एक ऐसी प्रधानमंत्री, इतिहास जिसके पीछे भागता था

punjabkesari.in Thursday, Nov 01, 2018 - 05:10 AM (IST)

जिन्होंने 1966 से 1984 का कालखंड देखा होगा, उन्होंने एक ऐसे प्रधानमंत्री को भी इस दो दशक के समय में अवश्य देखा होगा, इतिहास स्वयं जिसके पीछे-पीछे भागता फिरता था। एक ऐसी महिला प्रधानमंत्री, जो कहती थीं, वह कर गुजरती थीं। इस कालखंड में वही इंदिरा थी वही इंडिया थी। क्या मजाल कि उनके कहे को कोई काट सके, क्या मजाल जो उनके सामने कोई सिर उठा सके। वह नारी होकर भी पुरुषों से अधिक साहसी थीं। ‘आयरन लेडी’ कहलाई जाती थीं वह। चुटकी बजाते ही निर्णय, फिर कोई डर नहीं, कोई चिंता नहीं। 

ऐसी महिला, जिसने 1964 में अपने पिता जवाहर लाल नेहरू के निधन के बाद सोच लिया था कि वह अपने दोनों बेटों संजय गांधी और राजीव गांधी को लेकर इंगलैंड में जाकर बस जाएंगी, 1966 में प्रधानमंत्री क्या बनीं, सभी राजनेता उनकी कार्यशैली को देख दांतों तले उंगलियां दबाने लगे। एक क्रियाशील और अद्भुत व्यक्तित्व की मालिक थीं देश की तीसरी प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी। देश के इतिहास में 18-20 वर्ष की अवधि होती ही क्या है? देश को संवारने-बिगाडऩे या बनाने में सौ साल भी क्या होते हैं? पर इंदिरा गांधी हर पल, हर दिन एक नया इतिहास रचती गईं। 

1966 में प्रधानमंत्री बनते ही सौ साल पुरानी, आजादी के दीवानों की आल इंडिया कांग्रेस को पीछे छोड़ते हुए इंदिरा गांधी ने कांग्रेस को अपने नाम पर इंदिरा कांग्रेस या कांग्रेस (आई) बना लिया। कांग्रेस के धुरंधर नेता वाई.बी. चव्हाण, एस.के. पाटिल, नीलम संजीवा रैड्डी, जगजीवन राम, मोरार जी भाई देसाई, दिनेश सिंह, सी. सुब्रह्मण्यम, फखरुद्दीन अली अहमद, सुचेता कृपलानी, गुलजारी लाल नंदा, इन्द्र कुमार गुजराल, के. कामराज और निजङ्क्षलगप्पा जैसे नेता हत्प्रभ दिखाई देते थे। राष्ट्रपति का चुनाव आया तो अपनी ही पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवार नीलम संजीवा रैड्डी को हरा कर वी.वी. गिरि को जिता दिया। इंदिरा गांधी ने इतिहास ही बदल दिया। सिंडीकेट कांग्रेस पार्टी के पुराने नेताओं ने इंदिरा कांग्रेस के विरुद्ध कांग्रेस (ओ) बना ली। चुनावों में कांग्रेस (ओ) का दिवाला निकल गया और सब कहीं इंदिरा कांग्रेस की ही जय होने लगी। बेचारे पुराने नेता इंदिरा कांग्रेस के उदय के कारण घर बैठ गए। 

मुझे पंजाब के 1966 के हालात याद हैं। एक तरफ अकाली नेता मास्टर तारा सिंह के नेतृत्व में ‘पंजाबी सूबा’ की मांग को लेकर आंदोलन जोरों पर था तो दूसरी तरफ जनसंघ के नेता वीर यज्ञदत्त शर्मा अमृतसर में महापंजाब बनाने के लिए आमरण अनशन पर बैठे  हुए थे। इंदिरा गांधी ने तत्काल भाषायी आधार पर पंजाब, हरियाणा और हिमाचल को बांट कर पंजाब के हालात को शांत किया। पारिवारिक तौर पर स्व. संजय गांधी, जो इंदिरा गांधी के राजनीतिक सहयोगी और लाडले बेटे थे, की विधवा, दो साल के वरुण गांधी की मां मेनका गांधी को घरेलू झगड़े को मिटाने की खातिर एकदम अपने निवास स्थान 1, सफदरजंग, नई दिल्ली से बरतर्फ कर दिया। मेनका गांधी की मां मातेश्वरी आनंद और बहन अम्बिका सोच भी न सकीं कि घर छोडऩे का निर्णय इतनी जल्दी हो जाएगा। प्रैस चिल्लाती रही कि दो वर्ष के वरुण गांधी और बहू मेनका गांधी से इंदिरा गांधी ने अच्छा नहीं किया पर यह कड़वा घूंट भी इंदिरा गांधी चुपके से पी गईं। 

थोड़ा और आगे बढ़ते हैं। भारत में 566 देसी रियासतों के राजा-महाराजाओं को प्रिवीपर्स यानी भत्ते और सुविधाएं मिलते थे कि उन्होंने अपनी रियासतों को हिन्दुस्तान में मिला दिया। इंदिरा गांधी ने सोचा यह प्रिवीपर्स गरीबों पर बोझ है अत: पैन के एक झटके से राजाओं के प्रिवीपर्स बंद कर दिए। गरीब खुश। फिर प्रधानमंत्री ने रुख किया बैंकों की तरफ। तत्काल 14 बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया। इस देश के गरीब और खुश हो गए कि इंदिरा गांधी ने देश के धनवानों पर प्रहार किया। इंदिरा जी प्रचार-प्रसार में लग गईं कि वह देश से गरीबी हटाना चाहती हैं। उन्होंने ऐसा करने के लिए बीस सूत्री कार्यक्रम की घोषणा की। देशवासियों को गरीबी हटाओ का नारा दे दिया। पाकिस्तान बड़ा तीसमार खां बना फिरता था। मुक्तिवाहिनी बना कर पाकिस्तान की कमर तोड़ दी। उसका एक भाग तोड़ कर एक नया देश बंगलादेश बना दिया। पाकिस्तान के 90,000 सैनिकों को इंदिरा गांधी की फौज ने बंदी बना लिया। 1971 की भारत-पाक जंग का समझौता जुल्फिकार अली भुट्टो और इंदिरा गांधी के मध्य 1972 में शिमला में हुआ। अटल बिहारी वाजपेयी ने तब इंदिरा गांधी को दुर्गा कहकर पुकारा था। तब सचमुच इंदिरा गांधी लौहपुरुष कहलाईं। 

1975 आते-आते इंदिरा गांधी तानाशाह बन गईं। कहते हैं सत्ता मनुष्य को मदान्ध कर देती है। इलाहाबाद हाईकोर्ट का निर्णय जब इंदिरा जी के विरुद्ध आया तो उन्होंने रातों-रात देश में आपातकाल की घोषणा कर दी। सारा देश जेलखाना बना दिया। आपातकाल में कुछ अच्छा भी हुआ होगा परन्तु लोगों के मौलिक अधिकारों को छीन लेना भारतीय समाज को अच्छा नहीं लगा। 1977 का लोकसभा चुनाव इंदिरा गांधी हार गईं परन्तु लोकतंत्र में जनता पार्टी से मात्र अढ़ाई साल में लोगों का मोहभंग हो गया। इंदिरा गांधी पुन: 1980 में केन्द्र सरकार में प्रधानमंत्री बन गईं। उनमें निर्णय लेने की अद्भुत क्षमता थी। 

परन्तु यह भी सत्य है कि सत्ता के शीर्ष पर हमेशा तो कोई बना नहीं रहता। एवरैस्ट की चोटी पर तो कोई घर बना कर रह नहीं सकता। इंदिरा गांधी की तुरंत निर्णय लेने की आदत ही उनकी कमजोरी सिद्ध हुई। पंजाब के हालात 1980 से 1992 के कालखंड में भयानक रहे। हिन्द समाचार ग्रुप के मालिक लाला जगत नारायण और रमेश जी की शहादत क्या हुई कि पंजाब के हालात काबू ही नहीं आए। अत: देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को उसे काबू में करने के लिए सेना को पंजाब भेजना पड़ा। अंतत: अपनी भी शहादत दे दी। इस साहसी महिला के साहस और तुरंत निर्णय लेने की भावना को देश हमेशा याद रखेगा। उनकी मौत भी एक शहीद की मौत है जिस पर हमें गर्व है।-मास्टर मोहन लाल(पूर्व परिवहन मंत्री, पंजाब)


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Pardeep

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