नीतीश कुमार के अपने नैतिक मूल्यों का क्या हुआ

punjabkesari.in Saturday, Aug 11, 2018 - 03:47 AM (IST)

कई वर्षों तक देश के सम्भावित प्रधानमंत्री के तौर पर पेश किए जाते रहे बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अब राज्य के प्रशासन में दयनीय स्थिति बन गई दिखाई देती है। पहले उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के भाजपा नीत राजग गठबंधन से मिलकर अपनी स्वतंत्र पहचान को खराब कर लिया। 

क्या इससे दीर्घकाल में उनके राष्ट्रीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण व्यक्तित्व के रूप में उभरने में उन्हें मदद मिलेगी, इसे लेकर संदेह है। उनकी ‘छवि’ पहले ही मुजफ्फरपुर स्थित सरकारी सहायता प्राप्त एक शैल्टर होम में 34 नाबालिग लड़कियों के साथ दुष्कर्म के मामले में खराब हो चुकी है। अब ‘आतंक का घर’ के नाम से जाने जाते इसे ब्रजेश ठाकुर की एक एन.जी.ओ. द्वारा संचालित किया जा रहा था, जो इसी जगह से हिंदी, उर्दू तथा अंग्रेजी के समाचार पत्र प्रकाशित करता था। 30 मई को लगभग 44 लड़कियों को बचाया गया। 

सत्ता के गलियारों में प्रभाव रखने वाले ब्रजेश ठाकुर के यौन प्रताडऩा के खेल काफी समय से चल रहे थे। यहां तक कि उसकी युवा लड़कियों की ‘डर की सैक्स कहानियों’ के बारे में बात करना भी परेशान कर देता है जो वह जिला बाल कल्याण समिति के पूर्व चेयरमैन दिलीप वर्मा के साथ मिलकर चला रहा था जो अब कथित रूप से भगौड़ा है। 31 मई को इस बाबत एफ.आई.आर. दर्ज करवाई गई तथा ब्रजेश ठाकुर व 10 अन्य को गिरफ्तार कर लिया गया। 

‘होम शैल्टर’ एक विशेष मामला है कि कैसे तथा क्यों मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तथा उनका सिस्टम युवा लड़कियों को राज्य से सहायता प्राप्त शार्कों के चंगुल से बचाने में असफल रहा। राज्य के अधिकारी गत 4 वर्षों से सरकार संचालित अधिकतर शैल्टर होम्स का दौरा करते रहे हैं मगर वे ऐसी घृणित गतिविधियों का पता लगाने में असफल रहे, स्वाभाविक है कि कुछ बाध्यताओं के कारण। ब्रजेश ठाकुर राजद नेताओं लालू प्रसाद यादव तथा नीतीश कुमार के साथ अपने चित्र छापकर खुले तौर पर अपने ‘राजनीतिक सम्पर्कों’ का इस्तेमाल करता था। वर्ष 2000 में उसने भाजपा की टिकट पर बिहार विधानसभा चुनाव भी लड़ा था। 

अपने प्रैस के मालिक होने तथा एन.जी.ओ. के कार्ड्स का इस्तेमाल करते हुए वह एक के बाद एक आने वाली सरकारों से बिजनैस प्राप्त करने में भी सफल रहा। कोई हैरानी नहीं कि उसने सिस्टम को अपना पिछलग्गु बना लिया था। मुझे अफसोस इस बात का है कि नीतीश कुमार ने भी खुद को सामान्य नेताओं जैसा साबित किया। वह प्रशासन पर नजर रखने तथा उसे कसने और ब्रजेश ठाकुर जैसे ‘अच्छे सम्पर्कों वाले लोगों’ से गरीब बच्चियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने में असफल रहे। इसी में देश का दुखांत निहित है। सबसे अधिक निराशाजनक बात यह कि नीतीश कुमार ने तीन अगस्त को अपनी चुप्पी तोड़ी और कहा कि ‘वह इस घटना से शर्मसार हैं’ और इस घृणित अपराध पर ‘आत्मज्ञान’ का प्रकटावा किया। घटना को ‘पाप की कार्रवाई’ बताते हुए मुख्यमंत्री ने बताया कि उन्होंने मुख्य सचिव, डी.जी.पी. तथा अन्य वरिष्ठ अधिकारियों को वर्तमान प्रणाली में गम्भीर खामियां ढूंढने को कहा है। 

सिस्टम में खामियां ही खामियां केवल बिहार में ही नहीं हैं बल्कि अन्य राज्यों में भी हैं। योगी आदित्यनाथके उत्तर प्रदेश में एक 10 वर्षीय बच्ची द्वारा भाग करपुलिस को यह बताने कि ‘लाल, सफेद, काली कारें’ लड़कियों को रात में पिक करती थीं और सुबह छोड़ जाती थीं, देवरिया के गैर-कानूनी महिला शरण गृह से 24 लड़कियों को बचाया गया। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के मध्य प्रदेश में, राज्य के रतलाम तथा अन्य आसपास के जिलों में एक स्थानीय समुदाय की ‘परम्परा’ के नाम पर एक सैक्स रैकेट संचालित किया जा रहा था, जिसे ‘चाइल्ड सैक्स हाइवे’ का नाम दिया गया। यह खुलासा सी.एन.एन. न्यूज-18 की जांच में किया गया। राष्ट्रीय उच्च मार्ग संख्या 79 पर नाबालिग बच्चियों का यह काफी फल-फूल रहा सैक्स रैकेट है मगर जमीनी हकीकतों की परवाह कौन करता है। मुख्यमंत्री चौहान को केवल आने वाले चुनावों के लिए अपनी छवि बनाने की ङ्क्षचता है। 

पीछे देखते हुए मैं सभी केन्द्रीय तथा राज्यों के नेताओं को याद दिलाना चाहता हूं कि घोटालों, धोखाधडिय़ों तथा बच्चियों व महिलाओं के खिलाफ सैक्स घोटालों से बचाव के लिए अच्छा प्रशासन एक पारदर्शी तथा जवाबदेह प्रणाली की मांग करता है। यह राज्य चलाने वालों का कत्र्तव्य है कि वे लड़कियों की सुरक्षा सुनिश्चित करें। बड़े दुख की बात है कि आजकल सिस्टम अमीरों तथा ताकतवर लोगों व सैक्स ऑपरेटर्स के काम को प्रोत्साहित करने के लिए उनकी ओर झुका हुआ है। ब्रजेश ठाकुर के मामले पर वापस आते हैं। यह एन.जी.ओ. 5 शरण गृहों का संचालन करता है और केन्द्र व राज्य से प्रति वर्ष 1 करोड़ रुपए का अनुदान प्राप्त करता है। उसके खिलाफ दायर रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि ठाकुर ‘एक सैक्स रैकेट चलाता था और (सरकारी परियोजनाओं हेतु) टैंडर प्राप्त करने के लिए अधिकारियों को लड़कियां सप्लाई करता था।’ मैं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से पूछना चाहता हूं कि क्या यही आपके अच्छे प्रशासन की संकल्पना है? उनके अपने नैतिक मूल्यों का क्या हुआ? 

संसद ने 12 वर्ष से कम उम्र की बच्चियों के साथ दुष्कर्म के लिए फांसी की सजा का कानून बनाया है। यहां महत्वपूर्ण प्रश्र यह है कि मृत्युदंड केवल 12 वर्ष तक की बच्चियों के साथ ऐसे अपराधों तक ही क्यों सीमित है? क्यों नहीं इसका दायरा 12 वर्ष से अधिक बढ़ाया जाता? इतना ही महत्वपूर्ण यह है कि दोषी के खिलाफ फास्ट ट्रैक अदालतों द्वारा शीघ्रतापूर्वक निर्णय सुनाया जाए।-हरि जयसिंह


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Pardeep

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