‘आई.एस.’ किसी भी तरह से इस्लाम का प्रतिनिधित्व नहीं करता

punjabkesari.in Tuesday, Nov 13, 2018 - 04:21 AM (IST)

पिछले दिनों रॉयल स्वीडिश अकादमी ने साल 2018 में शांति प्रयासों के लिए दिए जाने वाले नोबेल पुरस्कार की घोषणा कर दी। इस साल का शांति का नोबेल पुरस्कार डेनिस मुकवेगे और नादिया मुराद को दिया जाएगा। 

नादिया मुराद के नाम की घोषणा होते ही दुनिया के सामने खतरनाक आतंकी संगठन आइसिस (आई.एस.) का वह चेहरा एक बार फिर सामने आया, जिसके बारे में यही मान्यता है कि यह मूल रूप से इस्लाम का प्रतिनिधित्व करता है। नादिया मुराद ईराक के अल्पसंख्यक यजीदी समुदाय से ताल्लुक रखती हैं। नादिया आइसिस द्वारा काफी समय तक बंधक बनाकर रखी गई थीं और इस दौरान उनके साथ कई बार बलात्कार और अन्य तरीकों से शोषण किया गया। नादिया ने ही दुनिया को बताया कि कैसे आइसिस के आतंकी लड़कियों को सैक्स गुलाम बनाकर अपने मंसूबे पूरे करते हैं। दिसम्बर, 2015 में नादिया यूनाइटिड नेशंस की सिक्योरिटी काऊंसिल के सामने पेश हुई थीं। 

नादिया के अनुसार उन्हें और अन्य लड़कियों को अगस्त, 2014 में अगवा कर मोसुल स्थित इस्लामिक कोर्ट में ले जाया गया था, जहां हर महिला की तस्वीर ली जाती थी। महिलाओं की ली गई हजारों तस्वीरों के साथ एक फोन नंबर होता था। यह फोन नंबर उस आतंकी लड़ाके का होता था, जो उस लड़की के लिए जिम्मेदार होता था। तमाम जगह से आइसिस लड़ाके इस्लामिक कोर्ट आते और तस्वीरों को देखकर अपने लिए लड़कियां चुनते। लड़की को पसंद करने वाला लड़ाका लड़की का मोलभाव करता। गोया लड़की नहीं किसी वस्तु का सौदा किया जा रहा हो। खरीदने के बाद फिर लड़की का नया मालिक चाहे उस लड़की को किराए पर दे या अपने किसी परिजन या परिचित को तोहफे में दे दे। 

नादिया ने यू.एन. के सामने बताया था कि आइसिस के आतंकी बेहोश होने तक उनके साथ बलात्कार करते थे। आइसिस ने नादिया और लगभग 150 दूसरी अन्य लड़कियों को भी अगवा किया था। आतंकियों ने करीब 3 माह तक उन सभी को अपना सैक्स स्लेव बनाकर रखा था। यहां यह भी बताते चलें कि आइसिस ने नादिया मुराद के साथ ही उनकी बहन का भी अपहरण किया था। इस दौरान नादिया के 6 भाइयों और उनकी मां को खूंखार जेहादी आतंकियों ने मार डाला था। दोनों बहनों के साथ आतंकियों द्वारा कई बार बलात्कार किया गया। 

वह नादिया ही थीं जिनके जरिए पता चला कि आतंकी सभी लड़कियों को आपस में किसी सामान की तरह बदलते थे। आतंकियों से डरकर कैद की गई कई लड़कियों ने छत से कूदकर जान तक दे दी थी। एक दिन मौका पाकर नादिया किसी तरह कैदखाने से भाग निकलीं और मोसुल के शरणार्थी कैम्प में पहुंचीं। हालांकि यह आतंकियों का खौफ ही है कि नादिया अपने भागने की घटना को विस्तार से जानबूझ कर नहीं बतातीं क्योंकि उन्हें लगता है कि ऐसा करने से बाकी लड़कियों पर खतरा बढ़ सकता है। नादिया ने दुनिया के सभी देशों से अपील की थी कि वे आइसिस का खात्मा करने के लिए आगे आएं। उस आइसिस का, जिसकी हरकतें सरासर गैर-इस्लामी हैं।

आइसिस के जुल्म की कहानी काफी लंबी है। किसी को अगवा करना, उसके परिवार का कत्ल कर देना और अगवा की गई महिलाओं के साथ बलात्कार करना आखिर धर्म के दायरे में कैसे आता है? यह केवल जुल्म है और इतना तो तय है कि कोई जालिम मुसलमान कहलाने लायक हो ही नहीं सकता। नादिया जब मोसुल की गलियों में भाग रही थीं तब उन्होंने एक मुस्लिम परिवार का दरवाजा खटखटाया और उसे आपबीती सुनाई। उसने नादिया को कुर्दिस्तान की सीमा तक पहुंचाने और सुरक्षित निकलने में उनकी मदद की। अपनी जान पर खेलकर मजलूम की हिफाजत करना इस्लाम की सही शिक्षा को दर्शाता है। नेकी की राह पर चलते हुए हर पीड़ित व मजलूम की मदद करना ही इस्लाम का संदेश है, जिसका अनुसरण हर मुसलमान को करना चाहिए। जुल्म का साथ देना या चुप्पी साध लेना जालिम का सहायक होने के समान है। 

आइसिस सहित वे सारे लोग जो अपने कत्ल-ओ-गारत और दहशतगर्दी के कामों को इस्लाम के आदेशानुसार बतलाते हैं, दरअसल पवित्र कुरान और रसूल की तालीमों का अपमान करते हैं क्योंकि कुरान वह ग्रंथ है, जिसने एक कत्ल के अपराध को पूरी इंसानियत के कत्ल करने के अपराध के बराबर रखा और कहा, ‘‘जिसने किसी बेगुनाह का कत्ल किया या जमीन पर फसाद फैलाया तो गोया उसने पूरी इंसानियत का कत्ल किया’’-(अल-कुरान-5:32)। कुरान की एक अन्य आयत में कहा गया है कि ‘किसी जान को कत्ल न करो जिसके कत्ल को अल्लाह ने हराम किया है।’-(अल-कुरान-17:33)। हदीसों में आया है कि ‘ऐ मुसलमानो, जुल्म न करना और खासकर उस व्यक्ति पर कभी अत्याचार मत करना जिसका कोई मददगार न हो क्योंकि जिसका कोई मददगार नहीं होता अल्लाह उसका मददगार होता है।’ 

लेकिन इस्लाम के नाम पर कत्ल-ओ-गारत करने वाले समूह के खिलाफ मुस्लिम मुमालिक की चुप्पी एक तरह से आइसिस का परोक्ष समर्थन है। आज दुनिया के अनेक मुस्लिम शासकों के सामने बेगुनाहों की गर्दनें काटी जा रही हैं, कमजोरों पर जुल्म किया जा रहा है, बेगुनाहों का कत्ल किया जा रहा है, कलेजे चाक किए जा रहे हैं, मगर सब मुसलमान शासक तमाशाई बने हुए हैं। इस्लाम की मान्यता के अनुसार कुरान जिस जगह नाजिल हुआ था, पहले वहां लोग बात-बात पर एक-दूसरे का खून बहा देते थे, लूटमार करते थे। कुरान के अवतरण ने न केवल इस कत्ल-ओ-गारत को नाजायज बताया बल्कि कातिलों के लिए सजा का प्रावधान भी तय किया। 

वे आतंकवादी जो कुरान के मानने वाले होने की बात करते हैं, उन्हें यह जरूर पता होना चाहिए कि इस्लाम ने यह सख्त ताकीद की है कि अल्लाह की बनाई इस धरती पर कोई फसाद न फैलाए। उसकी कुटिल दृष्टि से हिंदुस्तान भी नहीं बचा है। कश्मीर सहित अनेक राज्यों से कई युवा आइसिस में शामिल होकर मुस्लिम समाज को कलंकित कर चुके हैं। अगर सही इस्लाम के वकार और नसीहतों को कायम रखना है तो आइसिस का समूल नाश जरूरी है। पैगम्बर मोहम्मद साहब का फरमान है कि कोई भी व्यक्ति अगर मदद के लिए पुकारे और मुसलमान मदद न करे तो वह मुसलमान नहीं हो सकता और यहां तो न जाने कितनी मासूम आहें-कराहें विश्वभर से आइसिस के खिलाफ मदद की गुहार लगा रही हैं।-सैयद सलमान


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Pardeep

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