Kundli Tv- जब वृंदावन की चींटियों के लिए संत के मन में जागा प्यार...

punjabkesari.in Thursday, Sep 20, 2018 - 04:32 PM (IST)

ये नहीं देखा तो क्या देखा (देखें Video)
प्राचीन समय की एक बात है, एक संत एक बार वृंदावन गए और कुछ दिन वहां घूमे-फिरे। कुछ दिनों बाद जब उन्होंने वापिस जाने का मन बना लिया तो उनेक मन में आया जाते समय एक आखिरी बार भगवान को भोग लगाता चलूं। इसके बाद उन्होंने रामदाने के कुछ लड्डू खरीदे और मंदिर जाकर प्रसाद चढ़ा आए और आश्रम में आकर सो गए। क्योंकि सुबह ट्रेन पकड़नी थी अगले दिन ट्रेन से चले। सुबह वृंदावन से चली ट्रेन को मुगलसराय स्टेशन तक आने में शाम हो गई।
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संत ने सोचा, अभी पटना तक जाने में तीन-चार घंटे और लगेंगे और भूख से हाल बेहाल हो रहा है। संत सोचने लगे कि मुगलसराय में ट्रेन आधे घंटे रूकेगी चलो हाथ-पैर धोकर संध्या वंदन करके कुछ पा लिया जाए। संत ने हाथ पैर धोए और लड्डू खाने के लिए डिब्बा खोला। उन्होंने देखा लड्डू में चींटियां लगी हुई थी, उन्होंने चींटियों को हटाकर एक दो लड्डू खा लिए। बाकी बचे लड्डू प्रसाद बांट दूंगा ये सोच कर छोड़ दिए। |

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पर कहते हैं न संत ह्रदय नवनीत समाना, बेचारे को लड्डुओं से अधिक उन चींटियों की चिंता सताने लगी। सोचने लगे, ये चींटियों वृंदावन से इस मिठाई के डिब्बे में आए हैं। बेचारे इतनी दूर तक ट्रेन में मुगलसराय तक आ गए। कितने भाग्यशाली थे, इनका जन्म वृन्दावन में हुआ था। अब इतनी दूर से पता नहीं कितने दिन या कितने जन्म लग जाएंगे इनको वापस पहुंचने में पता नहीं ब्रज की धूल इनको फिर कभी मिल भी पाएगी या नहीं। मैंने कितना बड़ा पाप कर दिया, इनका वृन्दावन छुड़वा दिया, नहीं मुझे वापस जाना होगा।


इतना सोचते हुए संत ने उन चींटियों को वापस उसी मिठाई के डिब्बे में सावधानी से रखा और वृन्दावन की ट्रेन पकड़ ली। उसी मिठाई की दूकान के पास गए डिब्बा धरती पर रखा और हाथ जोड़ लिए। मेरे भाग्य में नहीं कि तेरे ब्रज में रह सकूं तो मुझे कोई अधिकार भी नहीं कि जिसके भाग्य में ब्रज की धूल लिखी है उसे दूर कर सकूं। दूकानदार ने देखा तो आया, महाराज चीटें लग गए तो कोई बात नहीं आप दूसरी मिठाई तौलवा लो। संत ने कहा, भईया मिठाई में कोई कमी नहीं थी। इन हाथों से पाप होते-होते रह गया उसी का प्रायश्चित कर रहा हूं। दुकानदार ने जब सारी बात जानी तो उस संत के पैरों के पास बैठ गया, भावुक हो गया। इधर दुकानदार रो रहा था! उधर संत की आंखें गीली हो रही थीं।
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बात भाव की है, बात उस निर्मल मन की है, बात ब्रज की है, बात मेरे वृन्दावन की है। बात मेरे नटवर नागर और उनकी राधारानी की है, बात मेरे कृष्ण की राजधानी की है। बूझो तो बहुत कुछ है, नहीं तो बस पागलपन है, बस एक कहानी।

घर से जब भी बाहर जाए, तो घर में विराजमान अपने प्रभु से जरूर मिलकर जाएं और जब लौट कर आए तो उनसे ज़रूर मिले क्योंकि उनको भी आपके घर लौटने का इंतजार रहता है। घर में यह नियम बनाएं कि जब भी आप घर से बाहर निकले तो घर में मंदिर के पास दो घड़ी खड़े रहकर कहें, प्रभु चलिए आपको साथ में रहना हैं। ऐसा बोल कर ही घर से निकले, क्योंकि आपके हाथ में भले ही लाखों की क्यों न हों लेकिन समय तो प्रभु के ही हाथ में हैं न।

घर में यहां भूलकर भी न रखें नेलकटर वरना हो जाएंगे पागल 


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Jyoti

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