महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाएं राजनीतिक दल

punjabkesari.in Monday, Sep 24, 2018 - 01:56 AM (IST)

हाल ही में रक्षा और रणनीतिक मामलों से जुड़ी दो खबरें चर्चा में रही हैं। एक है फ्रांस से लड़ाकू विमान राफेल खरीदने की और दूसरी है भारत की अमरीका से बातचीत की, जिसे 2+2 का नाम दिया गया। पहली खबर के बारे में बात करने जा रहा हूं परन्तु रणनीतिक लिहाज से नहीं। मैं कुछ अलग बिन्दू पर ध्यान केन्द्रित करना चाहता हूं। आमतौर पर ये बातें सिर्फ चंद लोगों की रुचि का विषय होती हैं, जो अंतर्राष्ट्रीय संबंधों का अध्ययन करते अथवा उन पर लिखते हैं। यह समूह 2+2 के आशय से बहुत उत्साहित था क्योंकि साफतौर पर इससे कई नई चीजें सामने आने वाली थीं। इस समूह की संकीर्णता एक राष्ट्रीय समाचारपत्र में प्रकाशित इस घटना की रिपोर्ट से झलकती है। इसकी पहली लाइन थी, ‘‘भारत के रणनीतिक समुदाय के बहुत से लोग हाल ही में सम्पन्न हुए 2+2 भारत-अमरीका संवाद के दौरान ‘सिसमोआ’ के भारतीयकृत ‘कोमकासा’ के हस्ताक्षरित होने पर अपनी खुशी नहीं छुपा सके?’’

कितने भारतीय जानते हैं कि कोमकासा या सिसमोआ अथवा 2+2 क्या है? संभवत: एक लाख में से एक अथवा उससे भी कम क्योंकि यह लेख सुरक्षा पहलुओं अथवा रक्षा घोटालों के बारे में नहीं है, इसलिए हम इस बात में नहीं जाएंगे कि कोमकासा और सिसमोआ का अर्थ क्या है। मेरी रुचि उस तस्वीर को लेकर थी जो इस रिपोर्ट के साथ थी। इसमें चार लोग थे, अमरीका के रक्षा सचिव और राज्य सचिव तथा भारत के विदेश मंत्री और रक्षा मंत्री। इन लोगों के ओहदे समान हैं यानी अमरीका में सचिव भारत के कैबिनेट रैंक के मंत्री के बराबर होता है।

बाचतीच के लिए क्या छोटा-क्या बड़ा
एक राष्ट्र के तौर पर और एक संस्कृति के तौर पर हम पर यह आरोप लगता है कि हम अपने से छोटे लोगों से बातचीत नहीं करना चाहते। पूर्व राजदूत और भारत-अमरीका संबंधों के जानकार डैनिस कक्ष ने लिखा है कि भारतीय राजनीतिज्ञ आमतौर पर अपने से छोटे रैंक के अमरीकी अधिकारी के साथ चर्चा नहीं करना चाहते। चाहे उस अधिकारी के पास संबंधित मामले से निर्णय लेने का अधिकार भी क्यों न हो। भारतीय केवल अपने समकक्षों से ही संवाद करना चाहते हैं फिर चाहे वह बैठक बेनतीजा ही क्यों न रहे। हमारी 2+2 मीटिंग में ऐसी बात नहीं थी और मेरा ख्याल है कि रणनीतिक मामलों से जुड़े  बहुत से लोग इस बात पर खुश हुए होंगे कि शक्तिशाली अमरीकी राष्ट्रपति के बाद सबसे शक्तिशाली दो लोगों को हमसे बातचीत के लिए दिल्ली भेजा है, और वे भी मंत्री स्तर के लेकिन मैं फिर यह कहना चाहूंगा कि मेरी रुचि इस तरह के शक्ति प्रदर्शनों के पहलू पर नहीं है बल्कि कुछ ऐसी चीज पर है जो बिल्कुल भिन्न है।

यह तस्वीर लोगों की थी जो श्रोताओं की तरफ मुंह करके खड़े थे। बाएं थे अमरीका के राज्य सचिव माइक पांपियो तथा रक्षा सचिव जिम मैटिस, जोकि दोनों गोरे हैं। मैटिस पूर्व जनरल हैं। पांपियो भी सेना में रहे हैं जो किसी समय अमरीकी खुफिया एजैंसी सी.आई.ए. के प्रमुख थे। दाईं तरफ थे भारत के विदेश मंत्री और रक्षा मंत्री। ये दोनों महिलाएं हैं एक उत्तर भारत (सुषमा स्वराज) से और दूसरी (निर्मला सीतारमन) दक्षिण भारत से। ये दोनों स्वनिर्मित ताकतवर महिलाएं हैं जो महत्वपूर्ण पदों पर पहुंचने के लिए किसी पर निर्भर नहीं रहीं।

अमरीका में है गोरे लोगों का वर्चस्व
दो ताकतवर पुरुष दो ताकतवर समकक्ष महिलाओं से हाथ हिलाते हुए। इस तस्वीर ने मुझे बहुत खुश किया। मैं आमतौर पर रक्षा मामलों के बारे में नहीं पडऩा चाहता क्योंकि मैं यह मानता हूं कि कम संसाधनों वाले देश में पैसे की बर्बादी है और यह भी कि इस खर्च से सिर्फ कुछ अमीर लोगों को ही फायदा होता है परन्तु इस खबर और खास तौर पर 2+2 तस्वीर से मुझे काफी प्रसन्नता  मिली। शेष दुनिया की तरह हम भी बड़ी असमानता के माहौल में रहते हैं। अमरीका की संस्कृति में गोरे लोगों का वर्चस्व साफ झलकता है। वहां महिलाओं की अहमियत कम है और अलग रंग व धर्म वाले लोगों की और भी कम।

भारत के मामले में भी यही सच है। वह तस्वीर इस सरकार का पूरा प्रतिनिधित्व नहीं करती थी और मैं सिर्फ एक और ताकतवर महिला मंत्री स्मृति ईरानी के बारे में सोच सकता था परन्तु इससे पता चलता है कि क्या कुछ संभव है। यह तय है कि यदि राजनीति में महिलाओं का प्रतिनिधित्व कम है तो इसका कारण प्रतिभा की कमी नहीं है। स्वराज और सीतारमन तथा ईरानी और मायावती, ममता बनर्जी तथा विपक्ष में अन्य का होना इस बात को खारिज करता है।

इसका कारण विशुद्ध रूप से अवसर की कमी है। 2+2 जैसे क्षण हमें इस बात के प्रति जागरूक करते हैं। हमें सभी राजनीतिक दलों पर इस बात का दबाव डालना चाहिए कि यदि उन्हें हमारा वोट और समर्थन चाहिए तो वे अधिक संख्या में महिलाओं को शामिल करें। - आकार पटेल


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Yaspal

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