आओ! सारे वेखण चलिए मेला बाबा सोढल दा

punjabkesari.in Sunday, Sep 23, 2018 - 08:47 AM (IST)

जालंधरःबाबा सोढल मेला (जालंधर) पंजाब में मेलों की सूची में एक प्रमुख स्थान रखता है। श्री सिद्ध बाबा सोढल जी का मंदिर और तालाब लगभग 200 वर्ष पुराना है। इससे पहले यहां चारों तरफ घना जंगल होता था। दीवार में उनका श्री रूप स्थापित है, जिसे मंदिर का स्वरूप दिया गया है।मेला बाबा सोढल की महान आत्मा को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए आयोजित किया जाता है। हर साल यह जालंधर शहर में भादों के महीने में शुक्ल पक्ष के 14वें दिन पर आयोजित किया जाता है।PunjabKesari

इस दिन देशभर से ही नहीं बल्कि विदेशों से भी लाखों की संख्या में श्रद्धालु इस मेले में सोढल बाबा के दर्शन करने आते हैं। सोढल मंदिर में प्रसिद्ध ऐतिहासिक सोढल सरोवर है जहां सोढल बाबा की विशाल प्रतिमा स्थापित की गई है। श्रद्धालु इस पवित्र सरोवर के जल से अपने ऊपर छिड़काव करते हैं और चरणामृत की तरह पीते हैं।

मेले से 2-3 दिन पहले शुरू होने वाली भक्तों की भीड़ मेले के बाद भी 2-3 दिन तक लगातार बरकरार रहती है। हर धर्म व समुदाय के लोग बाबा जी के दरबार में नतमस्तक होते हैं। जिन लोगों की मन्नतें पूरी होती हैं, वे बैंड-बाजे के साथ बाबा जी के दरबार में आते हैं। बाबा सोढल का जन्म जालंधर शहर में चड्ढा परिवार में हुआ था। सोढल बाबा के साथ कई कहानियां जुड़ी हुई हैं। कहते हैं कि जब सोढल बाबा बहुत छोटे थे वह अपनी माता के साथ एक तालाब के पास गए। माता कपड़े धोने में व्यस्त थी और बाबा पास ही में खेल रहे थे।PunjabKesari

तालाब के नजदीक आने पर माता ने इन्हें कई बार टोका और गुस्सा भी किया। बाबा के न मानने पर माता ने गुस्से में उन्हें कोसा और कहा जा गर्क जा। इस गुस्से के पीछे माता का प्यार छिपा था। बाबा सोढल ने माता के कहे अनुसार तालाब में छलांग लगा दी। माता ने अपने पुत्र द्वारा तालाब में छलांग लगाने को लेकर विलाप शुरू कर दिया। थोड़ी देर बाद बाबा जी पवित्र नाग देवता के रूप में प्रकट हुए। 

उन्होंने चड्ढा और आनंद बिरादरी के परिवारों को उनके पुनर्जन्म को स्वीकार करते हुए मट्ठी जिसे टोपा कहा जाता है, चढ़ाने का निर्देश दिया। इस टोपे का सेवन केवल चड्ढा और आनंद परिवार के सदस्य ही कर सकते हैं। इस प्रसाद का सेवन परिवार में जन्मी बेटी तो कर सकती है।  मगर दामाद व उसके बच्चों के लिए यह वर्जित है। सोढल मेले वाले दिन श्रद्धालु पवित्र तालाब से अपने प्रत्येक पुत्र के नाम की मिट्टी 14 बार निकालते हैं। श्रद्धालु अपने-अपने घरों में पवित्र खेत्री बीजते हैं जो हर परिवार की खुशहाली और समृद्धि का प्रतीक मानी जाती है। मेले वाले दिन इसे बाबा के श्रीचरणों में अर्पित करके माथा टेकते हैं।    —अमित गुप्ता, जालंधरPunjabKesari


सबसे ज्यादा पढ़े गए

swetha

Recommended News

Related News