हिमाचल में घट रहा भू-जलस्तर चिंता का विषय

punjabkesari.in Monday, Jun 18, 2018 - 10:08 AM (IST)

इंदौरा (अजीज): प्रदेश में गर्मियों का सीजन अपने चरम पर है। ऐसे में जहां पेयजल की खपत बढ़ना स्वाभाविक है, वहीं मैदानी क्षेत्रों में फसलों की बिजाई के चलते सिंचाई जल की खपत बढ़ना भी स्वाभाविक है। वन व पेड़ कटान का असर भी मौसम पर पड़ने के कारण कहीं अपेक्षाकृत वर्षा अधिक हो रही है तो कहीं कम। ऐसे में प्रदेश में निरंतर भू-जलस्तर का कम होते जाना चिंता का विषय है। भविष्य की बात करें तो यदि इस ओर समय रहते उचित कदम न उठाए गए तो कालाअम्ब व जिला ऊना में सिंचाई के लिए पानी ही नहीं रहेगा तो दूसरी ओर दिन-प्रतिदिन बढ़ रही जनसंख्या के कारण पेयजल की अनुमानित लाभान्वित संख्या में भी गैर मामूली वृद्धि दर्ज की गई है। 


बात भू-जल विज्ञान की रिपोर्ट की करें तो आंकड़े काफी चौंकाने वाले हैं। जहां शिमला पहले ही पेयजल संकट से जूझ रहा है तो सिरमौर व ऊना में भी खतरा मंडरा रहा है जबकि इंदौरा व नूरपुर भी इस समस्या से अछूता नहीं है। कांगड़ा की इंदौरा व नूरपुर, मंडी की बल्ह, सिरमौर की पांवटा व कालाअम्ब, सोलन की नालागढ़ व जिला ऊना की ऊना व हम घाटी का कुल क्षेत्रफल लगभग 151046 हैक्टेयर है, जिनमें दिसम्बर माह तक 53389.65 हैक्टेयर मीटर भू-जल संचित हुआ था, जिसमें 27182.36 हैक्टेयर मीटर पानी घरेलू, उद्योगों व सिंचाई की जरूरत पर खर्च हुआ।


भविष्य में जल संवद्र्धन योजना में होगी परेशानी
जो हालात इस समय बने हुए हैं, इन पर यदि अवैध नलकूपों पर अंकुश नहीं लगाया गया व प्रॉपर डाटा विभाग के पास न हुआ तो निश्चित रूप से विभाग के लिए भविष्य में जल संवद्र्धन योजना को जनसंख्या व मांग के अनुसार उपलब्धता प्रदान करने में मुश्किल पेश आएगी। इसके लिए विभाग को एक्ट को सही दिशा में इंप्लीमैंट करना जरूरी है।


ऊना व हम घाटी की यह है रिपोर्ट
जिला ऊना की हम घाटी का क्षेत्र 51500 हैक्टेयर है। एक वर्ष में प्री मानसून व मानसून के दौरान डायनामिक भू-जल मात्रा 13441.86 हजार मीटर है जिसमें घरेलू, उद्योग व सिंचाई हेतु 10099.12 हैक्टेयर मीटर पानी खर्च हो रहा है। वर्ष 2025 तक घरेलू, उद्योग व सिंचाई की मांग को पूरा करने के लिए लगभग 1450 हैक्टेयर मीटर पानी का अतिरिक्त प्रावधान किया गया है। स्थिति यही बनी रही तो कालाअम्ब व हम घाटी में सिंचाई के लिए पानी ही नहीं बचेगा।


इंदौरा व नूरपुर घाटी की यह है रिपोर्ट
इंदौरा घाटी का क्षेत्र 26545 हैक्टेयर है। इस घाटी में भू-जल उपलब्धता 10892.94 हैक्टेयर मीटर है। वर्तमान में सिंचाई के लिए लगभग 5400 हैक्टेयर मीटर पानी उपयोग हो रहा है जबकि घरेलू व उद्योगों के लिए लगभग 2230 हैक्टेयर पानी की आपूर्ति हो रही है। वर्ष 2025 तक पीने के लिए 647.17 हैक्टेयर मीटर पानी का प्रावधान किया गया है। भविष्य में सिंचाई की जरूरतों को पूरा करने के लिए इस घाटी में 4942.65 हैक्टेयर मीटर पानी ही बचेगा जबकि नूरपुर घाटी का क्षेत्र 23775 हैक्टेयर है। इसमें प्री-मानसून व पोस्ट मानसून के बाद एक वर्ष में संचित हुए भू-जल की मात्रा 11958.75 हैक्टेयर मीटर है। वर्तमान में घरेलू व सिंचाई की जरूरतों को पूरा करने के लिए इसमें 3537.92 हैक्टेयर मीटर पानी उपयोग हो रहा है तथा वर्ष 2025 तक इस क्षेत्र में पीने के पानी की मांग को देखते हुए 976.44 हैक्टेयर मीटर पानी का प्रावधान किया गया है। इसके बाद भविष्य में सिंचाई के लिए 9505.56 हैक्टेयर मीटर भू-जल उपलब्ध होगा।


नियमों की हो रही अवहेलना
सरकार द्वारा जारी एक अधिसूचना के अंतर्गत किसी भी व्यक्ति को पेयजल अथवा सिंचाई हेतु भू-जल प्राधिकरण से अनुमति लेना जरूरी करार दिया गया था, जिसके लिए सरकार ने दर भी निर्धारित की थी बावजूद इसके यह नियम कागजों तक ही सीमित नजर आ रहा है और उक्त सभी घाटियों में मनमर्जी से लोग नलकूप लगा रहे हैं। इससे जहां सरकार को लाखों रुपए का चूना लग रहा है, वहीं पानी की गुणवत्ता व खपत का कोई डाटा विभाग के पास न होने के कारण भविष्य में सर्वेक्षण करने में समस्या का सामना करना पड़ेगा, वहीं अपेक्षा से कहीं अधिक कम हुए जलस्तर की समस्या से निपटना भी आसान नहीं होगा। भू-जल विभाग द्वारा उक्त सभी घाटियों में निजी व सरकारी सभी तरह के नलकूप प्रतिबंधित हैं और नलकूप लगाने के लिए विभाग से परमिशन लेना नितांत जरूरी है।
 


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Ekta

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