Kundli Tv- क्यों देवी दुर्गा को कहा जा जाता है महिषासुर मर्दिनी

punjabkesari.in Sunday, Oct 14, 2018 - 10:23 AM (IST)

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नवरात्र शुरू होते ही कहीं जयकारों की गूंज तो, कहीं दुर्गा स्तुति का पाठ तो कहीं मां के भजन सुनने को मिलते हैं। इस पर्व को भारत के कोने-कोने में बहुत धूम-धाम से मनाया जाता है। यह पावन त्योहार आदिशक्ति मां दुर्गा को समर्पित है। नवरात्र के पूरे नौ दिन इनके नौ अलग-अलग रूपों की विधि-विधान के सात पूजा की जाती है। तो आइए आज जानते हैं मां दुर्गा के अवतार के बारे में-
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प्राचीन समय की बात है, असुरों के राजा महिषासुर नामक राक्षस ने अपने बल और पराक्रम से देवताओं से स्वर्ग छीन लिया। जिसके बाद सभी देवता भगवान शंकर और विष्णु के पास मदद के लिए गए। मान्यता के अनुसार शंकर और विष्णु को क्रोध आया तब उनके और अन्य देवताओं के मुख से तेज प्रकट हुआ, जो नारी स्वरूप में परिवर्तित हो गया।
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शिव के तेज से देवी का मुख, यमराज के तेज से केश, विष्णु के तेज से भुजाएं, चंद्रमा के तेज से वक्षस्थल, सूर्य के तेज से पैरों की अंगुलियां, कुबेर के तेज से नाक, प्रजापति के तेज से दांत, अग्नि के तेज से तीनों नेत्र, संध्या के तेज से भृकुटि और वायु के तेज से कानों की उत्पत्ति हुई।
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इसके बाद देवी को शस्त्रों से सुशोभित किया गया। भगवान शंकर ने मां शक्ति को अपना त्रिशूल भेंट किया। अग्निदेव ने अपनी शक्ति देवी को प्रदान की। भगवान विष्णु ने देवी को अपना सुदर्शन चक्र प्रदान किया। वरुणदेव ने शंख भेंट कर माता का सम्मान किया। पवनदेव ने देवी को धनुष और बाण दिए। देवराज इंद्र ने देवी को वज्र और अपना हाथी एेरावत की घंटी दी। यमराज ने मां दुर्गा को कालदंड भेंट किया। प्रजापति दक्ष ने स्फटिक की माला प्रदान की। परमपिता ब्रह्मा ने अपनी ओर से कमंडल भेंट किया। सूर्यदेव ने माता को अपना तेज प्रदान किया। समुद्रदेव ने आभूषण (हार, वस्त्र, चूड़ामणि, कुंडल, कड़े, अर्धचंद्र और रत्नों की अंगूठियां) भेंट किए।
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सरोवरों ने कभी न मुरझाने वाली माला माता को अर्पित की। कुबेरदेव ने शहद से भरा पात्र (बर्तन) दिया। पर्वतराज हिमालय ने मां दुर्गा को सवारी करने के लिए शक्तिशाली शेर भेंट किया। देवताओं से शक्तियां प्राप्त कर महादुर्गा ने युद्ध में महिषासुर का वध कर देवताओं को पुन: स्वर्ग सौंप दिया। महिषासुर का वध करने के कारण ही महिषासुरमर्दिनी कहा जाने लगा।
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Jyoti

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