नजरिया: हमने पहले ही कहा था सुषमा-कुरैशी की मुलाकात का कोई तुक नहीं

punjabkesari.in Saturday, Sep 22, 2018 - 10:10 AM (IST)

नेशनल डेस्क ( संजीव शर्मा): आखिरकार भारत ने न्यूयार्क में भारत-पाक विदेश मंत्रियों की प्रस्तावित बैठक से हाथ खींच लिए। यह बैठक संयुक्त राष्ट्र की अगले सप्ताह होने वाली आम सभा के दौरान होनी थी। पाकिस्तान ने इसका आग्रह किया था जिसे भारत ने मान लिया था। दो रोज पहले जब यह बैठक तय हुई थी पंजाब केसरी ने उसी वक्त इसी कालम में इस मुलाकात पर सवाल खड़े किए थे। हमारा तर्क था कि जब इसे संवाद की शुरुआत नहीं माना जाएगा तो फिर इस मुलाकात का क्या तुक है ? और वो भी तब जब उसी रोज पाकिस्तान ने आतंकी बुरहान वानी पर डाक टिकट जारी किया हो। हमने सवाल उठाया था कि अगर सुषमा स्वराज और शाह महमूद कुरैशी बिना आधिकारिक एजेंडे के लिए सिर्फ चाय पीने के लिए बैठेंगे तो फिर नवजोत सिद्धू और कमर बाजवा की जफ्फी पर सवाल क्यों उठाये जाएं (देखें लिंक्स ) खैर आखिर वही हुआ। इस मुलाकात को रद होना था और यह रद हो गई। देर आयद दुरुस्त आयद। 

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हालांकि यह सवाल अब और शिद्द्त से उठेगा कि यह फैसला हड़बड़ी में किसने और क्यों लिया? भारत अरसे से खासकर पठानकोट हमले के बाद से लगातार यह कहता रहा है कि जब तक पाकिस्तान आतंक का पोषण नहीं रोकता तब तक  उससे बातचीत नहीं होगी। उड़ी हमले के बाद तो खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते।  लेकिन अगर इसके बावजूद भारत ने इस मुलाकात की हामी भरी तो फिर यह एक बड़ी चूक है विदेश नीति की।  इस चूक के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई भी होनी चाहिए। दरअसल इमरान खान की सरकार को लेकर शुरू से ही भारत दुविधा में है। जबकि सर्वविदित है कि  इमरान खान पाकिस्तान के अब तक के सबसे कटटरवादी प्रधानमंत्री हैं। उन्हें चुनाव में सीधे सेना ने जितवाया है यह भी तय ही है। जरा और पीछे जाकर  यदि यादाश्त को खंगालेंगे तो याद आएगा कि ये वही इमरान खान हैं जिन्होंने किसी जमाने में वसीम अकरम और जावेद मियांदाद के साथ  मिलकर यह कहा था कि  कश्मीर का फैसला शरजाह के क्रिकेट मैच में कर लेते हैं।  

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ऐसे में इमरान खान कब से सौम्य हो गए भारत के लिए यह तो पता हुक्मरानों को होना ही चाहिए था। ऐसा भी नहीं है कि इस चूक के लिए कोई अधीनस्थ कर्मचारी जिम्मेदार है। यह सीधे-सीधे सुषमा स्वराज और उससे भी बढ़कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीतियों के सुराखों को परिलक्षित करता है। पाकिस्तान की सेना मोदी सरकार के कार्यकाल में ही 800 से अधिक बार (मनमोहन सिंह का रिकार्ड यही था ) सीजफायर का  उल्लंघन कर चुकी है। रोजाना अटैक में हमारे सैनिकों के शव क्षत -विक्षत करके फेंके जा रहे हैं।  लेकिन इसके विपरीत हमारी विदेश मंत्री एक ट्वीट पर पाकिस्तानियों को भारत में इलाज के लिए वीजा देती हैं। आखिर क्यों..? अगर किसी बीमार का इलाज मानवता के दायरे में आता है तो क्या सीमा पर हो रहे उत्पात और घाटी में हो रही हिंसा से मारे जाने वालों के परिजनों के जज़्बात मानवता के दायरे में नहीं आते ? भारत सरकार को  पाक परस्त आतंक को रोकने के लिए कठोर  कदम उठाने होंगे और  मानवता के आधार पर वीजा दिए जाने  जैसे कदमो के ढोंग से भी किनारा करना होगा।  भारत सरकार को 56 इंच के सीने में दिल भी 500 ग्राम (350 ग्राम से काम नहीं चलेगा)  का रखना होगा जो विरोधी के लिए पसीजे नहीं अपितु कठोर कार्रवाई की हिम्मत रखता हो।  

नजरिया: डाक खानों से नहीं दिलों से शुरू करनी होगी भारत-पाक वार्ता


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Anil dev

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