Kundli Tv- धनतेरस पर क्यों खरीदे जाते हैं बर्तन

punjabkesari.in Monday, Nov 05, 2018 - 10:24 AM (IST)

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हमारी वैदिक सनातन-संस्कृति इतनी महान है कि हमारे पर्वों में न केवल प्राचीन परम्पराओं का ज्ञान छिपा हुआ है अपितु इसमें लोक कल्याण के कितने ही रहस्य छिपे हुए हैं। आज के भागदौड़ के जीवन में मनुष्य के पास इतना समय ही नहीं है कि वह अपने ग्रंथों में छिपे इस अमूल्य ज्ञान का अध्ययन कर सकें परन्तु यह पर्व न केवल हमें अपनी प्राचीन संस्कृति का स्मरण कराते हैं अपितु हमारे जीवन में नई ऊर्जा, उमंग तथा प्रसन्नता का संचार भी करते हैं। इन पर्वों को मनाने में मनुष्य का स्वयं का कल्याण है। श्रद्धा और प्रेम से इन पर्वों को मना कर हमें भौतिक व आध्यात्मिक दोनों प्रकार के आनंद की प्राप्ति होती है। आज आवश्यकता है अपने बच्चों को इन पर्वों की महत्ता एवं वैज्ञानिक पक्ष से अवगत करवाने की ताकि उन्हें अपनी इस प्राचीन वैदिक सनातन संस्कृति पर गर्व हो।
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कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को धनतेरस के रूप में मनाया जाता है। पुराणों से हमें यह वर्णन प्राप्त होता है कि समुद्र मंथन के समय माता लक्ष्मी का अवतरण कलश के साथ हुआ था। उसी के प्रतीक के रूप में ऐश्वर्य तथा सौभाग्य की प्राप्ति के लिए इस दिन बर्तन खरीदने की परम्परा प्रारम्भ हुई। धनतेरस से दीपावली पर्व प्रारम्भ हो जाता है। आज के दिन से ही दीपावली की सजावट शुरू हो जाती है तथा सायंकाल दीपक जलाकर मां लक्ष्मी का आह्वान किया जाता है।
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कार्तिक कृष्ण पक्ष त्रयोदशी अर्थात धनतेरस के दिन ही भगवान धन्वंतरि का भी जन्म हुआ था। समुद्र मंथन के समय जब भगवान धन्वंतरि प्रकट हुए थे तो उनके हाथों में अमृत से भरा हुआ कलश था। चूंकि भगवान धन्वंतरि भी कलश लेकर प्रकट हुए थे, यह भी इस अवसर पर नए बर्तन खरीदने की परम्परा का हेतु बना। ऐसी मान्यता है कि इस दिन धन रूपी वस्तु खरीदने से धन में तेरह गुणा वृद्धि होती है।
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Niyati Bhandari

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