आज भी खड़ा है ऐसा पत्थर जिसकी बदौलत लाखों को मिली रोटी

punjabkesari.in Monday, Aug 13, 2018 - 02:02 PM (IST)

कुल्लू: वक्त कभी रुकता नहीं। अभी जो हुआ, वक्त बीतने के साथ वह इतिहास बन जाएगा। दुनिया में करोड़ों घटनाएं घटती हैं, लेकिन लोगों के मानस पटल पर युगों-युगों तक स्मृति के तौर पर कुछेक घटनाएं ही रच-बस पाती हैं। रामायण, महाभारत काल की कई चीजें, जगहें आज भी मौजूद हैं और उन जगहों व चीजों के कई मायने भी हैं। कई ऐसे पेड़, पत्थर भी होते हैं जो अपने गुणों के कारण कई दशकों और सैंकड़ों वर्षों तक याद रहते हैं। कुल्लू के जिया गांव में भी पार्वती नदी के बीचोंबीच एक ऐसा पत्थर है, जिसे लोग भुला नहीं पाते। इस चट्टान पर गोल निशान आज भी देखे जा सकते हैं। इस चट्टान के बारे में बताते हैं कि इससे घराट निकाले गए हैं, तभी इस पर गोल निशान हैं। पानी से चलने वाले घराटों का मौजूदा दौर में हालांकि वजूद मिट सा गया है। इसके पीछे आटा मिल और बिजली से चलने वाली चक्कि यां उत्तरदायी मानी जा रही हैं।

कुछेक जगहों पर पानी से चलने वाले घराटोंका अस्तित्व हालांकि आज भी कायम है। घराट एक पत्थर का घड़ा हुआ गोल हिस्सा होता है जो मक्की और गेहूं की पिसाई कर उसे आटे में तबदील कर देता है। जिया में मौजूद चट्टान से सैंकड़ों घराट निकाले गए हैं, लेकिन वक्त बीतने के साथ-साथ आटा पिसाई के लिए जब आटा मिलों का इस्तेमाल होने लगा तो इस चट्टान की जरूरत खत्म सी हो गई। हालांकि अपने ऊपर मौजूद गोल निशान लेकर खड़ी यह चट्टान आज भी लोगों को स्मरण करवा रही है कि इसी से निकाले घराटों में पिसे अनाज को खाकर आपको ऊर्जा मिली और आप पले-बढ़े हैं।

इस चट्टान की लोग करते हैं पूजा 
घरों में विशेष पूजा-अर्चना के मौके पर लोग इस चट्टान की ओर घूमकर इसे भी पूजना नहीं भूलते हैं। तभी तो कहते हैं अच्छाई और गुणों के लिए किसी को पूजा जा सकता है तो बुराई के लिए बार-बार रावण की भांति जलाया भी जा सकता है।

कुल्लू ही नहीं, मंडी के लोग भी आते थे यहां
पुरोहित हंस राज कात्यायन, पूर्ण चंद नेगी, शांति लाल शर्मा, वेनी प्रसाद शर्मा और अमर चंद नेगी बताते हैं कि पार्वती नदी के बीचोंबीच मौजूद इस चट्टान में गोल निशान इसलिए हैं, क्योंकि इससे लोगों ने गोलाकार पत्थर निकाले हैं और जिन्हें पानी से चलने वाले घराटों के लिए इस्तेमाल किया था। कुल्लू जिला के विभिन्न इलाकों सहित मंडी जिला के भी कई क्षेत्रों के लोग इसी चट्टान से घराट निकालते थे। लगभग 2 दशकों से इस चट्टान से घराट के लिए गोल पत्थर निकालने का सिलसिला खत्म सा हो गया।

यह भी कारण
नदी-नालों के आसपास या इनके बीचोंबीच चट्टानों को तोडऩा, इन पर पेंटिंग और अपने व्यापारिक प्रतिष्ठानों के विज्ञापन के तौर पर रंगों से कुछ लिखने आदि पर पाबंदी है। कुछ वर्ष पूर्व ब्यास नदी में चट्टानों पर हुई राइटिंग पर न्यायालय ने कड़ा संज्ञान लेते हुए उन कंपनियों, होटलों व व्यापारिक प्रतिष्ठानों को जुर्माना ठोका था, जिनके विज्ञापन के तौर पर चट्टानों पर राइटिंग हुई थी। उसके बाद धड़ाधड़ चट्टानों पर लिखे हुए शब्दों व अन्य चित्रकारी को मिटा दिया गया था। चर्चा है कि जिया में मौजूद इस चट्टान से भी घराट निकालने का सिलसिला इसी सख्ती से थम गया होगा। 
 


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kirti

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