भारतीय अर्थव्यवस्था का दोहन करना चाहता है ऑस्ट्रेलिया

punjabkesari.in Tuesday, Aug 14, 2018 - 03:15 AM (IST)

आस्ट्रेलिया में शोधकत्र्ताओं ने 500 पृष्ठों की एक रिपोर्ट पेश की है कि कैसे भारत की अर्थव्यवस्था का दोहन किया जा सकता है और इसके साथ-साथ चीन पर अतिनिर्भरता कैसे समाप्त की जा सकती है। वर्तमान में आस्ट्रेलिया के वार्षिक व्यापार का 24 प्रतिशत चीन के साथ है जबकि भारत के साथ उसका व्यापार महज 3.6 प्रतिशत है। आस्टे्रलियाई सरकार से समर्थन प्राप्त इस शोध में कुछ स्पष्ट निष्कर्ष निकाले गए हैं। 

हिंद महासागर के दोनों ओर स्थित 2 प्रमुख लोकतंत्रों के बीच आर्थिक वार्ता में आस्ट्रेलिया की एक व्यापक आर्थिक सहयोग समझौते (सी.ई.सी.ए.) को अंतिम रूप देने की इच्छा का प्रभुत्व रहा है और भारत का व्यवसाय अडानी की कारमाइकल कोयला परियोजना के भविष्य पर निर्भर करता है। ‘एन इंडिया इकोनॉमिक स्ट्रैटेजी टू 2035’ नामक रिपोर्ट जारी करते हुए आस्ट्रेलियाई उच्चायुक्त हरिंद्र सिद्धू ने कहा कि आस्ट्रेलिया भारत के साथ एक उच्च गुणवत्तापूर्ण मुक्त व्यापार समझौता करने के लिए कटिबद्ध है। 

आस्ट्रेलियाई विदेशी मामलों तथा व्यापार विभाग के पूर्व सचिव और मूल रूप से भारतीय पीटर वर्गीज (वह 2009 से 2012 तक उच्चायुक्त थे) द्वारा लिखित रिपोर्ट में कहा गया है कि अडानी की कारमाइकल खदानों जैसी परियोजनाओं को भविष्य के लिए सम्भावित निवेश हेतु ‘टैस्ट केस’ के तौर पर देखा (भारतीय व्यवसाय द्वारा) जा रहा है। ऐसा विचार है कि यह अनुभव भारतीय निवेशकों को सम्भवत: आस्ट्रेलिया को एक ‘अत्यंत कड़ी स्पर्धा’ की ओर ले जा सकता है। भारत ने यह तर्क देते हुए सी.ई.सी.ए.  पर बहुत कम उत्सुकता दिखाई है कि आस्ट्रेलिया के पास देने के लिए बहुत कम चीजें हैं जो भारतीयों को उन पर कम शुल्क लगाने को बाध्य कर सकती हैं। रिपोर्ट इस धारणा को दूर करना चाहती है कि शिक्षा तथा वित्तीय सेवाओं से लेकर स्वास्थ्य तक 10 क्षेत्रों पर ध्यान देना चाहिए। 

कैनबरा ने 27 वर्षों तक जापान, दक्षिण कोरिया तथा हाल ही में चीन, जो मुख्य रूप से वस्तुओं का निर्यातक है, के साथ आर्थिक विकास का बेरोक-टोक लाभ उठाया है। मगर जैसा कि सिद्धू ने अपने श्रोताओं को याद दिलाया है, रणनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा आस्ट्रेलियाइयों को यह याद दिलाना है कि भारत सम्भवत: उसी माडल पर नहीं चलेगा। सरल शब्दों में कहें तो भारत चीन नहीं है। आस्ट्रेलिया के लिए यह निराशाजनक है। रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘‘अगले 20 वर्षों तक भारत जैसा कोई भी ऐसा बाजार नहीं है जो आस्ट्रेलियन व्यवसाय के लिए विकास के अधिक अवसर प्रदान कर सकता हो। आज जोखिम यह है कि हम पर्याप्त तेजी से आगे नहीं बढ़ रहे और आस्ट्रेलिया सम्भवत: पिछड़ सकता है।’’ आस्ट्रेलिया ने पाया है कि भारत के साथ तालमेल बनाना इतना आसान नहीं है। फिर भी एक अर्थव्यवस्था के तौर पर भारत की लम्बी छलांग को देखते हुए आस्ट्रेलिया इसके साथ व्यापारिक तथा निवेश संबंध बनाने को उत्सुक है। 

रिपोर्ट का एक पहलू यह भी है कि क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभुत्व को लेकर एशिया में असंतोष बढ़ रहा है। संयोग से इस सप्ताह नई दिल्ली में अनंत आस्पेन इंस्टीच्यूट द्वारा आयोजित एक अन्य कार्यक्रम में पूर्व विदेश सचिव शिवशंकर मेनन ने कहा कि कोई भी एशियाई देश चीन अथवा अमरीका के अत्यंत करीब नहीं होना चाहता। उन्होंने कहा कि प्रत्येक देश एक संतुलन का खेल खेल रहा है, कई बार असंगत स्थितियों के बीच। भारत तथा आस्ट्रेलिया के बीच बढ़ते तालमेल, विशेषकर हिंद महासागर को मुक्त व्यापार के क्षेत्र के तौर पर बनाए रखने की उनकी चाहत को देखते हुए रिपोर्ट एक सम्भावित धुरी के तौर पर रक्षा सहयोग का भी प्रस्ताव देती है जिस पर दोनों देश करीब रहते हुए आगे बढ़ सकते हैं। 

रिपोर्ट में कहा गया है कि क्षेत्रीय रक्षा सांझेदार होने के नाते, बढ़ते रणनीतिक तालमेल के चलते आस्ट्रेलिया तथा भारत यदि रक्षा उद्योग में सहयोग के अवसरों को तलाश करें तो काफी लाभदायक रहेगा। दोनों के बीच एक सकारात्मक रणनीतिक सूझबूझ भी तकनीकों को सांझा करने की भूख को  बढ़ा सकती है। सिद्धू ने बताया कि अध्ययन की शुरूआत आस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री मैल्कम टर्नबुल द्वारा करने के पीछे एक साधारण कारण यह है कि भारत आस्ट्रेलिया के लिए मायने रखता है। इसके साथ ही सिद्धू ने यह भी स्वीकार किया कि आस्ट्रेलियाई कम्पनियों के लिए व्यवसाय करने के लिहाज से भारत अभी भी एक ‘चुनौतीपूर्ण स्थान’ बना हुआ है। उन्होंने कहा कि बहुत-सी आस्ट्रेलियाई कम्पनियों के लिए भारत के बारे सूचना काफी पुरानी है। 

रिपोर्ट में भारत की भावना को भी सांझा किया गया है। वर्गीज रिपोर्ट में कहा गया है कि स्रोतों, शिक्षा, खनन तथा एक अलग मायने में खेलों जैसे बाहरी क्षेत्रों के मामले में भारत स्वाभाविक तौर पर आस्ट्रेलिया को अपने पहले ‘आर्डर पार्टनर’ के तौर पर नहीं देखता। कैनबरा चाहता है कि भारत अपनी इस भावना को बदले।-एस. भट्टाचार्य


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Pardeep

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