बलात्कार के मामलों में ‘बदनाम देश’ बन चुका है भारत

punjabkesari.in Tuesday, Aug 14, 2018 - 02:47 AM (IST)

भारत में लड़कियां और महिलाएं निरंतर संघर्षरत हैं। हमारा देश बलात्कार की घटनाओं के लिए कुख्यात बन चुका है जहां पर लड़कियों के साथ अत्याचार किए जाते हैं, उन्हें नशीली दवाएं दी जाती हैं, उनके साथ मारपीट की जाती है और बलात्कार किया जाता है। देश में आश्रय गृहों की स्थापना लड़कियों के पुनर्वास और उन्हें गरिमापूर्ण जीवन देने के लिए की गई किंतु ये आश्रय गृह कुत्सित सोच के पुरुषों के लिए वेश्यालय बन गए। 

बिहार के मुजफ्फरपुर के एक आश्रय स्थल में 30 लड़कियों के साथ बलात्कार किया गया जिनमें एक 7 वर्ष की बधिर बालिका भी शामिल थी, जिसके साथ अत्याचार किया गया, उसे नशा कराया गया और इस आश्रय स्थल के मालिक ब्रजेश ठाकुर जिसे ये बालिकाएं हंटरवाले अंकल कहती थीं और उसके साथियों ने 4 वर्ष तक बलात्कार किया। 

मुजफ्फरपुर की घटना सुर्खियों में थी कि उत्तर प्रदेश के देवरिया से भी ऐसी ही खबर मिली जहां पर एक आश्रय स्थल से 10 वर्ष की बालिका बाहर भाग निकली और उसने वहां हो रहे अत्याचारों के बारे में प्राधिकारियों को बताया। यह आश्रय स्थल एक वर्ष से अधिक समय से बिना लाइसैंस के चल रहा था। इस आश्रय स्थल से बालिकाओं को रात में गाडिय़ों से ले जाया जाता और सुबह उन्हें वापस भेज दिया जाता। वे इतनी घबराई होती थीं कि कुछ कह नहीं पाती थीं और पूरा दिन रोती-बिलखती रहती थीं। देवरिया का यह आश्रय गृह एक गैर-सरकारी संगठन द्वारा अवैध रूप से चलाया जा रहा था क्योंकि उत्तर प्रदेश के महिला और बाल कल्याण विभाग ने इसका लाइसैंस जुलाई 2017 में निलंबित कर दिया था क्योंकि सी.बी.आई. ने इसके विरुद्ध वित्तीय अनियमितताओं की रिपोर्ट दी थी। इस आश्रय गृह से अब तक 24 लड़कियों को बचाया जा चुका है और 18 लड़कियां अभी भी गायब हैं।

मुजफ्फरपुर और देवरिया के आश्रय गृहों के मालिक ब्रजेश ठाकुर और गिरजा त्रिपाठी को गिरफ्तार किया जा चुका है किंतु इससे वे भयंकर अपराधों से मुक्त नहीं हो जाते। उन्हें क्या सजा दी जाएगी? क्या कानून अपना कार्य करेगा और उन्हें जमानत मिल जाएगी और फिर मामला 20 वर्षों तक ङ्क्षखचता चला जाएगा? बिहार में बाल और महिला विभाग के मंत्री ने त्यागपत्र दे दिया है। राज्य बाल संरक्षण एकक के 6 अधिकारियों को निलंबित कर दिया गया है। उत्तर प्रदेश सरकार ने देवरिया के जिला मैजिस्ट्रेट का स्थानांतरण कर दिया है। सरकार ने अपनी जिम्मेदारी निभा दी और इस मुद्दे से अपने हाथ धो लिए। किंतु सरकार और समाज इस मामले में पूरी तरह विफल रहे हैं क्योंकि वे हमारे शहरों और वातावरण को महिलाओं के लिए सुरक्षित नहीं बना पाए। 

हमारे नेतागण आंखें मूंदे बैठे हैं क्योंकि वे मामले को तोडऩे-मरोडऩे में व्यस्त हैं न कि इन घटनाओं के कटु तथ्यों पर नजर डाल रहे हैं। आज स्थिति यह है कि यदि गलियों में किसी महिला की खींचकर पिटाई की जाती है, उसके साथ दुव्र्यवहार होता है या चलती कारों, खेतों या घरों में उनके साथ सामूहिक बलात्कार होता है तो भी हम पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। इन दोनों घटनाओं ने भानुमति का पिटारा खोल दिया है। उत्तर प्रदेश के एक अन्य आश्रय गृह प्रतापगढ़ में 32 में से 26 महिलाएं गायब मिलीं। अष्टभुजा नगर में 17 बालिकाओं में से केवल 1 मिली और अचलपुर में 15 में से 12। पीलीभीत में 30 में से 23 और हरदोई में 19 बालिकाएं गायब हैं। 

हैरानी की बात यह है कि उच्चतम न्यायालय द्वारा जिस एजैंसी को दिसम्बर 2017 तक पूरे भारत में बाल गृहों की जांच का जिम्मा सौंपा गया उसे 9 राज्यों में बाल गृहों में जाने नहीं दिया गया। इन राज्यों में बिहार, उत्तर प्रदेश, ओडिशा, दिल्ली, छत्तीसगढ़, हिमाचल और पश्चिम बंगाल शामिल हैं और इसका कारण यह बताया गया कि हम अपनी जांच कराएंगे। देश में 1339 बाल गृहों ने अभी पंजीकरण नहीं कराया है। उच्चतम न्यायालय ने एक कटु टिप्पणी की है कि ‘‘बलात्कार हर जगह हो रहे हैं। क्या बालिकाओं के साथ व्यवहार का यही तरीका है? यह भयावह है।’’ भारत में महिलाओं के विरुद्ध अपराधों में बलात्कार का चौथा स्थान है। देश में प्रत्येक मिनट में 5 बलात्कार होते हैं। छेड़छाड़ की घटना प्रत्येक 6 मिनट में होती है और अपहरण की घटना प्रत्येक 43 मिनट में। प्रत्येक 7 मिनट में महिलाओं के विरुद्ध अपराध होते हैं। फिर भी हम अपने को सभ्य समाज कहते हैं। 

इन घटनाओं को देखते हुए मोदी सरकार ने दंड संशोधन अध्यादेश 2008 पारित किया जिसमें बलात्कार के लिए न्यूनतम सजा 7 वर्ष से बढ़ाकर 10 वर्ष का सश्रम कारावास कर दिया और इसे आजीवन कारावास में भी बदला जा सकता है। 16 वर्ष से कम आयु की लड़की के साथ बलात्कार की घटना में दंड 20 वर्ष कर दिया गया है और उसे आजीवन कारावास में भी बदला जा सकता है तथा 12 वर्ष से कम आयु की लड़की के साथ बलात्कार में मृत्युदंड का प्रावधान किया गया है। बलात्कार के विरुद्ध कठोर कानून बनाने के बावजूद यौन अत्याचार बढ़ते जा रहे हैं। राष्ट्रीय अपराध अभिलेख ब्यूरो के अनुसार देश में प्रति वर्ष 39 हजार यौन अपराध होते हैं। वर्ष 2015 की तुलना में 2016 में छोटी लड़कियों के साथ बलात्कार की घटनाओं में 82 प्रतिशत की वृद्धि हुई है और बलात्कार के 40 प्रतिशत मामलों में पीड़ित 18 वर्ष से कम आयु की थी। 

चौंकाने वाली बात यह भी है कि बलात्कार के 95 प्रतिशत मामलों में बलात्कारी पारिवारिक सदस्य, मित्र या पड़ोसी रहे हैं। दहेज के कारण प्रत्येक एक घंटे में एक महिला की मृत्यु होती है। 50 प्रतिशत पुरुष मानते हैं कि महिलाओं की पिटाई की जानी चाहिए। हालांकि सरकार ने बेटी बचाओ नारा दिया है। त्रासदी यह है कि बालिकाओं के दमन को नया रूप दे दिया गया है। ऐसे मामलों में परिवार तक पहुंच नहीं हो पाती है। बालिकाओं को चुप रहने की शिक्षा दी जाती है। उनसे कहा जाता है कि धीरे बोलो। वे अपनी राय व्यक्त नहीं कर सकतीं और न ही कोई तर्क कर सकती हैं। मौन महिलाओं को नजरअंदाज किया जा सकता है और बिना परिणामों की परवाह किए उनके साथ अत्याचार किया जाता है, जिसके चलते आनंद प्राप्त करने के लिए एक ङ्क्षहसा की संस्कृति पैदा हो रही है। 

हमारे राजनेता मेरा देश महान और ब्रांड इंडिया की बातें करते हैं किंतु महिलाएं और लड़कियां यहां असुरक्षित वातावरण में रह रही हैं, जहां पर उन्हें सैक्स और पुरुषों की काम वासना शांत करने की वस्तु माना जाता है। कुछ महिलाओं का कहना है कि अपनी पेशेवर जिंदगी में आगे बढऩे के लिए उन्हें गॉड फादर की आवश्यकता होती है जो उनके करियर को बना या बिगाड़ सकते हैं और उन्हें हर स्तर पर समझौता करना पड़ता है। आज स्थिति यह है कि यदि कोई मामला बड़े लोगों का न हो तो सड़कों पर लड़कियों को खींचने, चलती कारों में सामूहिक बलात्कार आदि की घटना  पर हम मौन रहते हैं। लंदन की एक फर्म द्वारा 150 शहरों के सर्वेक्षण में पाया गया कि नई दिल्ली बलात्कार की राजधानी है और उसका स्थान 139वां है जबकि मुंबई का स्थान 126वां है। 

इस स्थिति से निपटने का रास्ता क्या है? हमारे नेताओं को इस बात पर गंभीरता से ध्यान देना होगा अन्यथा महिलाओं के विरुद्ध अत्याचार नहीं रुकेंगे। इस दिशा में पुलिस कानूनों को मजबूत करना होगा, जिससे पुरुष ऐसा कदम उठाने से पहले 10 बार सोचे। ऐसे वातावरण में जहां पर नैतिकता और नैतिक मूल्यों में गिरावट आ रही हो और पूरे देश में नैतिक पतन देखने को मिल रहा हो वहां पर हमें इस बात पर गंभीरता से विचार करना होगा कि महिलाएं कब तक पुरुषों के वेश में काम पिपासु पुरुषों के हाथों की कठपुतलियां बनी रहेंगी। यौन उत्पीडऩ के मुद्दों पर आवाज उठाने की आवश्यकता है। जिन महिलाओं के साथ यौन उत्पीडऩ होता है उन्हें अपनी बात आगे रखनी होगी, इससे अधिक लोग उनके समर्थन में आएंगे। 

यदि वे चुप रहेंगी तो इससे पुरुषों को ऐसे अपराध करने के लिए प्रोत्साहित ही करेंगी। इसके अलावा महिलाओं को सुरक्षित कार्य वातावरण उपलब्ध कराना होगा और यौन उत्पीडऩ के बारे में पुरुषोंं और महिलाओं के लिए प्रबोधन कार्यक्रम चलाने होंगे। कठिन समय में कठिन कदम उठाने होते हैं। इस संबंध में क्रांतिकारी बदलावों की आवश्यकता है। केवल अच्छी बातें कहने से काम नहीं चलेगा। हमें यह बात ध्यान में रखनी होगी कि लोकतंत्र ऐसी वेश्या नहीं है जिसे पुरुष सड़कों से उठा दे। क्या हम नई राह तैयार कर महिलाओं को मुक्ति दिलाएंगे या ऐसे देश में रहेंगे जहां पर महिलाएं असुरक्षित हैं?-पूनम आई. कौशिश    


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Pardeep

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