‘नाम में क्या रखा है’

punjabkesari.in Sunday, Nov 18, 2018 - 05:15 AM (IST)

नाम में क्या रखा है? यदि मैं गलत नहीं हूं तो यह मेरे किशोरावस्था के दिनों की एक लोकप्रिय कार्टून पट्टी का शीर्षक था। यह रविवार के समाचार पत्र में छपता था जिसकी मुझे बहुत बेताबी से प्रतीक्षा रहती थी। मैं सुनिश्चित नहीं हूं कि यह हमेशा बहुत हास्यजनक होता था लेकिन यह अच्छा मनोरंजन करने में कभी असफल नहीं रहता था। 

लगभग 4 शताब्दी पूर्व शेक्सपीयर ने इस प्रश्र का बेहतर उत्तर ढूंढा था। ‘‘नाम में क्या रखा है?’’ उनकी नाजुक जूलियट ने एक बार पूछा था। ‘‘गुलाब को यदि हम कोई और नाम दें तो भी वह उतनी ही अच्छी खुशबू देगा।’’ इससे उसका तात्पर्य यह था कि अधिक स्वीकार्य होने के लिए मोंटेग को कैप्युलेट बनने की जरूरत नहीं थी। दुर्भाग्य से योगी आदित्यनाथ इससे सहमत नहीं। उनके लिए नाम मायने रखते हैं और कार्टून पट्टी की तरह वह उनके पीछे के परिहास को नहीं देख सकते, इसलिए इलाहाबाद, फैजाबाद तथा मुगलसराय जैसे मुस्लिम संबंधों वाले नाम अच्छे योगी के कानों को बेसुरे लगते हैं। अपने मुख्यमंत्री पद की कलम की एक चोट से उन्होंने उनके नाम बदलकर प्रयागराज, अयोध्या तथा दीनदयाल उपाध्याय जंक्शन कर दिए। 

अब ऐसा दिखाई देता है कि योगी एक परम्परा निर्धारित कर सकते थे। संगीत सोम मुजफ्फरनगर का नाम बदल कर लक्ष्मी नगर चाहते हैं, जगन प्रशाद गर्ग का मानना है कि आगरा का नाम भी बदलकर अग्रावन अथवा अग्रावल कर देना चाहिए, जबकि गुजरात के मुख्यमंत्री चाहते हैं कि अहमदाबाद को कर्णावती के नाम से जाना जाए (अंतिम पर मैं असहमत नहीं हो सकता)। इस सब ने 87 वर्षीय जाने-माने इतिहासकार इरफान हबीब को एक शैतानीपूर्ण विचार पेश करने के लिए मजबूर कर दिया। उनका कहना है कि मुंशी, मजूमदार तथा शाह जैसे नामों वाले लोगों को उन्हें अवश्य बदल लेना चाहिए क्योंकि वे इस्लामिक मूल के हैं। उन्होंने कहा कि ‘‘शाह एक फारसी शब्द है न कि संस्कृति का।’’ अत: नए चलन के साथ तालमेल बनाए रखने के लिए अमित शाह सम्भवत: स्वदेशीकरण का विकल्प चुन सकते हैं और खुद को अमित राजा या अमित महाराजा कहला सकते हैं, यदि वह खुद को भव्य दिखाना चाहते हों। 

पहली बार नहीं बदले गए नाम
निश्चित तौर पर ऐसा पहली बार नहीं है कि हमने नाम बदले हैं। इससे पहले मुम्बई, चेन्नई, कोलकाता तथा बेंगलुरु को अलग नामों से जाना जाता था जिन्हें ब्रिटिश समझा जाता था। आज टैलीविजन एंकर नए नाम सही बोलने के प्रयास में अटक जाते हैं जबकि हम बाकियों में से कुछ बड़े मजे से बॉम्बे, मद्रास, कलकत्ता तथा बेंगलूर नामों से चिपके रहते हैं। क्या ऐसा करने में हम गलत हैं? क्या हम ऐसा करके राष्ट्रवाद को रोक रहे हैं तथा साम्राज्यवादी लगाव के साथ धोखा कर रहे हैं? ऐसा जरूरी नहीं। 

अंग्रेजी में, इस बात की परवाह किए बिना कि उन्हें अपनी खुद की भाषा में क्या कहा जाता है, शहरों को उनके नामों के एंग्लो-सैक्सन संस्करण के लिहाज से जाना तथा पुकारा जाता है। इसलिए अंग्रेजी बोलने वाले जर्मन मंचेन को म्यूनिख कहते हैं, मिस्री लोग अल-काहिराह को काहिरा या काएरो, रूसी मोस्क्वा को मास्को जबकि चैक लोग प्राहा को प्राग कहते हैं। निश्चित तौर पर यह पैरिस, रोम, नेपल्स, फ्लोरैंस तथा खुद इजिप्ट के मामले में भी सच है। अरबी में देश का नाम मिस्र है। यद्यपि कोई भी अरब अंग्रेजी बोलते समय उस नाम का इस्तेमाल नहीं करता। 

तो मेरा निष्कर्ष क्या है: उन्हें मराठी, बंगाली तथा कन्नड़ में मुम्बई, कोलकाता तथा बेंगलुरु कहें लेकिन जब हम अंग्रेजी बोलें तो उन्हें बॉम्बे, कलकत्ता तथा बेंगलूर के नामों से स्वीकार करें। चेन्नई, जो एक बिल्कुल अलग नाम है न कि केवल एक उच्चारण, इन सबसे भिन्न है। क्या यह तर्क योगी के काम आएगा? मुझे संदेह है। वह न केवल एक अंग्रेजीकृत उच्चारण को सही कर रहे हैं बल्कि एक नया नाम ही दे रहे हैं। और मुझे यहां संदेह है कि महत्वपूर्ण बात किसी चीज के पहले के मुस्लिम संबंध से दूर होना है। वह इतिहास का परित्याग करना चाहते हैं। वह अतीत को मिटाना चाहते हैं। योगी के लिए उस प्रश्र का उत्तर, जिससे मैंने शुरूआत की थी, यह होगा कि नाम का बहुत महत्व है। रोज को गुलाब कहें तो उसका रंग और चमकदार दिखाई देगा, खुशबू और बढिय़ा होगी तथा इसके कांटे कम नुकीले होंगे। हाय, गुलाब उर्दू का एक शब्द है।-करण थापर


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Pardeep

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