ताबो बौद्ध मठ में कला का बेजोड़ नमूना देख रह जाएंगे हैरान

punjabkesari.in Tuesday, Aug 14, 2018 - 02:59 PM (IST)

उदयपुर: हिमाचल को देव भूमि कहा गया है। ऐसा कोई गांव अथवा क्षेत्र नहीं जहां देवी-देवताओं के मंदिर न हों। इतिहास गवाह है कि द्वापर युग से लेकर जितने भी मंदिर बने हैं सभी मानव निर्मित हैं। श्रद्धा और विश्वास की कशमकश में सवाल पैदा हुए हैं कि देवभूमि को 33 करोड़ देवी-देवताओं का निवास स्थान माना गया है तो क्या देवी-देवताओं ने कभी अपने लिए कोई आश्रम नहीं बनाए होंगे। अगर बनाए हैं तो कहां हैं उनका देवलोक। लाहौल-स्पीति के ताबो में इन सभी सवालों के जवाब मिले हैं। ताबो में देवी-देवताओं का बनाया मंदिर आज भी है और ऐसी कलाकृतियां भी हैं जिन्हें देखते ही बड़े से बड़ा शिल्पकार नतमस्तक है।

देवताओं ने एक ही रात में बनाए थे भित्तिचित्र
विशुद्ध मिट्टी के बने बौद्ध गोंपा के गर्भगृह में अलौकिक भित्तिचित्र भी मिट्टी से ही निर्मित बताए जा रहे हैं। भित्ति चित्रों की संरचनाओं में स्वर्णिम चमक ऐसी कि देखने वाले पलक झपकना भूल जाएं। मान्यता है कि 1022 साल पूर्व बौद्ध मंदिर सहित समस्त भित्तिचित्र देवी-देवताओं ने एक ही रात में बनाए थे। स्थानीय लोगों का कहना है कि मठ के गर्भगृह में जो सैंकड़ों भित्तिचित्र हैं वह दुनिया की दुर्लभ कलाकृतियोंं में से एक हैं। ऐसी कलाकृतियां पूरी दुनिया में कहीं नहीं हैं। शिल्पकारों के ऐसे कोई मानवीय हाथ नहीं जो इन कलाकृतियों को बना सकें। दिव्य कला से परिपूर्ण सभी भित्तिचित्र अपने आप में इसलिए भी अनुपम हैं क्योंकि इनकी भाव भंगिमाएं और कलात्मक बारीकियां विश्व की समस्त कलाकृतियों से बिल्कुल अलग हैं।

चित्रों को छूना व फोटो लेना है मना
विशुद्ध मिट्टी के बौद्ध मंदिर में दुर्लभ भित्तिचित्र बिल्कुल सुरक्षित हैं। इन भितिचित्रों की बदौलत ताबो बौद्ध मठ को हिमाचल का अजंता-एलोरा भी कहा गया है। सभी भित्तिचित्र अंधेरे गर्भगृह के अंदर दीवारों पर स्थापित हैं। इस मंदिर में फोटो खींचना पूर्णतया निषेध है। भित्तिचित्रों को न तो छू सकते हैं और न ही फोटो खींच सकते हैं। सुरक्षा कारणों से यह पाबंदी लगाई गई है। लामा बताते हैं कि कैमरा लाइट से भित्तिचित्रों के रंगों पर प्रतिकूल असर पड़ता है।

मिट्टी के बने मठ बारिश व बर्फबारी से भी हैं सुरक्षित
भित्तिचित्रों के अलावा गोंपा परिसर के सभी मठों की दीवारें-छतें सब कुछ मिट्टी से निर्मित हैं। अचंभा पैदा करने वाली मिट्टी की अनूठी वास्तुकला को एक हजार से अधिक सालों से न तो बर्फबारी क्षति पहुंचा पाई है और न ही कभी बारिश की बौछारों से कोई असर पड़ा है। ऐसी भी मान्यता है कि महान शिल्पी लोचा रिगजिन झांगपो ने ताबो मठ का निर्माण 996 ई.पू. में किया था। पुरातात्विक महत्व की धरोहर घोषित होने के बाद ताबो गोंपा हालांकि पुरातत्व विभाग के संरक्षण में आ गया है लेकिन गोंपा के संभालने का कार्यभार बौद्ध लामा ही संभाल रहे हैं। गोंपा की धरोहरों को सहेजने के साथ-साथ सभी प्रकार की व्यवस्थाओं को चुस्त-दुरुस्त रखने में बौद्ध लामा खूब श्रम कर रहे हैं।


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Vijay

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