NGT ने ‘पंजाब केसरी’ की प्रदूषण के खिलाफ मुहिम पर लगाई मोहर

punjabkesari.in Thursday, Nov 15, 2018 - 09:37 AM (IST)

लुधियाना (धीमान): पंजाब में फैल रहे प्रदूषण के खिलाफ पंजाब केसरी ने एक मुहिम शुरू की थी, जिसमें बताया गया था कि पंजाब सरकार और उसके सारे विभागों, जिसमें नगर निगम, सीवरेज बोर्ड, पंजाब प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड आदि शामिल हैं, की लापरवाही के कारण पंजाब पर प्रदूषण का कलंक लगा है। इसके अलावा लुधियाना में डाइंग इंडस्ट्री, इलेक्ट्रोप्लेटिंग इंडस्ट्री, डेयरी फार्म और सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट नहीं चलने के कारण प्रदूषण फैल रहा है।

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इसी तरह जालंधर में लेदर इंडस्ट्री और शुगर मिलों द्वारा सीधे फेंके जा रहे पानी को रोक पाने में विभाग नाकाम रहा है। इसके अलावा, सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट भी न चल पाने के कारण पानी जहरीला हो रहा है। इनकी देख-रेख करने और इन्हें संभालने में सरकार के सारे विभाग फेल हो गए हैं। एन.जी.टी. ने भी पंजाब केसरी की मुहिम पर मोहर लगाते हुए माना कि पंजाब सरकार प्रदूषण फैलाने में दोषी है और उस पर 50 करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया। ‘पंजाब केसरी’ की टीम ने उन डाइंग इंडस्ट्री की फोटो भी छापी थी, जिसमें साफ दिखाई दे रहा था कि कैसे बहादुरके रोड व ताजपुर रोड की डाइंग इंडस्ट्री बिना ट्रीट किए पानी बुड्ढे नाले में डाल रही है। प्रदूषण बोर्ड ने औपचारिकता निभाते हुए सिर्फ सैंपल भरे, लेकिन उनकी रिपोर्ट कहां है, किसी को कुछ नहीं पता। 

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सरकार के पास कहां से आएगा 50 करोड़
एन.जी.टी. ने पंजाब सरकार को प्रदूषण फैलाने के लिए दोषी तो ठहरा दिया, लेकिन अब सवाल यह है कि जिस सरकार के पास तनख्वाह देने के लिए पैसे नहीं हैं, वह जुर्माने के 50 करोड़ रुपए कहां से लाएगी? क्या अब लुधियाना व जालंधर नगर निगम के अफसरों की लापरवाही की भरपाई आम जनता से की जाएगी? क्या प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड के अधिकारी, जिन्होंने जेबें गर्म करने के चक्कर में बुड्ढे नाले को प्रदूषित करवा दिया, अब अपनी जेब से जुर्माना देंगे या इंडस्ट्री से वसूलेंगे? आमजन का मानना है कि यह जुर्माना इंडस्ट्री व नगर निगम को अपनी जेब से भरना चाहिए। आम जनता से तो नगर निगम टैक्स ले ही रहा है, परंतु एस.टी.पी. न चलने के लिए आम जनता को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।

डाइंग इंडस्ट्री में रोजाना कितना इस्तेमाल होता है पानी, नहीं है बोर्ड के पास डाटा
डाइंग इंडस्ट्री में सबसे ज्यादा पानी का इस्तेमाल होता है, लेकिन प्रदूषण बोर्ड के पास डाटा नहीं है कि किस डाइंग यूनिट में कितना पानी इस्तेमाल हो रहा है। डाइंग इंडस्ट्री ने बोर्ड से पानी कम इस्तेमाल करने की कंसेंट ले रखी है, लेकिन पानी ज्यादा इस्तेमाल किया जा रहा है, जिस पर बोर्ड की कोई निगरानी नहीं है। 

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इस संबंध में जब डाटा मांगा गया तो 2 माह बीतने के बाद भी न तो चेयरमैन एस.एस. मरवाहा इसे मुहैया करवा पाए और न ही लुधियाना का कोई अधिकारी इसे उपलब्ध करवाने में सक्षम है। 2 माह से एक ही बात की जा रही है कि डाटा बनाया जा रहा है, लेकिन तैयार कितने महीनों में होगा, इसका जवाब चेयरमैन मरवाहा के पास भी नहीं है। ऐसे रवैये से साफ हो रहा है कि बोर्ड के अधिकारी ही नहीं चाहते कि प्रदूषण खत्म हो और डाइंग इंडस्ट्री उनकी जेबें भरती रहे और पानी जहां चाहे वहां फेंकती रहे।

जेड.एल.डी. से ही खत्म हो सकता है डाइंग इंडस्ट्री का जहरीला पानी
लुधियाना में इलेक्ट्रोप्लेटिंग इंडस्ट्री के लिए सरकार ने कॉमन, एफुलेंट ट्रीटमैंट प्लांट लगाकर काफी हद तक प्रदूषण पर नियंत्रण पाया है। वजह, यह प्लांट जीरो लिक्विड डिस्चार्ज पर आधारित है। एन.जी.टी. को सौंपी रिपोर्ट में भी कहा गया है कि जेड.एल.डी. के कारण ही इलेक्ट्रोप्लेटिंग का पानी दोबारा इस्तेमाल हो रहा है और फोकल प्वाइंट की डाइंगों को सी.ई.टी.पी. ऑपरेटर कंपनी उसे पानी ट्रीट करके इस्तेमाल करने को दे रही है, लेकिन बहादुरके रोड और ताजपुर रोड की अधिकतर डाइंगों में एफुलेंट ट्रीटमेंट प्लांट नहीं लगे हैं और जिनमें लगे हैं, वे चल नहीं रहे, जिस कारण पानी बिना ट्रीट किए सीधा बुड्ढे नाले में फेंका जा रहा है।

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इसे तभी रोका जा सकता है, अगर डाइंग इंडस्ट्री की ओर से बनाए जा रहे सी.ई.टी.पी. जेड.एल.डी. तकनीक पर आधारित हो। अन्यथा सी.ई.टी.पी. पर करोड़ों रुपए लगाने का कोई फायदा नहीं। इन सी.ई.टी.पी. का हाल भी सरकारी एस.टी.पी. जैसा होगा। पानी ट्रीट हो भी गया तो जाएगा कहां, यह सबसे बड़ा सवाल बोर्ड के सामने है। इस पर बोर्ड अधिकारी भी सोचने को तैयार नहीं। बता दें कि प्रदूषण बोर्ड के अधिकारी 10 साल में यह तय नहीं कर पाए कि डाइंग इंडस्ट्री को कौन-सी तकनीक को इस्तेमाल में लाना चाहिए। 

प्रदूषण बोर्ड के चेयरमैन मरवाहा के पास नहीं है कोई जवाब
पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के चेयरमैन एस.एस. मरवाहा ने पंजाब केसरी की प्रदूषण संबंधी मुहिम के दौरान कहा था कि वह दो माह के भीतर प्रदूषण संबंधी सारी रिपोर्ट तैयार कर उसे खत्म करने की योजना बनाएंगे, लेकिन अब चेयरमैन मरवाहा को पता ही नहीं चल पा रहा कि प्रदूषण को कैसे नियंत्रित किया जाए। जब उनसे जानने की कोशिश की जाती है तो उन्होंने भी पिछले चेयरमैन की तरह फोन उठाना बंद कर दिया है।

लुधियाना निगम के पास 50 हजार तक नहीं, 50 करोड़ कहां से देंगे : मेयर संधू
निगम के मेयर बलकार सिंह संधू ने कहा कि निगम के पास 50 हजार रुपए देने को नही हैं, 50 करोड़ कहां से देंगे। हमने तीन महीने की तनख्वाह बड़ी मुश्किल से इकट्ठी करके दी है। उनसे जब पूछा गया कि 50 करोड़ तो जुर्माना भरना पड़ेगा, तो आएगा कहां से? इस पर उन्होंने कहा कि मैं इस बारे में कुछ नहीं कह सकता। यह सब अब सरकार में बैठे ऊपर के लोग जानें।

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क्या कहना है एच.एस. फुलका का

इस संबंध में एच.एस. फुलका ने कहा कि वह एन.जी.टी. में स्टेट ऑफ पंजाब के केस की सुनवाई के संबंध में बतौर वकील पेश हुए थे। वहां यह केस भी शोभा सिंह वर्सेस स्टेट ऑफ पंजाब के साथ सुना जाना था। इनकी सुनवाई करते हुए एन.जी.टी. ने संत सीचेवाल की रिपोर्ट पर पंजाब सरकार को दोषी मानते हुए 50 करोड़ का जुर्माना लगाया। एच. एस. फुलका ने कहा कि हालांकि मैंने वहां इससे अधिक जुर्माना लगाने की अपील की थी। एन.जी.टी. ने माना कि सरकार व उसके विभागीय अधिकारियों की लापरवाही ने सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांटों पर लगाए गए करोड़ों रुपए बर्बाद हो गए हैं। लुधियाना और जालंधर के नगर निगम कमिश्नर व लोकल बॉडी सेक्रेटरी को 22 फरवरी तक प्रदूषण खत्म करने की हिदायत दी गई है, साथ ही कहा गया है कि जुर्माना इकट्ठा कर जमा करवाया जाए। एन.जी.टी. ने कहा कि इंडस्ट्रियल पानी भी जरूरत से ज्यादा सतलुज व ब्यास दरिया में जा रहा है। इसे कैसे रोका जाए, उसकी रिपोर्ट भी सौंपी जाए।     

एन.जी.टी. की जजमेंट अभी हमारे पास नहीं पहुंचीः गर्ग

पी.पी.सी.बी. के मेंबर सेक्रेटरी कुरुनेश गर्ग ने कहा कि एन.जी.टी. की जजमेंट अभी हमारे पास  नहीं पहुंची है। जब पहुंचेगी तब देखेंगे कि कैसे 50 करोड़ के मामले को कैसे हल करना है। दूसरा, इस मामले का उच्च स्तर पर समाधान किया जाएगा।  


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swetha

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