सबरीमाला मुद्दे पर आदिवासियों का आरोप- सदियों पुराने रीति-रिवाज को खत्म कर रही सरकार
punjabkesari.in Wednesday, Oct 17, 2018 - 12:43 PM (IST)
नेशनल डेस्क: केरल के प्रसिद्ध सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर विवाद खत्म होता दिखाई नहीं दे रहा है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद आज पहली बार मंदिर के कपाट खुल रहे हैं। लेकिन स्वामी अयप्पा में आस्था रखने वाले लोग इसका विरोध कर रहे हैं। वहीं इसी बीच सबरीमला की आसपास की पहाडिय़ों पर रहने वाले आदिवासियों ने आरोप लगाया कि सरकार और त्रावणकोर देवस्वोम बोर्ड (टीडीबी) प्रसिद्ध सबरीमला मंदिर में 10 से 50 साल आयु वर्ग की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति देकर सदियों पुरानी प्रथा को खत्म करने की कोशिश कर रहे हैं।
टीडीबी ने छीने अधिकार
आदिवासियों ने दावा किया कि रजस्वला लड़कियों और महिलाओं पर लगी बंदिशें केरल के जंगलों में रहने वाले आदिवासी समाजों के रीति-रिवाज का हिस्सा हैं। उन्होंने कहा कि सबरीमला मंदिर और इससे जुड़ी जगहों पर जनजातीय समुदायों के कई अधिकार सरकारी अधिकारियों और मंदिर का प्रबंधन करने वाले टीडीबी के अधिकारियों द्वारा छीने जा रहे हैं।
आदिवासी देवस्थानों पर किया नियंत्रण
अट्टाथोडू इलाके में आदिवासियों के मुखिया वी के नारायणन (70) ने कहा कि देवस्वोम बोर्ड ने सबरीमला के आसपास की विभिन्न पहाडिय़ों में स्थित आदिवासी देवस्थानों पर भी नियंत्रण कर लिया है। उन्होंने आरोप लगाया कि अधिकारी मंदिर से जुड़े सदियों पुराने जनजातीय रीति-रिवाजों को खत्म करने की कोशिश कर रहे हैं।
रीति-रिवाजों का पालन करना जरूरी
नारायणन ने कहा कि रजस्वला लड़कियों और महिलाओं को अशुद्ध मानना एक द्रविडिय़ रिवाज है और आदिवासी लोगों द्वारा प्रकृति की पूजा से जुड़ा है। सबरीमला आचार संरक्षण समिति के प्रदर्शन में हिस्सा ले रहे नारायणन ने कहा कि भगवान अयप्पा हमारे भगवान हैं। किसी खास आयु वर्ग की महिलाओं के मंदिर में प्रवेश पर लगा प्रतिबंध हमारे रीति-रिवाज का हिस्सा है। घने जंगलों में स्थित भगवान अयप्पा के मंदिर में पूजा करने के लिए रीति-रिवाजों का पालन करना बहुत जरूरी है। इसका उल्लंघन नहीं होना चाहिए। अशुद्ध महिलाओं को सबरीमला मंदिर में प्रवेश की इजाजत नहीं देनी चाहिए।