पांच राज्यों के चुनाव मोदी सरकार के लिए ‘प्री-बोर्ड परीक्षा’

punjabkesari.in Thursday, Nov 15, 2018 - 04:04 AM (IST)

इधर स्कूलों में प्री-बोर्ड परीक्षा की तैयारी चल रही है। उधर मोदी सरकार भी पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में अपनी प्री-बोर्ड परीक्षा दे रही है। जब 11 दिसम्बर को इस परीक्षा का परिणाम आएगा तो हमें लोकसभा चुनाव 2019 की एक झांकी जरूर दिख जाएगी। अब तक जो झलक मिली है, उससे भाजपा का विचलित होना स्वाभाविक है। 

पता नहीं क्यों इन चुनावों को लोकसभा चुनाव का ‘‘सैमीफाइनल’’ कहने का चलन हो गया है। मुझे कभी यह मुहावरा समझ नहीं आया या फिर हर विधानसभा चुनाव को केंद्र सरकार पर रैंफरैंडम घोषित कर दिया जाता है। मुझे प्री-बोर्ड का मुहावरा अच्छा लगता है। असली इम्तिहान से पहले का छोटा इम्तिहान, जिसमें तैयारी की जांच हो जाती है, कमजोरी पता लग जाती है, कितने नंबर आ सकते हैं इसका भी आभास हो जाता है। पांच राज्यों के चुनाव भी ऐसी ही एक परीक्षा है। इनकी जीत-हार से सीधे-सीधे 2019 लोकसभा चुनाव का परिणाम तय होने वाला नहीं है लेकिन अगर इन चुनावों के रुझानों को बारीकी से देखें तो इनसे लोकसभा चुनाव की एक झलक मिल सकती है। 

मिजोरम का चुनाव इतना अनूठा है कि उससे बाकी देश तो छोडि़ए, पूर्वोत्तर की राजनीति का भी अनुमान नहीं लगता। तेलंगाना के स्वतंत्र राज्य बनने के बाद यह पहला चुनाव है। बेशक यह एक ऐतिहासिक चुनाव है लेकिन तेलंगाना की विशिष्ट परिस्थिति से बंधा चुनाव है। इसके रुझान से पड़ोसी आंध्र प्रदेश की राजनीति की झलक भी नहीं मिलती। बस इतना जरूर पूर्वानुमान लगा सकते हैं कि राज्य की 17 लोकसभा सीटें किसकी झोली में जाएंगी। लेकिन यहां भाजपा या कांग्रेस के लिए ज्यादा हारने-जीतने को है नहीं। बस यह देख सकते हैं कि क्या कांग्रेस तेदेपा और तेलंगाना जन समिति के साथ अपने बड़े गठबंधन को चुनावी युद्ध में निभा ले जाएगी? 

सबसे महत्वपूर्ण राजस्थान व छत्तीसगढ़ 
लोकसभा चुनाव की दृष्टि से इस बार सबसे महत्वपूर्ण चुनाव राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के हैं। इन तीन राज्यों में कुल 65 लोकसभा सीटें हैं। पिछली बार भाजपा इनमें से 62 सीटों पर विजयी हुई थी। इन राज्यों में अपनी अधिकांश सीटें बचा सकना भाजपा की राष्ट्रीय सफलता के लिए अनिवार्य है। इन तीनों राज्यों के परिणाम से यह झलक भी मिल जाएगी कि 2014 में पूरी हिंदी पट्टी में चली मोदी लहर क्या अब भी बरकरार है? 

फिलहाल तो ऐसा दिखाई नहीं देता। अब तक कई जनमत सर्वेक्षण आ गए हैं। चुनाव की कई भविष्यवाणियां हो चुकी हैं। पिछले कुछ समय से इन भविष्यवाणियों की साख इतनी गिरी है कि इनके आधार पर कुछ भी कहने में डर लगता है लेकिन अगर आप चुनाव से पहले सीटों की सटीक भविष्यवाणी का चक्कर छोड़ दें तो ये तमाम सर्वेक्षण इतना जरूर बताते हैं कि हवा का रुख किस ओर है, जनता का मत क्या है? 

राजस्थान में हर सर्वेक्षण, हर राजनीतिक समीक्षक और हर पनवाड़ी एक ही बात कह रहा है-भाजपा हारेगी और बहुत बुरी तरह से हारेगी। वसुंधरा राजे की सरकार आज उतनी ही घोर अलोकप्रिय है जितनी 2013 में चुनाव हारने से पहले अशोक गहलोत सरकार हो चुकी थी। सिर्फ  33 प्रतिशत जनता चाहती है कि भाजपा सरकार को दोबारा मौका दिया जाए जबकि 44 प्रतिशत इस सरकार को हटाने के पक्ष में हैं। क्या विधानसभा चुनाव में हारने के बाद भाजपा लोकसभा चुनाव में कुछ सीटें बचा पाएगी? यहां 1999 के लोकसभा चुनाव को छोड़कर विधानसभा चुनाव के विजेता को लोकसभा चुनाव में भी अधिकांश सीटें मिली हैं। 

मध्यप्रदेश में मुकाबला कांटे का
मध्यप्रदेश में अलग-अलग सर्वेक्षणों की भविष्यवाणियां अलग-अलग दिशा में हैं लेकिन दो बात पर सब सर्वेक्षण सहमत हैं : मुकाबला कांटे का है और पहले की तुलना में शिवराज सिंह चौहान की सरकार की लोकप्रियता बहुत घटी है। सी.एस.डी.एस. ने जब 2013 के चुनाव से पहले मध्यप्रदेश में सर्वेक्षण किया था तो 53 प्रतिशत लोग भाजपा सरकार की वापसी चाहते थे और सिर्फ  20 प्रतिशत उसे हटाना चाहते थे। इस बार अक्तूबर के महीने में 45 प्रतिशत सरकार की वापसी के हक में थे तो 43 प्रतिशत भाजपा सरकार को हटाने का मूड बना चुके थे। शहरों में बड़ी जीत दोहराने के बावजूद भाजपा अगर ग्रामीण इलाकों में पीछे रही तो बहुमत के आंकड़े को छू नहीं पाएगी। जो भी हो, यह तो संभव नहीं दिखता कि भाजपा 2014 के चुनाव में यहां 29 में से 27 लोकसभा सीटें जीतने के अपने रिकॉर्ड को दोहरा पाएगी। 

छत्तीसगढ़ में सर्वेक्षण या तो भाजपा की बड़ी जीत की बात कह रहे हैं या फिर उसकी छोटी हार की। पिछले दोनों विधानसभा चुनावों में भाजपा हार से बाल-बाल बची है। इस बार दोनों तरह के सर्वेक्षण यह बात मान रहे हैं कि पिछली बार की तुलना में रमन सिंह सरकार की लोकप्रियता घटी है। हर कोई यह स्वीकार कर रहा है कि अगर भाजपा जीत जाती है तो उसका श्रेय अजीत जोगी और बसपा गठजोड़ द्वारा कांग्रेस के वोट में सेंधमारी को जाएगा। अगर ऐसा होता है तो लोकसभा चुनाव में भाजपा किस तरह अपनी दस सीटें बचाएगी? 

लोकसभा चुनाव पर सीधा असर पड़ेगा
इन चुनावों को प्री-बोर्ड कहने में एक ही दिक्कत है। प्री-बोर्ड परीक्षा के नंबर असली परीक्षा में नहीं जुड़ते लेकिन पांच राज्यों के चुनाव का लोकसभा चुनाव पर सीधा असर भी पड़ेगा। अगर भाजपा तीनों राज्य जीत जाती है तो जाहिर है लोकसभा चुनाव के लिए उसका आत्मविश्वास और देशभर में हवा चलाने की क्षमता बहुत बढ़ जाएगी। लेकिन अगर भाजपा राजस्थान के अलावा एक और राज्य हार जाती है या लगभग हार जाती है तो इससे पूरे देश का राजनीतिक माहौल बदलेगा। विपक्षी दलों के कार्यकत्र्ताओं का उत्साह बढ़ेगा। जो बड़े उद्योगपति अभी भाजपा को छोड़कर किसी विपक्षी को पैसा देने में डर रहे हैं, वे भी अपनी थैली खोलेंगे। आज भाजपा के इशारे पर नाच रहा मीडिया अपनी चाल बदलने को मजबूर होगा। मोदी सरकार का सच आम जनता तक पहुंचना शुरू होगा। अगर ऐसा हुआ तो 2019 चुनाव के समीकरण करिश्माई तरीके से बदल भी सकते हैं।-योगेन्द्र यादव


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Pardeep

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