BJP के बयान से पं. सुखराम को झटका, टिकट की वकालत पड़ सकती है भारी

punjabkesari.in Thursday, Sep 20, 2018 - 08:38 PM (IST)

मंडी: मंडी लोकसभा सीट पर पूर्व मंत्री सुखराम की दावेदारी से भाजपा में हड़कंप मच गया है लेकिन भाजपा नेताओं के बयान ने पहले ही दिन उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। भाजपा नेताओं का कहना है कि पार्टी में मीडिया के माध्यम से बयानबाजी कर टिकट मांगने की परंपरा नहीं है और यह तय करना पार्टी के संसदीय बोर्ड का काम है। भाजपा के इस बयान से पं. सुखराम को झटका जरूर लगा होगा लेकिन वह इस बात से पूरी तरह आश्वास्त दिख रहे हैं कि जिस प्रकार हाईकमान ने उन्हें उनके कहने पर भाजपा में शामिल करते हुए मंडी से कांग्रेस का सफाया कर दिया, उससे उनकी दावेदारी मजबूत दिख रही है।

टिकट की वकालत करना पड़ सकता है भारी
पूर्व मंत्री पं. सुखराम के लिए भाजपा संगठन के कामकाज और टिकट की पैरवी भारी पड़ सकती है क्योंकि उनके पुत्र को भाजपा ने पार्टी में शामिल करते ही महत्वपूर्ण मंत्री पद से नवाजा है और मंत्रिमंडल में उनको अच्छी तवज्जो भी दी जा रही है, ऐसे में अब पूर्व मंत्री की ओर से लोकसभा चुनाव को देखते हुए अपने परिवार के लिए टिकट की वकालत करना जयराम सरकार में मंत्री उनके बेटे अनिल शर्मा के लिए भी भारी पड़ सकती है क्योंकि भाजपा परिवारवाद के खिलाफ जनता में संदेश देना चाहती है और अगर सुखराम के दबाव में भाजपा ने घुटने टेक दिए तो उनके लिए वंशवाद और परिवारवाद का नारा गले की फांस बन सकता है।

टाइमिंग को लेकर भी उठे सवाल     
मंडी लोकसभा सीट पर पूर्व मंत्री सुखराम की अपने परिवार के लिए टिकट की दावेदारी को लेकर टाइमिंग पर भी सवाल उठ रहे हैं चूंकि इस समय शिमला में भाजपा प्रदेश कार्यसमिति की बैठक चल रही है और भाजपा के शीर्ष नेता और प्रभारी भी 2019 के चुनाव पर मंथन कर रहे हैं तो ऐसे मौके पर अचानक सुखराम की सार्वजनिक रूप से दावेदारी से सवाल पैदा हो रहे हैं कि उन्होंने ऐसा बयान जान-बूझकर दिया है ताकि इस बात की चर्चा शिमला से लेकर दिल्ली तक हो। राजनीति के जानकारों का कहना है कि सुखराम पूरे 5 साल निष्क्रिय रहते हैं और चुनाव के मौके पर सामने आते ही अपने प्रभाव का दम भरने लगते हैं।

राजनीति में रही है बड़ी दखलअंदाजी
पं. सुखराम स्वयं हालांकि दूरसंचार घोटाले में अदालती झमेलों के चलते सक्रिय राजनीति को अलविदा कह चुके हैं लेकिन कोर्ट से सशर्त रिहा होने के बाद भी उनकी राजनीति में बड़ी दखलअंदाजी रही है। बेटे को भाजपा में शामिल करने के बाद मंत्री पद मिलने के बावजूद अब अपने पोते आश्रय शर्मा को सक्रिय राजनीति में लाने की चाह उनके मन में है, जिसे वह अपनी आखिरी इच्छा बता चुके हैं।


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Vijay

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