 AM (IST)

छत्तीसगढ़ में अजीत जोगी और मायावती के गठबंधन के बाद यह समझा जा रहा था कि इस गठबंधन से भाजपा को लाभ मिलेगा परन्तु बाद में मायावती ने घोषणा की कि वह चुनाव के बाद कांग्रेस और भाजपा में से किसी का भी समर्थन  नहीं करेंगी। जोगी के मजबूत गढ़ सुुरगुजा में उनकी पकड़ कमजोर पड़ गई है, जहां 14 विधानसभा सीटें हैं तथा यह क्षेत्र कांग्रेस और भाजपा के लिए निर्णायक होगा। पिछले चुनाव में भाजपा और कांग्रेस को इस क्षेत्र में 7-7 सीटें मिली थीं।

सुरगुजा में 45 प्रतिशत जनसंख्या आदिवासी जबकि 40 प्रतिशत ओ.बी.सी. है। यहां पर आदिवासी ज्यादातर ईसाई हैं और वे पारम्परिक तौर पर जोगी के कारण कांग्रेस के समर्थक रहे हैं। ओ.बी.सी. में साहु और कुरमी जातियों की संख्या अधिक है। इनमें साहु भाजपा समर्थक रहे हैं जबकि कुरमियों ने कांग्रेस का साथ दिया है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि सुरगुजा क्षेत्र में जाति अहम भूमिका निभाती है और यह दोनों पार्टियों के टिकट वितरण पैट्रर्न से स्पष्ट हो जाएगा। जोगी और नेता प्रतिपक्ष टी.एस. सिंह देयो इस क्षेत्र से संबंध रखते हैं तथा रमन सिंह सरकार के दो मंत्री भी इसी क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे हैं। यहां वर्तमान विधायकों और भाजपा सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर है, जिसका लाभ कांग्रेस को मिल सकता है। 

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृह मंत्री राजनाथ सिंह तथा यू.पी. के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस क्षेत्र में भाजपा के लिए प्रचार कर रहे हैं, जबकि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, पंजाब के मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू ने भी इस क्षेत्र में रैलियां की हैं। इस क्षेत्र में भाजपा की जिम्मेदारी संभाल रहे एक नेता अनिल सिंह ने बताया कि वे यहां विकास कार्य के दम पर 10 सीटें जीतेंगे। दूसरी तरफ कांग्रेस नेता टी.एस. सिंह देयो ने इस क्षेत्र में 12 सीटें जीतने तथा भाजपा पर बढ़त बनाने का दावा किया है। 

राजस्थान विधानसभा चुनाव
राजस्थान विधानसभा की 200 सीटों के लिए मतदान 7 दिसम्बर को होगा तथा 19 नवम्बर नामांकन भरने का आखिरी दिन है। दोनों दलों के नेताओं और कार्यकत्र्ताओं में अन्तर्कलह चरम पर है। बसपा में भी अंतर्कलह देखी जा रही है। जिन लोगों को टिकट मिल जाता है, वह पार्टी का पुरजोर समर्थन कर रहे हैं और जिन्हें टिकट नहीं मिल रहा वह दूसरे दलों में शामिल हो गए हैं। शुरू में भाजपा ने यह निर्णय लिया था कि एक -तिहाई वर्तमान विधायकों को टिकट नहीं दिया जाएगा, जैसा कि उन्होंने मध्य प्रदेश में किया था परन्तु राजस्थान में पार्टी वसुंधरा राजे के कारण इस सिद्धांत पर चलने में विफल रही। इसके परिणामस्वरूप पार्टी हाईकमान ने सारा मामला वसुंधरा राजे और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष प्रभु दयाल सैणी पर छोड़ दिया है। 

प्रभु दयाल सैणी को अशोक गहलोत की अनुपस्थिति में सैणी वोट झटकने के लिए अध्यक्ष बनाया गया था परन्तु कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने अशोक गहलोत को विधानसभा चुनाव में उतार कर भाजपा की इस रणनीति को फेल कर दिया है। इसी प्रकार कांग्रेस ने मुख्यमंत्री उम्मीदवार के तौर पर सचिन पायलट का नाम घोषित नहीं किया है, जिसका परिणाम यह हुआ कि उसके मीणा वोट एकजुट रहे हैं क्योंकि सांसद हरीश मीणा पार्टी में शामिल हो गए हैं तथा उनके भाई नमो नारायण मीणा पहले ही कांग्रेस में हैं। अब वसुंधरा समर्थक यह हवा फैला रहे हैं कि किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिलेगा और वसुंधरा राजे एक बार फिर सरकार बनाएंगी, जैसा कि पूर्व में भैरों सिंह शेखावत ने विपक्षी दलों के विधायकों को तोड़कर सरकार बनाई थी। 

उपेन्द्र कुशवाहा की डैडलाइन
आर.एल.एस.पी. प्रमुख उपेन्द्र कुशवाहा ने आखिरकार लोकसभा चुनाव में सम्मानजनक सीटें हासिल करने के लिए भाजपा को 30 नवम्बर तक का समय दे दिया है। अन्यथा ऐसा लगता है कि वह 5 दिसम्बर की बैठक में इस संबंध में अंतिम निर्णय लेंगे। पिछले चुनावों में भाजपा ने उन्हें 3 सीटें दी थीं परन्तु इस बार भाजपा ने 2 सीटों की कोशिश की है। जबकि कुशवाहा का कहना है कि राजद ने उन्हें 5 सीटों की पेशकश की है। 

भाजपा सूत्रों के अनुसार हमने उन्हें दो सीटों की पेशकश की है तथा सांसद अरुण कुमार पहले ही कुशवाहा को छोड़ चुके हैं। इस बीच कुशवाहा ने तेजस्वी यादव और शरद यादव से मुलाकात की है परन्तु अभी उन्होंने इस बात पर निर्णय नहीं लिया है कि वे भाजपा के साथ रहेंगे या महागठबंधन के साथ जाएंगे। वर्तमान में कुशवाहा का कहना है कि वह प्रधानमंत्री के सिवाय किसी और भाजपा नेता से नहीं मिलेंगे तथा मोदी को यह बताना चाहते हैं कि बिहार एन.डी.ए. में एक गुट नरेन्द्र मोदी को दोबारा प्रधानमंत्री के तौर पर देखना चाहता है और आर.एल.एस.पी. के बारे में उन्हें गुमराह कर रहा है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और कुशवाहा दोनों आपस में लड़ रहे हैं जिसके परिणामस्वरूप कुशवाहा भाजपा गठबंधन से बाहर हो गए हैं। 

उत्तराखंड स्थानीय निकाय चुनाव
हालांकि उत्तराखंड एक छोटा राज्य है परन्तु राजनीतिक तौर पर यह काफी सक्रिय है। इन दिनों यहां स्थानीय निकाय चुनाव हो रहे हैं और भाजपा तथा कांग्रेस में अंतर्कलह चरम पर है। विशेष तौर पर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रीतम सिंह खुले तौर पर हरीश रावत और उनके समर्थकों को नजरअंदाज कर रहे हैं। हालांकि राहुल गांधी ने पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत और उनकी टीम को एडजस्ट किया था परंतु राज्य के कांग्रेस नेता चुनाव में हरीश रावत की बात मानने  को तैयार नहीं हैं।

प्रीतम सिंह ने हरीश रावत को स्टार प्रचारक बनाया है परंतु कोई भी जिला इकाई हरीश रावत को प्रचार के लिए नहीं बुला रही है। हरीश रावत का कहना है कि वह प्रचार करने के लिए तैयार हैं परंतु उन्हें कोई भी नहीं बुला रहा। प्रीतम सिंह के समर्थकों का कहना है कि हरीश रावत को बुलाने से चुनाव ब्राह्मण बनाम ठाकुर का रूप ले सकता है। इंदिरा हृदयेश ने भी रावत को हल्द्वानी नहीं बुलाया है। जहां उनका बेटा मेयर का चुनाव लड़ रहा है। इन चुनावों का असर कांग्रेस अध्यक्ष प्रीतम सिंह और भाजपा के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत पर पड़ेगा।-राहिल नोरा चोपड़ा


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Pardeep

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