सरकारों की उपेक्षा का शिकार सब्जी उत्पादकों ने मांगा न्यूनतम समर्थन मूल्य

punjabkesari.in Tuesday, Oct 16, 2018 - 10:38 PM (IST)

शिमला: सब्जी उत्पादन का क्षेत्र और सब्जी उत्पादक सरकारों की उपेक्षा का शिकार हो रहे हैं। सरकारों ने कभी भी इन पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया। फ लों और अनाजों से भी नाजुक और जल्दी नष्ट होने वाली सब्जी के दाम जब नहीं मिल पाते तो मजबूरी में किसानों को इसे कौड़ियों के भाव बेचने के लिए मजबूर होना पड़ता है। यह बात हिमाचल किसान सभा के राज्याध्यक्ष डा. कुलदीप सिंह तंवर ने किसान सभा अधिवेशन में कही। उन्होंने कहा कि सरकार ने इसके संरक्षण के लिए कोल्ड स्टोर या सी.ए. स्टोर जैसी कोई सुविधा नहीं दी है। इसकी प्रोसैसिंग के लिए किसी भी तरह के पूरक उद्योग नहीं हैं। इसके संवद्र्धन के लिए सरकार के पास कोई योजना नहीं है। उन्होंने कहा कि सब्जी उत्पादक सिंचाई के लिए खुद व्यवस्था कर रहे हैं। 25 किलोमीटर से भी किसान पानी लाकर सब्जियों की सिंचाई कर रहे हैं। बीजों की कोई प्रमाणिकता नहीं है। न लगें तो पूरा सीजन बर्बाद हो जाता है। सुनवाई कहां हो, यह भी किसानों को स्पष्ट नहीं है। ऊपर से जंगली जानवरों का कहर और प्राकृतिक आपदाएं पीछा नहीं छोड़ रहीं।

किसानों ने सुनाया अपना दर्द
हिमाचल किसान सभा द्वारा आयोजित अधिवेशन के मौके पर सतोग से आए विनोद ने कहा कि उनके पास सिंचाई की व्यवस्था न होने के कारण पीठ पर पानी लाना पड़ता है। ढली पंचायत से आए मदन लाल भारद्वाज कहते हैं कि उन्हें आज भी पीठ पर सब्जी उठाकर 3 किलोमीटर दूर सड़क तक पहुंचना पड़ता है और जंगली सूअर से लेकर बंदर, लंगूर, शाही, मुर्गे व खरगोश फसल को नष्ट कर जाते हैं इसलिए उन्होंने बाजार के लिए सब्जी पैदा करना छोड़ दिया है। कोट-गया पंचायत के किसान जुंडी राम के पास अपनी सिर्फ  4 बिस्वा जमीन है। किराए पर जमीन लेकर सब्जी उगाते हैं और इस साल मात्र 6,000 रुपए ही मिल पाए जिनमें से 3,000 रुपए बीज और दवाइयों का ही खर्च था। गरीब किसान हरिनंद पर लाखों का कर्ज चढ़ चुका है।

आढ़तियों द्वारा किसानों का किया जा रहा शोषण
वरिष्ठ किसान मोलक राम ने बताया कि आढ़तियों द्वारा किसानों का शोषण किया जा रहा है। यह परम्परा दशकों से चली आ रही है। उन्होंने कहा कि शिमला में 1968 में किसान सभा का गठन किया गया और 45 दिन तक आढ़तियों की मनमानी के खिलाफ  किसानों ने हड़ताल की। उसके बाद किसानों की 28 मांगें मानी गईं। उन्होंने कहा कि बिना संगठन और संघर्ष के हक नहीं मिलते। हक की खातिर हमेशा लड़ना पड़ता है।


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Vijay

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