केजरीवाल का नया ड्रामा

punjabkesari.in Monday, Jun 18, 2018 - 04:17 AM (IST)

पिछले कुछ दिनों से अरविंद केजरीवाल और उनके सहयोगियों ने अपनी  मांगों को लेकर एक नया धरना चला रखा है। इस बार का धरना दिल्ली के उपराज्यपाल के निवास के वातानुकूलित प्रतीक्षा कक्ष में चल रहा है। 

केजरीवाल की मांग है कि दिल्ली के उपराज्यपाल दिल्ली सरकार के अफसरों को अपनी हड़ताल खत्म करने का निर्देश दें, जिससे सरकार का कामकाज सुचारू रूप से चल सके। केजरीवाल का ऐसा करना कोई नई बात नहीं है। जब कभी भी उनसे किसी समस्या का समाधान नहीं निकलता तो वह या तो समस्या से भाग खड़े होते हैं या फिर ऐसे धरने का नाटक कर जनता और सरकार के पैसे व समय की बर्बादी करते हैं। 

फिर चाहे वह बीच सड़क बिस्तर लगाकर सोना हो, शपथ के लिए मैट्रो से जाना और मैट्रो के सारे कायदे-कानून तोड़कर उसमें अव्यवस्था फैलाना हो या फिर जनता दरबार से भाग खड़े होना हो। दिल्ली की जनता अब उनकी नौटंकी से भली-भांति परिचित हो चुकी है। इसलिए अब केजरीवाल का ऐसे नाटक करने से जनता पर कोई असर नहीं पड़ता। केजरीवाल सरकार के ही पूर्व मंत्री कपिल मिश्रा का कहना है कि दिल्ली सरकार के अफसरों की कोई हड़ताल नहीं है, दिल्ली सरकार के मंत्री ही छुट्टी पर हैं। उधर अधिकारी संघ की मानें तो उनका दावा है कि कोई भी अधिकारी हड़ताल पर नहीं है और कोई काम प्रभावित नहीं हुआ। अब इसे ड्रामा नहीं कहेंगे तो और क्या कहेंगे? 

असल मुद्दा तो कुछ और है। दिल्ली के मुख्य सचिव के साथ हुई मारपीट पर पर्दा डालने के लिए केजरीवाल और उनके साथियों ने यह धरना शुरू किया है जोकि पब्लिसिटी लेने का एक और हथकंडा है। वह सोचते हैं कि ऐसा करके वह सोशल मीडिया के सभी चैनलों का अपने फायदे के लिए इस्तेमाल कर सकेंगे और जनता की सहानुभूति भी ले लेंगे, लेकिन केजरीवाल और उनकी टीम को शायद यह नहीं पता कि जनता को बार-बार मूर्ख बनाना आसान नहीं होता। प्रधानमंत्री मोदी और दिल्ली के उपराज्यपाल ने अभी तक इस मामले में कुछ भी नहीं कहा है। साफ  है वे इस बचकानी हरकत से दूर ही रहना चाहते हैं। 

अब अगर किसी भी कारण से केजरीवाल और उनके साथियों को उपराज्यपाल के निवास से हटा दिया जाएगा तो वे इसे विपक्ष की राजनीति बताकर जनता के सामने फिर से एक नौटंकी करेंगे। केजरीवाल और उनके साथियों को यह याद करना होगा कि जस्टिस संतोष हेगड़े हों, अन्ना हजारे हों, प्रशांत भूषण हों, योगेंद्र यादव हों, किरण बेदी हों और ऐसे तमाम नामी लोग, जिन्होंने केजरीवाल के साथ कंधे से कंधा लगाकर लोकपाल की लड़ाई लड़ी, आज वे सब केजरीवाल के गलत आचरण के कारण उनके विरोध में खड़े हैं। वे सभी आज एक सुर में उनके नाटकों की असलियत जनता के सामने ला रहे हैं। मेरे ब्लॉग पर 2011 से 2014 तक के लेख देखिए या यू-ट्यूब पर जाकर वे दर्जनों टी.वी. शो देखिए, उस वक्त  जो-जो बात इस नाटक मंडली के बारे में मैंने कही थी, वे सब आज सामने आ रही हैं। 

लोग हैरान हैं अरविंद केजरीवाल की राजनीतिक अवसरवादिता और छल नीति का करिश्मा देखकर। आज तो उनके व्यक्तित्व और कृतित्व के विरोधाभासों की एक लम्बी फेहरिस्त तैयार हो गई है। पर इससे उन्हें क्या, अब वे सब मुद्दे अरविंद के लिए बेमानी हैं जिनके लिए वह और उनके साथी सड़कों पर लौटे और मंचों पर चिंघाड़े थे क्योंकि केजरीवाल का पहले दिन से मकसद था सत्ता हासिल करना, सो उन्होंने कर ली। अब और आगे बढऩा है तो संघर्ष के साथियों व उत्साही युवाओं को दरकिनार करने के बाद अति भ्रष्ट राजनेताओं की राह पर चलने में केजरीवाल को कोई संकोच नहीं है। 

आज दिल्ली की जनता दिल्ली सरकार की नाकामियों की वजह से शीला दीक्षित को याद कर रही है पर केजरीवाल की बला से। उन्होंने तो झुग्गी-झोंपड़ी पर अपना फोकस जमा रखा है और ऐसे ही नाटक करके भोली-भाली जनता को मूर्ख बना रखा है। साफ है जहां से ज्यादा वोट मिलने हैं उन पर ध्यान दो, बाकी शासन व्यवस्था और विकास जाए गड्ढे में। दुख इस बात का होता है कि हमारे देश की जनता बार-बार नारे और मीडिया के प्रचार से उठने वाले स्व घोषित मसीहों से ठगी जाती है, पर ऐसे ढोंगी मसीहों का कुछ नहीं बिगाड़ पाती। 

लोकतंत्र के इतिहास में ऐसे तमाम उदाहरण हैं जब व्यवस्था पर हमला करने वाले ही अपनी इसी भूमिका का मजा लेते हैं और अपनी आक्रामक शैली के कारण चर्चा में बने रहते हैं, पर वे समाज को कभी कुछ ठोस दे नहीं पाते सिवाय सपने दिखाने के। ऐसे लोग समाज का बड़ा अहित करते हैं। ऐसा ही कुछ हाल दिल्ली की जनता का है। अब दिल्ली की जनता केजरीवाल के नए ड्रामे से प्रभवित नहीं होगी और यही चाहेगी कि जो वायदे केजरीवाल ने चुनाव से पहले किए थे वे सपना बनकर न रह जाएं, जनता के लिए कुछ ठोस होना भी चाहिए।-विनीत नारायण


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