अमृतसर हादसा: 60 घंटे बाद  ‘राधा’  की गोद में पहुंचा ‘कान्हा’

punjabkesari.in Tuesday, Oct 23, 2018 - 09:27 AM (IST)

अमृतसर(स.ह., नवदीप): राधा (48) को यह पता है कि तेज रफ्तार से ट्रेन आंखों के सामने आ गई, उसके बाद उन्हें कुछ भी याद नहीं है। यही हाल प्रीति (31) का है। प्रीति और राधा दोनों सगी बहनें हैं। प्रीति अमृतसर के ‘जट्ट दी मडिया’ बिल्ले वाला चौक में रहती है। पति दिनेश (32) व बेटी सरोजनी (6), बेटा विशाल (3) के साथ जिंदगी खुशियों में बीत रही थी। दिनेश का पलम्बर का काम था, ऐसे में खुशहाल परिवार था। ट्रेन हादसे में पति बुद्धिराम व बेटे अभिषेक को खो चुकी राधा को इस बारे में कोई जानकारी नहीं है। 60 घंटे बाद आरूष उर्फ कान्हा को गोद में लेकर राधा कहती है कि अभिषेक कैसा है? 

हादसे के दौरान कान्हा उर्फ आरूष मां की गोद से दूर जा गिरा था, आरूष की पहचान हादसे के 48 घंटे बाद हुई, 60 घंटे बाद जब राधा को होश आया तो गोद में बेटे को लेकर उसका दर्द आंसुओं में तबदील हो गया। हालांकि वो विधवा हो चुकी है, इस बार करवाचौथ पर व्रत नहीं रख सकेगी। इस अनहोनी का अंदेशा उसे नहीं था और न ही किसी ने उसे बताया ही है। ‘पंजाब केसरी’ ने इस हादसे का शिकार हुई 2 बहनों से बात की जिन्हें यह नहीं पता कि इस बार करवाचौथ का व्रत वो नहीं रख सकेंगी। क्योंकि हादसे में उनके सुहाग छिन गए हैं, दोनों साढ़ू की रेल हादसे में मौत हो गई है, जिनका संस्कार भी हो चुका है। हादसे में इस परिवार ने 3 जानें गई हैं जबकि बच्चों सहित 6 घायल हैं, जिनका इलाज अलग-अलग अस्पतालों में चल रहा है। 

राधा का परिवार सुल्तानपुर रहता था। दशहरा के 24 घंटे पहले राधा पति बुद्धिराम (50) के साथ बेटे आरूष उर्फ कान्हा (3) का माता वैष्णो देवी में मुंडन करवाने के लिए बड़े बेटे अभिषेक (12) के साथ आई थी। घर के पास में रावण दहन देखने के लिए जब बच्चों ने जिद की तो दोनों साढ़ू (बुद्धिराम व दिनेश) दोनों बहनों (प्रीति व राधा) के साथ सभी बच्चों (सरोजनी, विशाल, आरूष, अभिषेक) के साथ जाने लगे तो बच्चों की नानी शिवमति (65) को भी साथ ले लिया। परिवार के साथ सभी रावण दहन देख रहे थे कि अचानक ऐसा भूचाल आया कि किसी को उसके बाद कुछ नहीं पता क्या हुआ। 

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इस परिवार में दिनेश व बुद्धिराम के साथ अभिषेक की मौत हो गई है। राधा का ऑप्रेशन आज हुआ है, प्रीति का इलाज चल रहा है, जबकि आरूष, विशाल व सरोजनी को मामूली चोटें आई हैं तथा शिवमति की हालत गंभीर है। कुल मिलाकर करवाचौथ के पहले रावण दहन के दौरान 2 सगी बहनों का जहां उजड़ा सुहाग तो वापस नहीं आएगा भले ही सरकार चैक बांटे या फिर आरोपियों को सजा सुनाए। इस परिवार के जो लोग बिछुड़ गए हैं, भाई से भाई छिन गया, बाप से बेटा और बेटे से बाप ऐसे में कुरीतियों पर अच्छाई का प्रतीक ‘सियासत’ के रावण दहन को लेकर आखिर जिम्मेदार कौन है? यह सवाल जनता पूछना चाह रही है। 

मुंडन के लिए 12 घंटे बाद जाना था वैष्णो देवी

मुझे क्या पता था कि ऐसा होगा, वर्नाजाती ही नहीं। बड़ी बहन आई थी, बेटे का मुंडन करवाने के लिए 12 घंटे बाद वैष्णों माता के लिए जाना था। बच्चों ने जिद की और मैं भी रावण दहन देखने चली गई। ट्रेन एकदम आई और उसके बाद मुझे कुछ नहीं पता। मुझे बताया गया हैकि परिवार के बाकी लोगों का इलाज चल रहा है। 

‘रावण दहन’ व ‘विश्वकर्मा दिवस’ पर सियासत के लगते हैं मेले

रावण हर साल दहन होता है, सरकारें बदलती हैं और रावण को जलाने वाले चेहरे बदल जाते हैं। जिसकी सत्ता उसका रावण जलता है। 2017 में इसी स्थान पर रावण नहीं जला था। लेकिन इस बार निकाय मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू व उनकी पत्नी नवजोत कौर सिद्धू के ‘मिट्ठू’ यानी की सौरभ मदान ने आयोजन किया तो थाने से एन.ओ.सी. दे दी गई। जिधर से मंत्री की पत्नी ने आना था उधर तो पुलिस का इंतजाम था लेकिन पटरियों के तरफ कोई सुरक्षा के पुख्ता प्रबंध नहीं थे। इधर रावण जला उधर ट्रेन लोगों पर चली। इतनी मौतों के बाद जहां सियासत चमकाई जा रही है वहीं जिस इलाके में यह कांड हुआ है वहां पर यू.पी. व बिहार वालों की बहुतायत है। ऐसे में रावण दहन और विश्वकर्मा दिवस इन दोनों पर सदैव सियासत के मेले लगते हैं, सियासत जब मंच पर हो तो एन.ओ.सी. है या नहीं यह कौन पूछता है। 

24 घंटे पहले ‘रावण दहन’ तक मौत खींच लाई ‘राम’ को

बुद्धिराम को सभी राम ही कहते थे, नाम की तरह बुद्धिमान भी थे। मौत उन्हें करीब 1200 किलोमीटर दूर से 24 घंटे पहले ही सुल्तानपुर (यू.पी.) से खींच लाई थी। रावण दहन देखने के लिए राम वहां अपने साढ़ू दिनेश के साथ खड़े थे, तभी ट्रेन चपेट में दोनों आ गए, दोनों की मौत हो गई। 

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3 दिन बाद मिला परिवार को विशाल 

विशाल की उम्र महज 3 साल है। भगदड़ में वह मां की गोद से गिरा तो किसी ने उसे मैडिकल कैंप तक पहुंचा दिया, चोटें मामूली थी लेकिन पहचान करना मुश्किल। उधर, राधा व प्रीति के परिवार के हादसे में शिकार होने की खबर उनके रिश्तेदारों तक पहुंची तो बच्चों की फोटो लेकर मिलान करने के लिए लोग इधर-उधर अस्पतालों में भटकते रहे। विशाल को एस.डी.एम. के स्पैशल निगरानी में मिलने के बाद उसे मां प्रीति से मिलवाया गया।

72 घंटे बाद रेल पटरी पर खून के दाग हुए फीके

धोबी घाट से गुजरती रेल पटरी पर हादसे के 72 घंटे बाद जहां खून के दाग भले ही फीके पड़ गए हैं लेकिन जो घाव मिला है वो जिंदगी भर रिसता रहेगा। हादसों में गई जानें का आंकड़ा सामने आने के बाद पंजाब सरकार ने आनन-फानन में करोड़ों के चैक तो बांट दिए हैं लेकिन यह बात कौन ‘चेक’ करेगा जो इस हादसे के जिम्मेदार हैं। दूसरी तरफ रावण पर सियासत होने लगती है और सिद्धू दंपति के पुतले जलाए जाते हैं। एक तरफ सरकार मुआवजा बांट रही है तो दूसरी तरफ विपक्षी पुतले फूंक कर राजनैतिक हवा भी दे रहे हैं और सच्चाई भी उजागर कर रहे हैं। आखिरकार सबसे बड़ा सवाल यही है कि आखिर मिट्ठू मदान को जब रावण दहन की एन.ओ.सी. दी गई थी तो पुख्ता इंतजाम क्यों नहीं हुए, आखिर एन.ओ.सी. देने का अधिकार थाने से किसने दिया, जबकि यह अधिकार पुलिस कमिश्नर कार्यालय से दिया जाता है। इन सभी उठापटक के बीच हालत यह है कि हादसे का शिकार हुए लोगों को यह नहीं पता कि उन्होंने हादसे में अपने परिवारों को किस-किस को खो दिया है। 

सियासत गर्मा गई, लेकिन सवाल वही कि हादसे का जिम्मेदार कौन है?

निकाय मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू की पत्नी नवजोत कौर सिद्धू दोनों को उनके राजनैतिक दोस्त रहे भाजपा व अकाली के वो चेहरे अपनी राजनीति चला रहे हैं जो किसी समय उनके आगे-पीछे चलते थे। राजनीति है ही ऐसी बला। राजनैतिक संरक्षण हो ता बाल भी बांका नहीं होता और राजनीति ही बदले की भावना में नीति बदल कर राज करने लगे तो कानून पर भरोसा किसका बचेगा। अमृतसर में बुराइयों पर जीत के प्रतीक रावण तो जल गया, लेकिन अपने साथ उसने 60 से ज्यादा ऐसी चिताएं जला गया जो रावण को जलते देखने आए थे। सियासत गर्मा गई है लेकिन सवाल यही है कि आखिरकार इस हादसे के जिम्मेदार कौन है?


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