यस बैंक के CEO पर कार्रवाई, RBI ने बैंकिंग सैक्टर को दी चेतावनी

punjabkesari.in Friday, Sep 21, 2018 - 11:24 AM (IST)

नई दिल्ली: रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आर.बी.आई.) ने यस बैंक के सी.ई.ओ. राणा कपूर पर कार्रवाई करते हुए उनको 3 साल का कार्यकाल पूरा करने से रोक दिया। केन्द्रीय बैंक ने इस कार्रवाई से बैंकिंग सैक्टर के मैनेजमैंट से लेकर केन्द्र सरकार तक को कड़ी चेतावनी दी है। 

PunjabKesariबैंक ने पहली चेतावनी सीधे-सीधे सी.ई.ओज को दी है कि वे बैंक में अपने शेयरों के दाम बढ़ाने के लिए आजाद हैं लेकिन हवा-हवाई तरीके से नहीं। राणा कपूर को आर.बी.आई. की नाराजगी इसलिए झेलनी पड़ी क्योंकि उन्होंने फंसे कर्ज को भी नॉन-परफॉर्मिंग एसैट्स (एन.पी.ए.) घोषित नहीं किया। सिर्फ यस बैंक ही ऐसा करने वाला नहीं है। आर.बी.आई. की ओर से की गई बैंकों की एसैट क्वॉलिटी की जांच से ऐक्सिस बैंक में भी ऐसी ही समस्याएं सामने आईं और सी.ई.ओ. शिखा शर्मा का कार्यकाल बढ़ाने पर भी पाबंदी लग गई। वह इस वर्ष के आखिर में ऐक्सिस बैंक से हट जाएंगी। लेकिन शिखा शर्मा एक प्रोफैशनल मैनेजर हैं तो राणा कपूर यस बैंक के सह-संस्थापक हैं और उनका यस बैंक में शेयर है। आर.बी.आई. चाहता है कि कपूर 31 जनवरी के बाद अपने पद से हट जाएं।

PunjabKesariCEO की पूजा प्रथा खत्म हो
तीसरी चेतावनी यस बैंक के चेयरमैन अशोक चावला और आई.सी.आई.सी.आई. बैंक के चेयरमैन गिरीश चंद्र चतुर्वेदी के लिए है। ये दोनों पूर्व में नौकरशाह रह चुके हैं। उनकी पुराने बॉस, यानी भारत सरकार ने भले ही गुड गवर्नैंस पर बहुत ध्यान नहीं दिया हो लेकिन आर.बी.आई. को उनसे और उनके बोर्ड से बेहतरी की उम्मीद है। चतुर्वेदी पूर्ववर्ती आई.सी.आई.सी.आई. की सी.ई.ओ. चंदा कोचर पर हितों के टकराव का आरोप लगने पर तुरंत उनकी साफ-सुथरी छवि का प्रमाण पत्र देने लगे। बोर्ड ने बाद में जाकर स्वतंत्र जांच का आदेश दिया। आर.बी.आई. का स्पष्ट संदेश है कि इस तरह सी.ई.ओ. की पूजा प्रथा खत्म होनी ही चाहिए।

PunjabKesariयहां अधिकार है वहां होगी कठोर कार्रवाई
आर.बी.आई. गवर्नर उर्जित पटेल की चौथी चेतावनी सरकार को है। जब केन्द्र सरकार ने 13 लाख करोड़ रुपए के पी.एन.बी. फ्रॉड का दोष आर.बी.आई. के मत्थे मढऩे की कोशिश की थी तो पटेल ने स्पष्ट कहा था कि उनके पास पी.एन.बी. जैसे सरकारी बैंकों पर प्राइवेट बैंकों जितना अधिकार नहीं है। पहले ऐक्सिस और अब यस बैंक पर कड़े कदम उठाकर वह सरकार को याद दिलाना चाहते हैं कि जहां उनके पास अधिकार है, वहां कठोर कार्रवाई हो रही है। मसलन उनका इशारा यह है कि मुश्किल में फंसे पावर प्लांट्स (ऊर्जा संयंत्रों) को दिए लोन फंस जाने पर बैंकों को अपने बट्टे खाते में डालने का आइडिया सही नहीं है। इस मामले में आर.बी.आई. कुछ नहीं कर सकता, भले ही बैंकर खुद इस पर कड़े निर्णय की चाहत क्यों नहीं रखते हों।

किसी कार्रवाई से नहीं होगा कोई समझौता
अब इन्फ्रास्ट्रक्चर लीजिंग एंड फाइनैंशियल सर्विसेज लि. और इसके 169 सब्सिडरीज, एसोसिएट्स और ज्वाइंट वैंचर्स के साम्राज्य समेत देश की पूरी फाइनांस इंडस्ट्री को आर.बी.आई. की यह आंच महसूस करनी चाहिए। आई.एल. एंड एफ.एस. ग्रुप का जिक्र यहां बहुत जरूरी है क्योंकि अब जब यह समय पर कर्ज नहीं चुका रहा है, तब यह स्पष्ट हो गया है कि आर.बी.आई. ने इसकी गड़बड़ गतिविधियों पर ध्यान नहीं दिया था, इसलिए 5वीं चेतावनी खुद आर.बी.आई. के लिए ही है। राणा कपूर पर कार्रवाई के बाद आर.बी.आई. का स्टैंडर्ड अब से बहुत बढ़ गया है। अब इस नई छवि से किसी तरह का समझौता उसकी विश्वसनीयता को नुक्सान पहुंचाएगा जिसे पाने के लिए उसने बहुत कठिन प्रयास किया है।


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jyoti choudhary

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