Kundli Tv- रंभा एकादशी स्पेशल: पढ़ें व्रत कथा

punjabkesari.in Saturday, Nov 03, 2018 - 11:21 AM (IST)

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दिवाली से चार दिन पहले आने वाली कार्तिक कृष्ण एकादशी को रमा एकादशी एवं रंभा एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस दिन श्री हरि विष्णु के संग देवी लक्ष्मी और तुलसी की पूजा का विधान है। चतुर्मास की ये अंतिम एकादशी है इसलिए इसका विशेष महत्व है। इस दिन व्रत रखने से अपार पुण्य की प्राप्ति होती है। अगर किसी कारणवश व्रत न रख सकें तो रंभा एकादशी की व्रत कथा अवश्य पढ़ें-
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रंभा एकादशी की व्रत कथा
प्राचीन काल में एक राजा था मुचुकुन्द वो अपनी प्रजा को पुत्र समान मानता था और राज्य की प्रजा भी उन्हें अपने पिता के रूप में मानती थी।  राजा मुचुकुन्द वैष्ण्व थे और भगवान विष्णु के भक्त थे। वे हर एकादशी का व्रत बड़ी ही निष्ठा और भक्ति से करते थे।  राजा का एकादशी व्रत में विश्वास और श्रद्धा देखकर प्रजा भी एकादशी व्रत करने लगी।   बता दें कि राजा की एक पुत्री भी थी। जिसका नाम चन्द्रभागा था। चन्द्रभागा भी अपने पिता को देखकर एकादशी का व्रत रखने लगी।  जिसके बाद जब वो बड़ी हुई तो उसकी शादी राजा चन्द्रसेन के पुत्र शोभन से हो गई और अपनी पत्नी को व्रत रखते देख शोभन भी एकादशी व्रत रखने लगा कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी आयी तो नियम अनुसार शोभन ने एकादशी का व्रत रखा व्रत के दरान शोभन को भूख लग गयी और वह भूख से व्याकुल हो कर छटपटाने लगा और इस छटपटाहट में भूख से शोभन की मौत हो गयी।
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शोभन की मौत के बाद सभी का बुरा हाल था। इसके बावजूद किसी ने भी एकादशी का व्रत नहीं छोड़ा और व्रत करते रहे। एकादशी के दिन मौत होने की वजह से शोभन को मन्दराचल पर्वत पर स्थित देवनगरी में सुन्दर आवास मिला। वहां उनकी सेवा के लिए रंभा नामक अप्सरा तत्पर तैयार रहती थी।
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एक दिन राजा मुचुकुन्द किसी कारण से मन्दराचल पर गये और उन्होंने शोभन को ठाठ-बाठ में देखा तो आकर रानी और अपनी पुत्री को सारी बातें बताई। चन्द्रभागा पति का ये समाचार सुनकर मन्दराचल पर गयी और अपने पति शोभन के साथ खुशी-खुशी रहने लगी।
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दोस्तों, शोभन के श्रद्धा से एकादशी व्रत करने की वजह से उसे रंभा जैसी अप्सरा से सेवा पाने का मौका मिला इसलिए इसे रंभा एकादशी कहा जाने लगा।
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Niyati Bhandari

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