‘अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस’ पर विशेष: ‘जीवात्मा और परमात्मा के मिलने का नाम है ‘योग’

punjabkesari.in Thursday, Jun 21, 2018 - 12:49 PM (IST)

जालंधर(शीतल): योग संस्कृत के शब्द ‘युज’ से उत्पन्न हुआ है जिसका अर्थ है ‘जोडऩा’। योग हमारे शरीर, मन और आत्मा के बीच संयम स्थापित करता है, जिससे हमारे शरीर के अंदर की शक्तियां जागृत होने लगती हैं और हमारे मन, शरीर और आत्मा का आपस में सम्पर्क होने से शरीर तरोताजा और निरोगी रहता है। प्राचीन समय से ही योग को समाधि लगाने, योग क्रिया से परमात्मा तक पहुंचने का साधन माना जाता है।

श्रीमद् भागवत गीता में श्री कृष्ण जी ने कहा है कि ‘योग: कर्मसु कौशलम्’ अर्थात ‘कर्मों में कुशलता’ को योग कहते हैं। श्रीमद् भागवत गीता के छठे अध्याय में पारम्परिक योग के अभ्यास, ध्यान पर ही चर्चा करते हुए कर्म योग, भक्ति योग और ज्ञान योग के बारे में बताया गया है। कुछ विद्वानों का मत है कि जीवात्मा और परमात्मा के मिल जाने को योग कहा जाता है। ‘योग’ वह प्राचीन ज्ञान है जिसको पूरी दुनिया ने माना है। भारतीय धरोहर होने की वजह से हमारी जीवन शैली में इसका विशेष महत्व है। अब तो पूरी दुनिया के कई हिस्सों में योग का प्रचार और प्रसार हो चुका है। इसे करने से शरीर और मन दोनों स्वस्थ रहते हैं और कई तरह की बीमारियों पर नियंत्रण किया जा सकता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रयासों से 177 देशों ने जब ‘योग’ की शक्ति को माना तो संयुक्त राष्ट्र ने 2015 से 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाने की घोषणा की। 

योग के प्रकार  
योग की प्रामाणिक पुस्तकों में शिव संहिता और गौरक्षशतक में योग के 4 प्रकारों का वर्णन मिलता है उनमें मंत्रयोग, हठयोग, लययोग और राजयोग है। योग की उच्चावस्था तक पहुंचने के लिए साधक समाधि और मोक्ष जैसी क्रियाओं का प्रयोग करते हैं। श्रीमद् भागवत गीता में ज्ञानयोग और कर्मयोग 2 प्रकार के योग का वर्णन मिलता है। योग के प्रभाव से प्रभावित 30 करोड़ की जनसंख्या वाले अमरीका में ही करीब 2 करोड़ से ज्यादा लोग योग करते हैं। 

योग का इतिहास
योग की उत्पत्ति भारत में लगभग 5000 वर्ष से पूर्व की मानी जाती है। प्राचीनकाल से ही वेदों में योग का उल्लेख मिलता है। सिंधु घाटी की सभ्यता से मिली मूर्तियां भी योग और समाधि की मुद्रा को प्रदर्शित करती हैं। ऋषि पतंजलि को योग दर्शन का संस्थापक माना जाता है। पतंजलि के योग सूत्र में बुद्धि पर नियंत्रण करने की प्रणाली को राजयोग के रूप में माना जाता है। योग के 8 अंग यानि अष्टांग योग इसका आधार बन गया है। 

-यम : हमें जिंदगी में अङ्क्षहसा, झूठ नहीं बोलना, गैर लोभ, गैर विषयाशक्ति और गैर स्वामीगत जैसा व्यवहार रखना चाहिए। 
-नियम: जिंदगी में पांच धार्मिक क्रियाओं में पवित्रता, संतुष्टि, तपस्या, अध्ययन और भगवान को आत्मसमर्पण जैसी भावनाओं को अपनाना चाहिए। 
-आसन : पतंजलि योग में ध्यान लगाने के लिए आसन का प्रयोग करना चाहिए। योग के लिए बैठने के आसन का प्रयोग करना चाहिए। 
-प्राणायाम : पतंजलि योग सूत्र में शरीर की शक्ति को नियंत्रित करने के लिए सांस को शरीर में रोकने की प्रक्रिया है। 
-प्रत्याहार : शरीर को स्वस्थ रखने के लिए मन की भावनाओं को नियत्रंण में रखना। 
-धारणा : शरीर की शक्तियों को नियंत्रित रखने के लिए मन को एकाग्र करके आसानी से लक्ष्य की प्राप्ति की जा सकती है। एक ही लक्ष्य पर ध्यान लगा कर सारी शक्ति को उसे प्राप्त करने के लिए लगाना। 
-ध्यान : लक्ष्य की प्राप्ति के लिए गहन ङ्क्षचतन करने के लिए ध्यान लगाने का प्रयोग किया जाता है। 
-समाधि : यह योग पद्धति की चरम अवस्था है। आत्मा को परमात्मा तक पहुंचने के लिए समाधि क्रिया की जाती है। 
-विकल्प और अविकल्प दो प्रकार से समाधि लगाई जाती है। 


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Vijay

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