Kundli Tv- मानो या न मानो: श्रीराम ने अपने कर्म का फल श्रीकृष्ण के रूप में भोगा

punjabkesari.in Tuesday, Jul 31, 2018 - 01:31 PM (IST)

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मनुष्य को अपने कर्मों का फल भोगना पड़ता है, हिंदू धर्म में यह मान्यता है। संत-साधु कहते हैं कि कर्म के फल से तो स्वयं भगवान विष्णु भी नहीं बच पाए। दरअसल भगवान विष्णु के 10 अवतारों में श्रीराम और श्रीकृष्ण भी हैं। जब भगवान राम माता सीता की खोज में दर-दर भटक रहे थे तब उनकी भेंट सुग्रीव से हुई थी। 
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सुग्रीव जिन्हें उनके ही बड़े भाई बाली ने राज्य से बेदखल कर उनकी पत्नी पर अधिकार कर लिया था, तब भगवान राम ने सुग्रीव की सहायता करते हुए बाली को छिपकर तीर मारा था, जिससे बाली की मृत्यु हो गई थी। भगवान राम ने बाली को पेड़ की आड़ में छिपकर तीर इसलिए मारा क्योंकि बाली को वरदान प्राप्त था कि जो भी उसके सामने आएगा उसका आधा बल बाली को प्राप्त हो जाएगा। 

यह घटना है त्रेतायुग की। युग समाप्त होने पर भगवान राम अपने लोक चले गए। इनके साथ ही भगवान के साथ उनके भी कर्मों का फल साथ चला गया। 
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द्वापर युग में जब भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में अवतार धारण किया तो पूर्वजन्म के कर्मों का फल भी उन्हें भोगना पड़ा। महाभारत युद्ध के बाद जब भगवान श्रीकृष्ण समस्त परिवार के साथ द्वारका में बस गए तब कौरवों की माता गांधारी के श्राप के कारण यदुवंश समाप्ति की तरफ बढऩे लगा। आपसी कलह और संहार के बीच यदुवंश में गिनती के लोग बचे। ऐसे में एक दिन श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम जी, जिन्हें शेषनाग का अवतार माना जाता है, समुद्र के तट पर ध्यान मग्न समाधि लेकर बैठ गए। विष्णु पुराण के अनुसार उस समय बलराम जी के शरीर से एक विशाल सर्प प्रकट हुआ और वह सागर में प्रवेश कर गया। इस तरह बलराम जी बैकुंठ लौट गए।
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दाऊजी के बैकुंठ लौट जाने के बाद एक दिन श्रीकृष्ण एक पेड़ के नीचे लेटे थे। उस समय जरा नामक एक बहेलिया जो हिरण के शिकार के लिए भटक रहा था, उसे दूर से श्रीकृष्ण का पैर हिरण की आंखों की तरह दिखा। उसने तीर छोड़ दिया। तीर लगते ही वह दौड़कर वहां पहुंचा लेकिन हिरण की जगह श्रीकृष्ण को घायल अवस्था में पाया। कुछ धार्मिक मान्यताएं हैं कि जरा नामक बहेलिया ही त्रेतायुग में बाली था जिसने अपने पिछले जन्म में धोखे से प्रहार करने वाले श्रीराम से इस जन्म में बदला लिया। वहीं दूसरी मान्यता यह है कि हर व्यक्ति को अपने कर्म का फल अगले जन्म में भोगना पड़ता है इसलिए श्रीराम ने अपने कर्म का फल श्रीकृष्ण के रूप में भोगा।

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