ये ‘हिटलर के पुजारी’

punjabkesari.in Tuesday, Sep 18, 2018 - 05:06 AM (IST)

यूं तो रोजाना लाखों नहीं तो हजारों लोग यह दुनिया छोड़कर चल बसते हैं, उनमें से बहुतों के चले जाने पर किसी के कान पर जूं तक नहीं सरकती। लोग उनकी लाश को जमीन पर बोझ समझ कर जल्दी से जल्दी इससे पीछा छुड़ाने के लिए भागदौड़ करते हैं। हम सब जानते हैं कि इंसान बेबुनियाद और अस्थायी है, एक पल जिंदा है तो दूसरे पल वह लाश है। 

अभी-अभी दो मौतें हुई हैं-एक की मौत पर सारी दुनिया में हाहाकार मच गई है, जबकि दूसरे की मौत किसी कुत्ते की मौत से भी कम अहमियत रखती है। पहली मौत कुलसुम नवाज की है। दूसरी मौत एक हिजड़े की है, जिसको साहीवाल में सरेआम दिन-दिहाड़े जिंदा जला दिया गया। वह चीखता रहा, उसका गोश्त जलता रहा, उसके जिंदा गोश्त के जलने की बदबू हवा में फैली रही, न किसी ने उसकी चीखों को सुना और न ही किसी को उसके जिंदा गोश्त जलने की बू आई। अगर किसी को बू आई भी तो उसने नाक को किसी कपड़े से ढांप कर अपना रास्ता लिया। 

कुलसुम नवाज और यह हिजड़ा दोनों इंसान थे। इन दोनों में इंसानों वाली तमाम शारीरिक खासियतें एक जैसी थीं। दोनों को रब ने बनाया और दोनों के बारे रब ने उनके वजूद की सलामती का एहतराम करने का एक जैसा ही पैगाम दिया। रब के अलावा पूरी इंसानी तारीख में इंसान, दोस्त लोगों ने उनके जीने के हक बारे बात की। फिर यह किया है? एक को बचाने के लिए दुनिया का हर तरीका इस्तेमाल किया गया। साइंस की अब तक की तरक्की का हर पहलू इस्तेमाल किया गया। मस्जिदों में एकजुट होकर रब से इसकी जिंदगी के लिए भीख मांगी गई, दरबारों और मजारों पर मन्नतें मांगी गईं, लाखों और करोड़ों दुआएं मांगी गईं। और तो और रब के खासमखास घर, खाना काबा और मजार-ए-नबी पर भी अर्ज की गई। सदके दिए गए। दुनिया में जो भी चारा लगाया जा  सकता था, लगाया गया लेकिन कुलसुम नवाज जिंदा न रही और चल बसी। 

दूसरी जानिब भी एक इंसान था, जो सारी जिंदगी अपने इंसान होने की भीख मांगता रहा। इसको बतौर इंसान जिंदगी गुजारने की भीख तो न दी गई लेकिन जलालत जरूर दी गई और दर्दनाक मौत भी। इसको जीते जी भरे बाजार में सबके सामने जला दिया गया। इस बाजार में मुसलमान, मोमिन, हाजी, नमाजी, मस्जिदों को बड़े-बड़े चंदे देने वाले, पीरों-फकीरों के दरबारों पर हाजिरी देने वाले और मिन्नतें मानने वाले सब शामिल थे। उनमें इंसानियत के एहतराम का प्रचार करने वाले तथाकथित इंसानियत परस्त और बाएं बाजू के इंकलाबी भी शामिल होंगे। यह जलता रहा, चीखता रहा, तड़पता रहा। सब चुप्पी साध कर पास से गुजर गए। इस बंदे का कसूर क्या था? रब ने उसको औरत और मर्द के बीच पैदा किया। इसका हिजड़ा पैदा होना उसका अपना इंतिखाब नहीं था। यह इंतिखाब रब का था। हिजड़ा होने के नाते यह इंसानी नस्ल को आगे बढ़ाने के लिए अक्षम था। यह दिव्यांग था और लोग भी दिव्यांग पैदा होते हैं, कोई अंधा पैदा होता है, कोई काना, कोई लंगड़ा, कोई बहरा, कोई बांझ। 

अगर बारीकी से देखा जाए तो दुनिया में शायद ही कोई इस तरह का इंसान हो जो किसी ऐब के बगैर पैदा हुआ है। अगर किसी में कोई जिस्मानी ऐब या दिव्यांगता नहीं तो कोई न कोई मानसिक दिव्यांगता जरूर होती है। तारीख में हमें बड़ी-बड़ी हस्तियां मिलती हैं, जिनमें कोई न कोई दिव्यांगता या जिस्मानी ऐब था। किसी को मिर्गी के दौरे पड़ते थे तो किसी को कोई और बीमारी थी। तारीख में इंसान को इंसानों की दिव्यांगता व शारीरिक ऐबों का इल्म था और इंसान ने इसका हल निकालने का चारा किया। तिब्ब और हिकमत इसी मसले के हल का नाम था। अस्पताल बने। जो लोग लाइलाज थे, इंसान ने उनके भी जिंदा रहने का बंदोबस्त किया। तारीख में ऐसे लोग भी हुए हैं जिन्होंने दिव्यांगों और बीमारों को बोझ समझ कर उनका हल मौत निकाला। इन इंसान मारू लोगों में एक शख्स हिटलर भी था जिसने दिव्यांगों को यहूदियों, खानाबदोशों कम्युनिस्टों और होमो सैक्सुअलों के साथ गैस चैम्बर में बंद कर हलाक कर दिया। 

हिटलर तो मर गया लेकिन वक्त- बेवक्त हिटलर के जांनशीन पैदा होते रहे। कभी ये जांनशीन हाकिम थे तो कभी आम फर्द। कभी हिटलर की रूह समाज के जरिए जाहिर हुई और इस समाज में इंसान को कभी एक फर्द के तौर पर मारा गया और कभी एक ग्रुप की शक्ल में। साहीवाल में जब एक हिजड़े को जिंदा जलाया गया तो यह सामाजिक नाजीवाद की ही एक शक्ल है। जो काम हिटलर ने दिव्यांगों और होमोसैक्सुअलों या ख्वाजा सराओं के साथ किया वह काम साहीवाल में हिटलर के पुजारियों ने एक ख्वाजासरा को जला कर किया। अगर पाकिस्तान की रियासत इस जुर्म को जायज समझ कर हिटलर के इन पुजारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करती तो फिर अगली बारी पाकिस्तान में बसते तमाम दिव्यांगों और बीमारों की है। इस काम के लिए पाकिस्तान में गैस चैम्बर्ज तामीर करने पड़ेंगे।-सय्यद आसिफ शाहकार


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Pardeep

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