Kundli Tv- यहां प्रसाद खाने वाली औरतों के साथ होता है कुछ एेसा जानकर हैरान हो जाएंगे आप

punjabkesari.in Friday, Nov 02, 2018 - 04:33 PM (IST)

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भारत देश को देवी-देवताओं की धरती कहा जाता है, जिस कारण इसे पूज्यनीय माना गया है। यहां हर कोने में भगवान के अंश हैं। एेसे ही पूरे भारत में महामाई यानि माता रानी कण-कण में विराजमान हैं। माता के नाम से ही स्पष्ट है कि इनके मंदिरों आदि में  हार-श्रृंगार आदि चढ़ावा ज्यादा चढ़ता होगा। आज हम अापको एक ऐसे ही मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, यहां चढ़ावे में लाल चुनरी, सुहाग और हलवे की जगह जानवरों की भेंट से माता रानी को खुश किया जाता है। आइए जानते हैं इस मंदिर से जुड़ी कुछ और भी दिलचस्प बातें-
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माता के इस द्वार को निरई व निराई माता के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिला से 12 किलोमीटर दूर एक पहाड़ी पर स्थित है। यह श्रद्धालुओं की आस्था का प्रमुख केंद्र है। निरई माता को लगभग 200 सालों से पूजा जा रहा है। इस मंदिर की सबसे अजीब बात यह है कि इस परिसर के दरवाज़े सुबह 4 से 9 बजे के बीच सिर्फ 5 घंटे के लिए ही खोले जाते हैं। इस दौरान यहां भक्तों की भीड़ लग जाती है। लोग कतारों में लगकर मां के दर्शन करते हैं। 
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मां निरई के इस पावन दरबार में सिंदूर, सुहाग, श्रृंगार, कुमकुम, गुलाल, नहीं चढ़ाया जाता है बल्कि यहां माता को नारियल, अगरबत्ती, से माता को खुश किया जाता है। इसके साथ ही यहां बकरों की बलि दी जाती है। लोक मान्यता के अनुसार ऐसा करने से भक्तों की मनोकामना पूरी होती है। कई सालों से चली आ रही प्रथा के अनुसार मनोकामना पूरी होने के बाद मां को बकरे की बलि उपहार के रूप दी जाती है।

इस मंदिर की एक और चौंकाने वाली बात यह है कि यहां चैत्र माह के नवरात्रों में नौ दिन ज्योत स्वयं प्रज्वलित होती है। बता दें कि माता रानी की ये पवित्र जोत बिना तेल और घी के खुद जलती है। ये नज़ारा देखने के लिए लोग दूर-दूर से यहां आते हैं और हैरान रह जाते हैं। यहां तक कि बड़े-बड़े वैज्ञानिक भी इस रहस्य का पता आज तक नहीं लगा पाएं। 
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क्या आपने कभी सुना है कि मां के दरबार में महिलाएं नहीं जा सकती...जी हां निरई माता के इस मंदिर में महिलाओं का जाना और पूजा-पाठ करना वर्जित है। सिर्फ ये ही नहीं बल्कि महिलाओं को यहां का प्रसाद खाने की इज़ाज़त तक भी नहीं है। माना जाता है कि प्रसाद खाने से कुछ अनहोनी होने का डर रहता है। इसलिए केवल पुरुष ही यहां की पूजा-पाठ की रीतियों को निभाते हैं।
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Jyoti

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