सदियों पुरानी प्रथा होने से खतना धार्मिक प्रथा नहीं बन जाती : सुप्रीम कोर्ट

punjabkesari.in Monday, Aug 20, 2018 - 11:53 PM (IST)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि सदियों पुरानी प्रथा होने से खतना धार्मिक प्रथा नहीं बन जाती। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह दलील यह साबित करने के लिए ‘पर्याप्त’ नहीं कि दाऊदी बोहरा मुस्लिम समुदाय की नाबालिग लड़कियों का खतना 10वीं सदी से होता आ रहा है। कोर्ट ने कहा कि पुरानी प्रथा होने से यह जरूरी नहीं कि यह ‘आवश्यक धार्मिक प्रथा’ का हिस्सा है जिस पर अदालत द्वारा पड़ताल नहीं की जा सकती। प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा के नेतृत्व वाली पीठ ने यह बात एक मुस्लिम समूह की ओर से पेश हुए अधिवक्ता ए एम सिंघवी की दलीलों का जवाब देते हुए कही।

सिंघवी ने अपनी दलील में कहा कि यह एक पुरानी प्रथा है जो कि ‘जरूरी धार्मिक प्रथा’ का हिस्सा है और इसलिए इसकी न्यायिक पड़ताल नहीं हो सकती। इस पीठ में न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ भी शामिल थे। सिंघवी ने पीठ से कहा कि यह प्रथा संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 के तहत संरक्षित है जो कि धार्मिक स्वतंत्रता से संबंधित है। यद्यपि पीठ ने इससे असहमति जताई और कहा, ‘यह तथ्य पर्याप्त नहीं कि यह प्रथा 10 सदी से प्रचलित है इसलिए यह धार्मिक प्रथा का आवश्यक हिस्सा है।’ पीठ ने कहा कि इस प्रथा को संवैधानिक नैतिकता की कसौटी से गुजरना होगा। इस मामले में सोमवार को सुनवाई अधूरी रही और इस पर 27 अगस्त से फिर से सुनवाई होगी। 


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shukdev

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