तुर्की-अमरीका विवाद का दुनिया पर असर

punjabkesari.in Monday, Aug 13, 2018 - 02:11 AM (IST)

कुछ वक्त पहले तक शायद ही किसी ने यह सोचा होगा कि तुर्की भी चीन, उत्तर कोरिया, ईरान और रूस समेत उन देशों की सूची में शामिल हो जाएगा जिन पर अमरीका के सख्त आर्थिक प्रतिबंध हैं, वह भी तब जबकि तुर्की एक नाटो सहयोगी है जो अमरीका के साथ रक्षा संधि के अलावा अमरीकी खुफिया सूचनाओं का भी लाभ लेता है। इतना ही नहीं, सीरिया के साथ लगती अपनी सीमा के करीब इनसिर्लिक एयर बेस पर तुर्की ने अमरीका को परमाणु हथियार तैनात करने की इजाजत तक दे रखी है। 

1 अगस्त को इसकी शुरूआत हुई जब अमरीकी प्रशासन ने तुर्की में लम्बे समय से बंधक बनाए गए एक अमरीकी पादरी एंड्रयू ब्रनसन के मामले में तुर्की के वरिष्ठ मंत्रियों मिनिस्टर ऑफ जस्टिस तथा इंटीरियर की भूमिका को लेकर दोनों पर कई पाबंदियां लगा दीं। जवाब में तुर्की ने भी अमरीका के राष्ट्रपति ट्रम्प के मंत्रालय के दो सदस्यों के विरुद्ध पाबंदियां लगा दीं। 10 अगस्त को राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने एक ट्वीट करके घोषणा की कि उन्होंने तुर्की के खिलाफ स्टील और एल्यूमीनियम पर आयात शुल्क दोगुना करने का आदेश दिया है। 

केवल दो सप्ताह पहले तक तुर्की व अमरीका उस समझौते के बेहद करीब थे जो दोनों देशों के बीच विभिन्न जटिल मुद्दों को सुलझा सकता था।  इसके अंतर्गत ‘हास्यास्पद’ आतंकी आरोपों के चलते 2016 में बंदी बनाए गए अमरीकी पादरी एंड्रयू ब्रनसन को तुर्की द्वारा रिहा करने के बदले में अमरीका ने इसराईल में कैद एक तुर्क नागरिक की रिहाई में मदद करने तथा ईरान पर लगी पाबंदियों के उल्लंघन के दोषी हाकन अतिला नामक तुर्क बैंकर को अपनी बाकी सजा घर पर काटने की स्वीकृति देने की हामी भरी थी। 

हालांकि, समझौता तब खटाई में पड़ गया जब तुर्की के विदेश मंत्री ने अपने सरकारी बैंक हाक बैंक के खिलाफ हर तरह की अमरीकी जांच खत्म करने की मांग कर डाली जिसमें कभी हाकन काम करता था। इसके बाद एंड्रयू को रिहा करने के बजाय नजरबंद कर दिया गया। बेशक तुर्की अमरीकी पाबंदियों से उबरने का दावा कर रहा हो, हाल के दिनों में तुर्की की अर्थव्यवस्था की बदहाली तथा लगातार बढ़ती मुद्रास्फीति और उसकी मुद्रा लीमा के घटते मूल्य से आने वाले दिनों में उसकी आॢथक मुश्किलें बढऩी तय हैं। 

गौरतलब है कि अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प पद संभालने के समय से ही विवादों में रहे हैं। सत्ता में आने के बाद से ही कई देशों के साथ अमरीका के संबंध काफी बिगड़ चुके हैं। हालांकि, ओहायो के चुनावों में डैमोक्रेटों के जीतने की उम्मीद के बावजूद रिपब्लिकनों की जीत से यह स्पष्टï हो गया है कि लोगों को ट्रम्प की विदेश नीति पसंद आ रही है। इसके दो-तीन दिन बाद ही ट्रम्प ने तुर्की पर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए जिससे एक सप्ताह में ही तुर्की की मुद्रा में 16 प्रतिशत की गिरावट आ गई है। इससे पहले चीन और ईरान पर तो आर्थिक प्रतिबंध लगे हुए थे। द्वितीय विश्व युद्ध के वक्त से ही तुर्की और अमरीका के बीच दोस्ती रही है लेकिन अब एरदोगन की तानाशाही नीतियों ने सारा माहौल बदल दिया है। 

तुर्की की अर्थव्यवस्था का असर यूरोपियन यूनियन की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ सकता है क्योंकि तुर्की की अर्थव्यवस्था यूरोपियन यूनियन की अर्थव्यवस्था से मिली हुई है और यह सब ऐसे समय पर हुआ है जब ब्रेग्जिट होने जा रहा है तथा यूरोपियन यूनियन की अर्थव्यवस्था को एक बड़ा झटका लगने वाला है। ईरान के साथ तो अमरीका का टकराव पहले ही चल रहा है अब मध्य पूर्व में भी हालात बदल जाएंगे क्योंकि तुर्की और ईरान की अर्थव्यवस्था खराब होने से सऊदी अरब ही एकमात्र मजबूत देश रह जाएगा। इसकी अर्थव्यवस्था खुल रही है परंतु यह किसी भी रूप में लोकतंत्र नहीं बनेगा। सऊदी अरब को अमरीका का परोक्ष रूप से समर्थन जारी रहेगा। ऐसे में कतर जैसे उदारवादी देशों पर भी रोक लगेगी। 

तुर्की अपनी बिगड़ती आर्थिक स्थिति को संभालने के लिए आई.एम.एफ. की किस्त का इंतजार कर रहा है। ऐसे में यदि अमरीका इसको वीटो कर देता है तो वह रूस के माध्यम से चीन की सहायता प्राप्त करने की कोशिश कर सकता है। यदि ऐसा होता है तो यूरोप में चीन का वर्चस्व बढ़ सकता है जिस प्रकार चीन ने यूनान और इटली में आर्थिक व्यवस्था चरमरा जाने पर उनकी सहायता की थी। ऐसे में प्रश्र यह उठता है कि क्या ट्रम्प अपनी विदेश नीति पर टिके रहेंगे? अगर वह टिके रहेंगे तो अमरीका के लिए अच्छा है वरना चीन जैसे सभी देश अधिक मजबूती से उभर कर आएंगे। फिलहाल इस घटनाक्रम के कारण तेल की कीमतें बढ़ सकती हैं। 

यहां यह बात उल्लेखनीय है कि जब-जब किसी लोकतांत्रिक देश में आर्थिक झटका लगता है तो वहां सरकार बदल जाती है और जब-जब किसी तानाशाही शासन में आर्थिक झटका लगता है तो वहां तानाशाही और मजबूत हो जाती है क्योंकि उस स्थिति में तानाशाह देश की आॢथक स्थिति सुधारने के लिए लोगों से सहयोग की मांग करता है। ऐसे में एरदोगन का शासन लंबे समय तक चलेगा। 


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Pardeep

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