सत्ता को ‘बैसाखी’ नहीं, ‘ढाल’ बनाए जयराम सरकार

punjabkesari.in Wednesday, Sep 19, 2018 - 04:21 AM (IST)

ठहर -ठहर कर चलना और विपक्ष की दबाव की राजनीति में आ जाना किसी भी शासन के मुखिया के लिए बेहतर संकेत नहीं है। लगभग 9 माह का शासनकाल पूरा करने जा रहे हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर को अब अपनी मजबूत राजनीतिक छवि के संकेत देने की जरूरत है क्योंकि जरूरत से ज्यादा शराफत कहीं न कहीं उनको राजधर्म से भटका रही है। मंत्रिमंडल में उनके सहयोगी भी कहीं न कहीं मुख्यमंत्री की शराफत का भरपूर लाभ उठाते आ रहे हैं। 

हाईकमान ने जयराम ठाकुर के हाथों राज्य का नेतृत्व सौंप कर उन्हें फैसले लेने के लिए पूरी स्वतंत्रता दे रखी है लेकिन मजबूत टीम के अभाव में वह राज्य की ब्यूरोक्रेसी की बार-बार बैठकों वाली नीति और उनकी रंजिशों वाली राजनीति का शिकार होते आ रहे हैं। वहीं एक क्षेत्र विशेष को अधिक तवज्जो देना भी जयराम सरकार के लिए नुक्सानदेह साबित होने लगा है जिसका पहला परिणाम कांगड़ा जिला परिषद के उपाध्यक्ष पद पर भाजपा समॢथत प्रत्याशी की शर्मनाक हार से सरकार को मिला है। राजनीतिक दृष्टि से कांगड़ा जिला सबसे अहम माना जाता है क्योंकि प्रदेश के कुल 68 विधानसभा क्षेत्रों में से अकेले कांगड़ा जिला के अंतर्गत 15 विधानसभा क्षेत्र आते हैं। हालांकि इस जिले के चार कैबिनेट मंत्रियों ने ही यह सारा ताना-बाना बुना था  परन्तु फिर भी कांगड़ा जिला ने सत्ता विरोधी अपने रुझान से राज्य की भाजपा सरकार को आगाह कर दिया है। 

लोकसभा चुनावों को देखते हुए भाजपा और कांग्रेस दोनों अपनी-अपनी रणनीति बनाने में जुट गए हैं परन्तु सत्तारूढ़ भाजपा के बड़े नेता सरकार के अंदर अपनी अनदेखी से परेशान दिख रहे हैं क्योंकि इस अवधि में वोट बैंक पर मजबूत पकड़ रखने वाले एक भी नेता की ताजपोशी सरकार में नहीं हो पाई है। सरकार के अधीन करीब दो दर्जन से अधिक सार्वजनिक उपक्रम खाली पड़े हुए हैं। वहीं मंत्री न बनाए जाने के कारण ओ.बी.सी. वर्ग के नेता रमेश ध्वाला और अप्पर शिमला के कद्दावर नेता नरेंद्र बरागटा को एडजस्ट करने के लिए सृजित किए गए विधानसभा में मुख्य सचेतक और उप मुख्य सचेतक के पद भी लंबे समय से खाली पड़े हुए हैं। इस देरी पर भाजपा के बड़े नेताओं के सब्र का पैमाना अब छलक रहा है। 

भाजपा से संबंध रखने वाले भारतीय मजदूर संघ ने तो मजदूरों से संबंधित बोर्ड में चेयरमैन के पद पर घोषणा के बाद रोकी गई अपने नेता सुरेंद्र ठाकुर की ज्वाइनिंग को लेकर सरकार पर हल्ला बोल दिया है। भाजपा से जुड़े सूत्रों की मानें तो भाजपा कोर कमेटी ने महीनों पहले एक दर्जन के करीब वरिष्ठ नेताओं को सरकार में चेयरमैन और वाइस चेयरमैन नियुक्त करने पर सहमति दे दी थी लेकिन मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर पार्टी के इस निर्णय को अभी तक अमलीजामा नहीं पहना पाए हैं। हालांकि इस बीच मुख्यमंत्री ने मिल्कफैड के चेयरमैन के रूप में मंडी जिला से एक नियुक्ति जरूर की है जिससे बाकी जिलों के भाजपा कार्यकत्र्ता सकते में हैं क्योंकि इससे पहले अकेले मंडी जिला से 2 चेयरमैन और एक वाइस चेयरमैन बनाए जा चुके हैं। 

सत्ता में आते ही राज्य में निवेश को आकर्षित करने के लिए मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने किसी भी प्रोजैक्ट के लिए सरकारी अनुमतियों की पेचीदगी भरी प्रक्रिया को सरल करने के लिए सबसे अहम धारा 118 के सरलीकरण की बात कही थी। अभी भी मुख्यमंत्री विशेषकर पर्यटन क्षेत्र को राज्य में बढ़ावा देने की बातें कर रहे हैं लेकिन धारा 118 पर विपक्ष के थोड़े से हल्ले के बाद सरकार ने उलटे ऐसी सभी प्रकार की अनुमतियां देनी लगभग बंद कर दी हैं। राज्य का पर्यटन विभाग होटल इकाइयां आदि स्थापित करने के लिए आवश्यक अनिवार्यता प्रमाण पत्र जारी करने से भी गुरेज कर रहा है। वहीं राजस्व विभाग में होटल सहित अन्य उद्योगों की मंजूरियों से संबंधित केस लंबित पड़े हुए हैं, जबकि राज्य के पूर्व मुख्य सचिव और वर्तमान में राज्य निर्वाचन आयुक्त के पद पर आसीन पी. मित्रा द्वारा बतौर प्रधान सचिव (राजस्व) 8 साल पहले एक होटल इकाई के लिए सरकार को भेजी गई अनुमति की फाइल को लेकर इन दिनों विजीलैंस की कार्रवाई काफी चर्चा में है। 

हालांकि  ये सब ब्यूरोक्रेसी की आपसी रंजिशों से जुड़ा मामला बनता जा रहा है परन्तु इस मामले के छींटें उस वक्त मुख्यमंत्री रहे प्रो. प्रेम कुमार धूमल और राजस्व मंत्री गुलाब सिंह ठाकुर के चेहरे पर भी गिर सकते हैं क्योंकि विजीलैंस जिस मामले की जांच में पी. मित्रा पर शिकंजा कस रही है, उसकी मंजूरी प्रो.धूमल और गुलाब सिंह ने दी थी। वहीं विजीलैंस की जांच  प्रक्रिया से गुजर रहा राजस्व विभाग अब धारा 118 के तहत अनुमतियों की फाइलों को लंबित रखने में ही अपनी भलाई समझ रहा है। जाहिर है कि ऐसे में मुख्यमंत्री द्वारा निवेश मित्र माहौल तैयार करने की प्रक्रिया को गहरा झटका लग सकता है, जिसका असर राज्य के आॢथक और सामाजिक विकास पर पड़ेगा। 

इसी माह राज्य में मुख्य सचिव का पद खाली होने जा रहा है। अब वक्त आ गया है कि मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर सत्ता को बैसाखी की बजाय शासन की ढाल समझ कर अपने बड़े निर्णयों से राज्य के विकास की राह तय करें। मुख्यमंत्री पद के लिए घोषित प्रो.प्रेम कुमार धूमल की हार के बाद अचानक राज्य की बागडोर हाथों में आ जाने से जयराम ठाकुर अपनी टीम के लिए बेहतर ब्यूरोक्रेट्स का चयन करने में चूक गए थे लेकिन अब नए मुख्य सचिव के साथ-साथ वह अगर टीम में बेहतर बदलाव करेंगे तो ही वह 2019 में होने वाले अपने पहले लोकसभा चुनावों की परीक्षा में खरा उतर पाएंगे। वहीं सचिवालय में मंत्रियों का मौजूद न रहना तथा एक-दूसरे के विधानसभा क्षेत्रों में दखल की शिकायतें भी मुख्यमंत्री को खुद सुलझाने की जरूरत है।-डा. राजीव पत्थरिया


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Pardeep

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