ऐसे बनी हरिवंश के नाम पर सहमति

punjabkesari.in Sunday, Aug 12, 2018 - 02:18 AM (IST)

‘जिसे अपने कंधों पर बिठा कर, शहर-शहर घुमाया करते थे, 
आज हर चौक पर उसके बुत लगे हैं, 
और हम सजदे में सिर झुकाया करते हैं।’ 
पत्रकार से नेता बने हरिवंश को कभी सपने में भी इस बात का गुमान नहीं रहा होगा कि उनकी ख्वाहिशों को एक दिन यह मुकाम मिल जाएगा। जब डिप्टी स्पीकर पद के लिए अकाली दल का पत्ता कटा तो यकबयक जद (यू) का नम्बर लग गया। इस बार पॉलिटिकल मैनेजमैंट की पूरी कमान स्वयं मोदी ने थाम रखी थी, उनके विश्वस्त अमित शाह नेपथ्य की ओट में थे। लिहाजा जब प्रधानमंत्री ने इस बाबत स्वयं नीतीश से बात की तो वहां से कहकशां परवीन का नाम आया। एक तो महिला, ऊपर से मुस्लिम, यह नीतीश की राजनीति के बिल्कुल मुफीद थी पर इस नाम पर संघ और भाजपा के कई नेताओं को सीधी आपत्ति थी कि जब वे देश भर में हिंदुत्व का अलख जगाने में जुटे हैं तो ऐसे वक्त में अल्पसंख्यक तुष्टीकरण की राजनीति क्यों? सूत्र बताते हैं कि इसके बाद नीतीश ने वशिष्ट नारायण सिंह का नाम सुझाया पर यहां वशिष्ट नारायण की वरिष्ठता इसके आड़े आ गई। 

कहते हैं इसके बाद स्वयं मोदी ने अपनी ओर से हरिवंश का नाम दिया और इस नाम पर नीतीश भी मान गए और फिर एन.डी.ए. में हरिवंश के नाम पर सहमति बन गई। मोदी ने जद (यू) का कार्ड बहुत सोच-समझ कर चला था, वह जानते थे कि जद (यू) समाजवादी आंदोलन की कोख से जन्मी पार्टी है। बीजू जनता दल अपने समानार्थी विचारधारा के दोस्त को कभी मना नहीं कर पाएगी। चुनांचे ऐसे में बीजद का साथ एन.डी.ए. उम्मीदवार को यकीनन मिल पाएगा। वैसे भी जब लोकसभा में तेदेपा मोदी सरकार के खिलाफ  अविश्वास प्रस्ताव लेकर आई थी, तब स्वयं प्रधानमंत्री मोदी ने बीजद प्रमुख नवीन पटनायक से सीधी बात कर ली थी और तभी उन्होंने नवीन से राज्यसभा के डिप्टी स्पीकर पद के लिए उनका समर्थन मांग लिया था और नवीन मोदी को इस बात के लिए मना नहीं कर पाए थे। 

हार कर जीत गए हरिवंश
‘इबादत के शौक में जहां तेरे कदम बढ़ चले हैं, 
कभी वहां मेरा खुदा रहता था...’ 
दिलचस्प तो यह कि राज्यसभा के डिप्टी स्पीकर के चुनाव के दो रोज पहले तक प्रभात खबर अखबार के संपादक रहे हरिवंश को इस बात का किंचित भी इल्म न था कि उनके नाम पर इतना बड़ा सियासी घमासान मचने वाला है। नहीं तो कम से कम वह पब्लिक अकाऊंटकमेटी (पी.ए.सी.) के मैम्बर का चुनाव नहीं लड़ते, जहां उनके मुकाबले चुनाव लड़ रहे भाजपा के भूपेन्द्र यादव को 69, तेलुगू देशम पार्टी के सी.एम. रमेश को 110 और उन्हें मात्र 26 वोटों पर ही संतोष करना पड़ा था। ऐसे में सी.एम. रमेश और भूपेन्द्र यादव चुन लिए गए और हरिवंश को खारिज होने का दंश झेलना पड़ा। सवाल यही तो सबसे अहम है कि जिस शख्स को डिप्टी स्पीकर बनना था, उसके लिए पी.ए.सी. मैम्बर का चुनाव लडऩे की क्या मजबूरी थी... 
‘तुम्हें पता कहां था कि तेरा खुदा अब तेरे साथ-साथ रहने लगा है।’ 

जद (यू) का ऐसे लगा नंबर
‘आज के दौर में दुआएं कब काम आती हैं भला, 
दैरो-हरम से हमने कितनों को देखा है यूं लुटते हुए।’ 
आसन्न आम चुनाव की आहटों को भांपते भाजपा अपने बचे-खुचे सहयोगी दलों से कोई रार नहीं ठानना चाहती है। नहीं तो पहले भाजपा ने तय किया था कि वह डिप्टी स्पीकर के लिए अपना कोई उम्मीदवार मैदान में उतारेगी। फिर पी.एम. मोदी ने हवा का रुख भांपते हुए यह तय किया कि यह पद किसी सहयोगी दल को देने से न सिर्फ सियासी मौसम का मिजाज बदलेगा बल्कि विपक्षी एकता में भी सेंध लगाई जा सकेगी। ऐसे में भाजपा ने सबसे पहला मौका अकाली दल को दिया और उनसे कोई नाम मांगा, वहां से नरेश गुजराल का नाम सामने आया, जिन्हें अरुण जेतली का बेहद करीबी माना जाता है, शायद इसी वजह से उनका पत्ता कट गया क्योंकि भाजपा चाहती थी कि अकाली अपनी ओर से कोई सिख उम्मीदवार दें। सूत्र बताते हैं कि ऐसे में जूनियर बादल ने कहा कि उनके पास जो अन्य लोग बचे हैं, वे न तो ठीक-ठाक ङ्क्षहदी बोल पाते हैं और न ही अंग्रेजी, सो ऐसे में जद (यू) की लॉटरी लग गई। 

चूक गए राहुल
‘मान लीजिए वफा नहीं है आपके नसीब में, 
हर जगह सिर झुकाने से खुदा मिलता नहीं।’ 
डिप्टी स्पीकर के मुद्दे पर कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ी। अव्वल तो इस हार का ठीकरा इसके सरपरस्त राहुल गांधी को अपने सिर लेना होगा क्योंकि वह इस पूरे मुद्दे पर बहुत सुस्त रफ्तार चले, वहीं उनके प्रतिद्वंद्वियों नरेंद्र मोदी व अमित शाह ने दिखा दिया कि वे दोनों 24&7 राजनीतिज्ञ हैं और राजनीति उनके खून में है। दरअसल, कांग्रेस अंत समय तक विपक्षी एकता का सुर तलाशने में जुटी रही और अपने उम्मीदवार बी.के. हरि प्रसाद के नाम की घोषणा करने में भी उन्होंने बहुत देर लगा दी। कांग्रेस ने पहले डिप्टी स्पीकर के लिए तृणमूल कांग्रेस से नाम मांगा था पर बात बनी नहीं। फिर उसके बाद उसकी बात सपा से होने लगी। 

फिर तय हुआ कि एन.सी.पी. की वंदना चव्हाण को मैदान में उतारा जाए, चूंकि वंदना खुद एक मराठा हैं और महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण की आग लगी है, ऐसे में शिवसेना भी वंदना के खिलाफ जाने का रिस्क नहीं ले पाएगी। फिर शरद पवार ने नवीन पटनायक से बात की तो नवीन ने कहा कि वह प्रधानमंत्री को हरिवंश के लिए जुबान दे चुके हैं, तो एन.सी.पी. पीछे हट गई और अंत समय पर कांग्रेस को अपना उम्मीदवार मैदान में उतारना पड़ा। कांग्रेस की ओर से अहमद पटेल और गुलाम नबी आजाद ने बागडोर संभाली हुई थी। अरविंद केजरीवाल जैसे नेताओं को राहुल के फोन का इंतजार था, न राहुल का फोन आया और न ही विपक्षी एकता के सुर सज सके। 

हरिवंश ने पैंतरा बदला
‘दाम तूने भले ही लगा लिया हो मेरा,
पर बिकने को तैयार नहीं हूं मैं’ 
राज्यसभा के डिप्टी स्पीकर हरिवंश के अंदर समाजवाद, पत्रकारिता व विद्रोह के बीज साथ-साथ अंकुरित हुए हैं। सत्ता पक्ष के बैंच को उस वक्त जबरदस्त झटका लगा जब नए-नवेले इस डिप्टी स्पीकर ने पहले ही दिन रूल बुक का हवाला देते हुए प्राइवेट मैम्बर बिल पर वोटिंग करा ली। इस पर कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने कड़ी आपत्ति दर्ज कराते हुए कहा-प्राइवेट मैम्बर बिल पर वोटिंग की यह परम्परा पहले नहीं रही है। बस सरकार को मुद्दे से वाकिफ करा प्रस्ताव वापस ले लिया जाता है पर हरिवंश का साफ तौर पर कहना था कि ऐसा कोई प्रावधान नहीं कि एक बार कहने के बाद वोटिंग रोकी जा सके। हरिवंश के इस फैसले से विपक्ष गद्गद् था, सरकार की आंखों में संशय की किरचें चुभ रही थीं और हरिवंश मानो यही कह रहे थे- ‘तेरे साथ हूं मैं, पर तेरा नहीं!’ 

अहसान की कीमत चाहते हैं नवीन बाबू
‘किसी से मांग के कोई ख्वाब क्या सजाना, 
इससे अच्छा है अधूरे रास्ते से लौट आना।’ 
नवीन बाबू अब अपने अहसानों का सिला चाहते हैं। राज्यसभा चुनाव में मोदी के कहने पर उन्होंने एन.डी.ए. उम्मीदवार की मदद की, अब बदले में वह चाहते हैं कि मोदी सरकार ओडिशा की प्रस्तावित विधान परिषद के गठन को हरी झंडी दिखा दे। सूत्रों की मानें तो बीजद विधानसभा में जल्द ही लैजिस्लेटिव कांऊसिल के गठन का प्रस्ताव लेकर आना चाहती है और इसमें उन्हें मोदी सरकार का समर्थन चाहिए। दरअसल, नवीन बाबू 18 वर्षों तक ओडिशा में राज कर चुके हैं और अगले ही साल वहां विधानसभा के चुनाव होने हैं, सो नवीन चाहते हैं जिन विधायकों से उनकी क्षेत्र की जनता बहुत नाखुश है, उन्हें पहले ही विधान परिषद में भेज दिया जाए और उस विधानसभा क्षेत्र से नए चेहरे को मैदान में उतारा जाए। 

जेतली के कमरे में अध्यक्ष जी
‘एक बोसीदा कमरे की दीवारों पर, मेहराबों पर
जहां मेरा नाम लिखा है, आज यहां तू है
मैं मीलों चला हूं इस सफर के लिए
और तू सिर्फ तू है और तू है।’ 
अपनी किडनी प्रत्यारोपण के लगभग 3 महीनों बाद जब डिप्टी स्पीकर के चुनाव के रोज जेतली सदन पहुंचे और बतौर राज्यसभा नेता की हैसियत से उनके कदम सदन स्थित अपने दफ्तर की ओर मुड़े तो देखा कि उनके कमरे में फिलहाल अध्यक्ष जी का कब्जा है, शाह-जेतली की काफी पुरानी दोस्ती रही है, शाह उन्हें पसंद भी बहुत करते हैं, शायद इसी वजह से उनका कमरा भी पसंद आ गया हो। जब तक जेतली सदन और सक्रिय राजनीति से अनुपस्थित थे तो शाह ने सोचा कि जेतली के खाली पड़े कमरे का कुछ सदुपयोग कर लिया जाए, सो शाह इसी कमरे में बैठकर सांसदों व मंत्रियों से मंत्रणा कर लिया करते थे, अपना लंच भी वह यहीं किया करते हैं। यह कमरा न केवल उनके मैन्यू में बल्कि उनकी आदतों में भी शुमार हो गया है। 

टिकटें कटेंगी, सीटें बदलेंगी, 2019 की जीत पक्की होगी
‘तू आता भी है तो एक बुरे ख्वाब सा आता है,
जरा पलकें क्या झपकीं लौट के चला जाता है।’ 
2019 के आम चुनावों को लेकर भाजपा के शहंशाह शाह ने अपनी रणनीतियों को अंतिम रूप देना शुरू कर दिया है। कयासों के बाजार गर्म हैं कि कई केन्द्रियों मंत्रियों का भी टिकट कट जाएगा तो कइयों की सीटें बदली जाएंगी। कुछ विधायकगण मसलन सिद्धार्थ नाथ सिंह व रीता बहुगुणा जोशी सांसद का चुनाव भी लड़ सकते हैं। अगर मुलायम की बहू अपर्णा यादव टूटकर भाजपा में आती हैं तो उन्हें किसी यादव बहुल सीट से मैदान में उतारा जा सकता है। हालांकि अपर्णा का दावा लखनऊ सीट को लेकर है, जहां से फिलवक्त राजनाथ सिंह सांसद हैं। मुरली मनोहर जोशी की कानपुर संसदीय सीट से सतीश महाना को उतारा जा सकता है।केन्द्रीय कृषि मंत्री राधामोहन सिंह की सीट बदलकर उन्हें शिवहर से लड़ाया जा सकता है तो वहीं रमादेवी को मोतिहारी भेजा जा सकता है। इस बार जीत के लिए उम्र आड़े नहीं आने वाली, सो 73 साल के रामटहल चौधरी को भी भाजपा टिकट दे सकती है। टिकट तो अडवानी जी को भी मिलेगी। 

...और अंत में 
‘ख्वाहिशों का बोझ इतना न उठाया करिए,
गली के हर मोड़ पर एक चांद को तेरा इंतजार है’
उत्तराखंड की पौड़ी गढ़वाल सीट पर सबकी निगाहें टिकी हैं। मुमकिन है इस दफे इस सीट पर मेजर जनरल बी.सी. खंडूरी का चेहरा न दिखे क्योंकि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की निगाहें इस सीट पर हैं। इस सीट को अपने पिता के लिए शौर्य डोभाल कहीं शिद्दत से तैयार कर रहे हैं। अगली बार यदि केन्द्र में फिर मोदी जी की सरकार आई तो अजीत डोभाल देश के नए गृह मंत्री हो सकते हैं।-त्रिदीब रमण 


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