Kundli Tv- कैसे भगवान जगन्नाथ ने तुलसीदास को कराए उनके इष्ट के दर्शन?

punjabkesari.in Tuesday, Sep 04, 2018 - 01:36 PM (IST)

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हिंदू धर्म में गोस्वामी तुलसीदास को रामचरित मानस के रचियता के रूप में जाना जाता है। इसे आमतौर पर 'तुलसी रामायण' या 'तुलसीकृत रामायण' भी कहा जाता है। आज आपको उन्हीं से जुड़ी एक कथा के बारे में बताएंगे, जिसमें वह अपने ईष्टदेव का दर्शन करने की चाह रखते हैं। 
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एक बार तुलसीदास अपने ईष्ट श्री राम के दर्शन की इच्छा लिए जगन्नाथ पुरी की ओर चल पड़े। वहां पहुंचने के बाद लोगों की भीड़ को देखकर वह बहुत खुश हुए और मंदिर के अंदर दर्शन करने के लिए चले गए। लेकिन जैसे ही उन्होंने श्री जगन्नाथ जी को देखा और अचानक ही उनके चेहरे पर निराशा छा गई और वह बाहर आकर मन में सोचने लगे कि इतनी दूर आना भी मेरा बेकार हुआ, क्योंकि यह बिना हाथों के मेरे ईष्ट नहीं हो सकते हैं। रात काफी हो गई थी तो वह थके-हारे, भूखे-प्यासे एक जगह पर आराम करने के लिए बैठ गए।
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कुछ समय के बाद वहां आहट होने लगी और तुलसीदास को एक बालक की आवाज़ सुनाई दी जो उनका ही नाम पुकार रहा था। उन्होंने उसे अपने पास बुलाया और कहा कि मैं ही तुलसीदास हूं। उस बच्चे के हाथ में एक थाली थी जो उसने तुलसीदास की ओर करके कहा कि ‘लीजिए, जगन्नाथ जी ने आपके लिए प्रसाद भेजा है।’

तुलसीदास बोले ‘कृपा करके इसे वापस ले जाएं।’

बालक ने कहा, ‘जगन्नाथ का भात-जगत पसारे हाथ’ और वह भी स्वयं महाप्रभु ने भेजा और आप स्वीकार नहीं कर रहे हैं। कारण क्या है?’
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तुलसीदास ने कहा कि, ‘मैं अपने ईष्ट को भोग लगाएं बिना कुछ भी ग्रहण नहीं करता और फिर यह जगन्नाथ का जूठा प्रसाद जिसे मैं अपने ईष्ट को नहीं खिला सकता, ये मेरे किसी काम का नहीं हैं।’

बालक ने मुस्कराते हुए कहा कि यह आपके ईष्ट ने ही तो भेजा है।

तुलसीदास बोले- यह बिना हाथों वाला मेरा ईष्ट नहीं हो सकता।

बालक ने कहा कि आपने श्रीरामचरितमानस में तो इसी रूप का वर्णन किया है-

बिनु पद चलइ सुनइ बिनु काना।
कर बिनु कर्म करइ बिधि नाना ।।
आनन रहित सकल रस भोगी।
बिनु बानी बकता बड़ जोगी।।

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यह सुनकर तुलसीदास का चेहरा देखने लायक था। आंखों में आंसू, मुंह से शब्द नहीं निकल रहे थे। थाल रखकर वह बालक बोला कि मैं ही राम हूं। मेरे मंदिर के चारों द्वारों पर हनुमान का पहरा है। विभीषण नित्य मेरे दर्शन को आता है। कल प्रातः तुम भी आकर दर्शन कर लेना। यह कहकर वह बच्चा अदृश्य हो गया। 

इसके बाद तुलसीदास ने बड़े प्रेम से प्रसाद खाया। सुबह होने पर मंदिर पहुंचने पर उन्हें भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के स्थान पर श्री राम, लक्ष्मण और माता जानकी के भव्य दर्शन हुए। भगवान एेसे हैं कि उन्होंने अपने भक्त की इच्छा पूरी की।

जिस स्थान पर तुलसीदास रात के समय रुके थे, उस जगह का नाम ‘तुलसी चौरा’ रखा गया। आज के समय में वहां पर तुलसीदास जी की पीठ ‘बड़छता मठ’ के रूप में विख्यात है।
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