Success Story : 6 बार फेल होने पर भी नहीं मानी हार,  सातवें प्रयास में बने आईएएस अॉफिसर

punjabkesari.in Saturday, Sep 22, 2018 - 04:43 PM (IST)

नई दिल्ली :  कहते है कि अगर आप किसी चीज को हासिल करने की ठान लेते है तो दुनिया की कोई भी ताकत आपको उसको पाने से नहीं रोक सकती , बस जरुरत है मेहनत और कोशिश करने की। ये बात बिल्कुल सटीक बैठती है आईएएस के जयगणेश की जिंदगी पर काफी लागू होती हैं। वह छह बार सिविल सर्विस में फेल हुए, लेकिन हार नहीं मानी। वह 2008 में सातवें प्रयास में आईएएस बने और वह भी 156 वीं रैंक के साथ। वह ऐसे छात्र थे, जिसने गांव के सरकारी स्कूल से पढ़ाई करके आईएएस बनने का मुकाम हासिल किया।

जयागणेश के संघर्ष की कहानी 
तमिलनाडु के वेल्लोर जिले के विनावमंगलम गांव में पैदा हुए जयगणेश के दो बहन और एक भाई से बड़े हैं। पिता लैदर फैक्ट्री में सुपरवाइजर। के जयगणेश अपने भाई- बहनों में सबसे बड़े थे। उनको दो बहनें और एक भाई है। पिता 4500 रुपए की नौकरी करके परिवार को पालन-पोषण करते थे। 8वीं तक गांव के स्कूल में ही पढ़ाई हुई और बाद में पास के कस्बे में पढ़ने जाना होता था। दसवीं के बाद पोलिटेक्निक कॉलेज में पढ़े। 91 फीसदी अंकों से इंजीनियरिंग में प्रवेश किया और मैकेनिकल इंजीनियरिंग की।वर्ष 2000 में इंजीनियरिंग करने के बाद जयगणेश जॉब की तलाश में बेंगलुरु आए। यहां उन्हें 2500 रुपए महीने की एक कंपनी में नौकरी मिल गई।

सिविल सर्विस के प्रति रुझान 
जयगणेश बताते हैं कि उन्हें सिविल सर्विस के बारे में पहले ज्यादा जानकारी नहीं थी। बेंगलुरु आकर पता चला कि कलेक्टर ऐसा अधिकारी होता है, जो गांवों के लिए बहुत कुछ कर सकता है। बस यहीं से तय कर लिया कि अब आईएएस बनना है। नौकरी छोड़ी और आईएएस बनने के लिए गांव लौट आए। उस वक्त उन्हें 6500 रुपए बोनस मिला था। इसी से स्टडी के लिए किताबें आदि खरीदीं। गांव में रहकर नोट्स पढ़ना शुरू किया, जिन्हें पोस्ट के जरिए चेन्नई से मंगवाया करते थे।
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चेन्नई में कोचिंग 
जयगणेश को चेन्नई में सरकारी कोचिंग के बारे में पता चला तो उन्होंने इसके लिए टेस्ट दिया और पास हो गए। इसमें उन्हें जरूरी सुविधाएं और ट्रेनिंग मिलने लगी। कोचिंग के बाद गांव नहीं जाकर चेन्नई में ही वह पढ़ाई करना चाहते थे, लेकिन कोई जॉब नहीं मिल सकी। 

वेटर के रूप में काम 

सत्यम सिनेमा की कैंटीन में उन्हें बिलिंग क्लर्क का जॉब मिला। इंटरवल में वह वेटर के तौर पर भी काम करते। जयगणेश ने बताया कि उन्हें कभी भी इस बात की चिंता नहीं हुई कि वह एक मैकेनिकल इंजीनियर होकर यह काम कर रहे हैं। लक्ष्य था कि चेन्नई में रहकर सिविल सर्विस की तैयारी की जाए। छह बार की विफलता के बाद अंतत: सातवें प्रयास में सफलता मिली।


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