MOVIE REVIEW: 'बत्ती गुल मीटर चालू'

9/21/2018 4:10:12 PM

मुंबई: बॉलीवुड एक्टर शाहिद कपूर और श्रद्धा कपूर की फिल्म 'बत्ती गुल मीटर चालू' आज सिनेमाघरों में रुलीज हो गई है। इसके निर्देशन श्री नारायण सिंह है। ये फिल्म बिजली के बिल जैसे गंभीर मुद्दे पर आधारित है। ये फिल्म शूटिंग के दौरान से ही बहुत सारे विवादों में फंसी हुई थी। अंततः ये रिलीज हो गई है। 

 


फिल्म की कहानी उत्तराखंड के टिहरी जिले की है। कहानी तीन दोस्तों सुशील कुमार पंत (शाहिद कपूर), ललिता नौटियाल (श्रद्धा कपूर) और सुंदर मोहन त्रिपाठी (दिव्येंदु शर्मा) की है। ये एक-दूसरे के जिगरी यार हैं। सुशील कुमार ने वकालत की है, वहीं ललिता डिजाइनर हैं और सुंदर ने एक प्रिंटिंग प्रेस का धंधा शुरू किया है। उत्तराखंड में बिजली की समस्या काफी गंभीर है और ज्यादातर बिजली कटी हुई ही रहती है। सुंदर की फैक्ट्री के बिजली का बिल हमेशा ज्यादा आता है और एक बार तो 54 लाख रुपए तक का बिल आ जाता है। इस वजह से वो शिकायत तो दर्ज करता है, लेकिन उसकी बात सुनी नहीं जाती। एक ऐसा दौर आता है जब वह बेबसी में आत्महत्या कर लेता है।इस वजह से सुशील और ललिता शॉक हो जाते हैं। सुशील अपने दोस्त के इस केस को लड़ने का फैसला करता है। कोर्टरूम में उसकी जिरह वकील गुलनार (यामी गौतम) से होती है। आखिर में एक फैसला आता है, जिसे जानने के लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी।

 

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फिल्म में एक बड़े अहम मुद्दे की तरफ ध्यान आकर्षित करने की कोशिश की गई है।बिजली बिल से जुड़ी इस तरह की कहानियों से हम दो-चार होते रहते हैं। इसकी वजह से कई लोग असल जिंदगी में बेहद मुश्किलों से गुजरते हैं। फिल्म में उत्तराखंड की लोकेशन अच्छी तरह से दिखाई गई है। कोर्टरूम के कुछ सीन्स बहुत अच्छे बने हैं। वहीं शाहिद कपूर, श्रद्धा कपूर और दिव्येंदु की बॉन्डिंग अच्छी दिखाई गई है। तीनो एक्टर्स ने किरदार के हिसाब से खुद को ढाला है, जो की पर्दे पर नजर भी आता है। बाकि सह कलाकारों का काम भी बढ़िया है। फिल्म में देखते-देखते वाला गीत बहुत अच्छा है।

 

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फिल्म की कमजोर कड़ी इसका स्क्रीनप्ले, निर्देशन और एडिटिंग है। तीन घंटे की फिल्म है, जिसे कम से कम 50 मिनट छोटा किया जाना चाहिए था। फिल्म में कई बेवजह के सीक्वेंस हैं जो इसे जबरदस्ती लंबा बना देते हैं। साथ ही जिस तरह से अहम मुद्दे के बारे में बात करने की कोशिश की गई है वो फिल्मांकन के दौरान कहीं न कहीं खोता नजर आता है। संवादों में बार-बार 'बल' और 'ठहरा' शब्दों का प्रयोग किया गया है। जिसकी वजह से किरदारों के संवाद कानो में चुभते हैं। फिल्म को पूरे भारत के लिए बनाया गया है, लेकिन फ्लेवर सिर्फ एक ही शहर का है। लेखन में लिबर्टी लेकर संवादों को सामान्य किया जा सकता था। एक बहुत अच्छी फिल्म बन सकती थी, लेकिन औसत रह गई।


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Konika


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