Opinion: मोदी भारत में भी ‘शांगरीला’ जैसा भाषण दें

punjabkesari.in Sunday, Jun 17, 2018 - 12:20 PM (IST)

शांगरीला को एक रहस्मय, शांत वादी, धरती पर एक स्वर्ग एवं स्थायी खुशी की भूमि माना जाता है। यदि मान लें कि दुनिया में कहीं शांगरीला है तो इसके भारत में होने की कोई सम्भावना नहीं। अपने इतिहास, संस्कृति, सभ्यता एवं देश की परम्पराओं पर गर्व करने वाले हम भारतीयों को यह जानकर बहुत बड़ी निराशा होगी। 

दुनिया भर तक व्यापक पहुंच बनाने के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रयासों ने इस बिंदू पर भी बहुत बड़े पैमाने पर ध्यान खींचा है। हाल ही में उन्होंने सिंगापुर में आयोजित शांगरीला वार्तालाप के मौके पर एक प्रभावशाली भाषण दिया। इस भाषण के शब्द मोतियों की तरह पिरोए हुए थे और इसमें अनेक खंड ऐसे हैं जो न केवल पढ़े जाने बल्कि हवाला दिए जाने के योग्य हैं: 

अपने देश में विभिन्नता
अपने भाषण के प्रारम्भ में मोदी ने कहा ‘‘सिंगापुर यह भी दिखाता है कि जब राष्ट्र किसी एक या दूसरी शक्ति के पीछे खड़ा होने की बजाय सिद्धांतों के अंग-संग खड़े होते हैं तो दुनिया उन्हें सम्मान की दृष्टि से देखती है और अंतर्राष्ट्रीय मामलों में उनकी आवाज सुनी जाती है और जब वे अपने देश में विभिन्नता का वरण करते हैं तो वे देश से बाहर भी समावेशी जगत का सपना देखते हैं।’’ 

देश के अंदर जिस विभिन्नता का हम उल्लेख कर रहे हैं वह भारत की अवधारणा में ही समाई हुई है। इसमें मजहब, भाषा, व्यक्तिगत कानून, संस्कृति, खान-पान की आदतें इत्यादि भी शामिल हैं। फिर भी ऐसे सशक्त गुट हैं जो विभिन्नता का उपहास उड़ाते हैं या इसका विरोध करते हैं। वह दावा करते हैं कि हिंदुस्तान में रहने वाले सभी लोग हिंदू हैं। वे इतिहास को दोबारा लिखने के प्रयास करते हैं और जिन चीजों को अपना मानते हैं उन पर अपना कब्जा भी जमाते हैं और यूनिफार्म पर्सनल लॉ, खाने-पीने की एक जैसी आदतों, एक तरह के पहरावे और एक तरह की भाषा पर अनिन्न श्रद्धा रखते हैं। 

विश्व नेताओं ने सिंगापुर में प्रधानमंत्री मोदी का भाषण सुना और अनेकता को गले लगाने की उनकी अपील की खूब प्रशंसा की और फिर जब उन्हें हिंदुस्तान में हुई घटनाओं के बारे में पढऩे का मौका मिला : ये समाचार दादरी, यू.पी. (मोहम्मद अखलाक), अलवर, राजस्थान (पहलूखान), ऊना, गुजरात (दलित लड़के) और भीमा कौरेगांव महाराष्ट्र (दलित समारोह) इत्यादि से संबंधित थे। 

उनके लिए यह विश्वास करना कठिन हो रहा था कि मोदी द्वारा कही गई बातों तथा हिंदुस्तान से आई रिपोर्टों में से सत्य किस में है। दोनों बातें इतनी विपरीत थीं कि उनके दिमाग चकरा गए। ऊपर से कुछ दिन पूर्व झारखंड के जिला गौड्डा के डुल्लू नगर में दो मुस्लिमों को भीड़ ने पशु चुराने के आरोप में पीट-पीट कर मार दिया था और महाराष्ट्र के जलगांव जिले के वकाड़ी कस्बे में तीन दलित लोगों को एक कुएं में निर्वस्त्र होकर नहाने के आरोप में पहले पीटा गया और फिर नग्न अवस्था में ही नगर में उनका जलूस निकाला गया। दुनिया के देशों के सामने हम जिस विभिन्नता की शेखी बघारते हैं वह कहां गई है? आर्थिक संबंधों पर बोलते हुए प्रधानमंत्री ने कहा था : ‘‘हम फिर से अपने क्षेत्र की बात करते हैं। भारत के बढ़ते अंतर्राष्ट्रीय आदान-प्रदान के साथ-साथ इसका आर्थिक और रक्षा सहयोग भी गहराता जा रहा है। आस-पड़ोस के देशों के साथ हमने दुनिया के किसी भी अन्य भाग की तुलना में अधिक व्यापार समझौते किए हैं।’’ 

आयात-निर्यात परीक्षण में विफलता
आस-पड़ोस के देशों के साथ जो हमने अनगिनत समझौते किए हैं उनका उद्देश्य और तात्पर्य क्या है? सार्क और आसियान देशों के साथ भारत के व्यापार में जड़ता क्यों आ गई? 2013-14 और 2017-18 में सार्क देशों के साथ हमारा व्यापार क्रमश: लगभग 20 अरब और 26 अरब अमरीकी डालर था। दुनिया भर के देशों के साथ भारत के कुल व्यापार के अनुपात की दृष्टि से यह आंकड़ा क्रमश: 2.6 और 3.4 प्रतिशत बनता है। दूसरी ओर आसियान देशों के मामले में उपरोक्त दोनों वर्षों के लिए व्यापार आंकड़ा अनुमानत: 74 अरब (9.7 प्रतिशत) और 81 अरब डालर (10.5 प्रतिशत)था। गत 4 वर्षों की हमारी उपलब्धियों में ऐसी हेकड़ी हांकने वाली कोई बात नहीं कि यह कोई उल्लेखनीय बदलाव है। 

भारत की आर्थिक वृद्धि के बारे में बोलते हुए मोदी ने कहा: ‘‘हम प्रतिवर्ष 7.5 से 8 प्रतिशत तक की वृद्धि दर बनाए रखेंगे। जैसे-जैसे हमारी अर्थव्यवस्था बढ़ेगी, आस-पड़ोस के देशों तथा शेष दुनिया के साथ हमारा जुड़ाव भी बढ़ेगा। 80 करोड़ से भी अधिक युवक आबादी वाला यह देश जानता है कि इसके भविष्य की सुरक्षा केवल भारतीय अर्थव्यवस्था के आकार से ही नहीं बल्कि इस तथ्य से भी सुनिश्चित होगी कि दुनिया के देशों के साथ हमारे रिश्तों में गहराई कितनी है।’’ यह सोलह आने सही बात है, लेकिन सरकार को इस बात की बिल्कुल ही समझ नहीं कि निर्यात, कारखाना उत्पादन तथा रोजगार के बीच परस्पर संबंध क्या है? भारत के ग्लोबल रिश्तों का सही माप है उनके साथ हमारा व्यापार और इस मुद्दे पर सरकार परीक्षा में बुरी तरह विफल हुई है। गत चार वर्षों में निर्यात वृद्धि दर नकारात्मक ही रही है क्योंकि हमारा निर्यात 615 अरब अमरीकी डालर से फिसलकर 303 अरब अमरीकी डालर पर आ गया है। 

आयात में मामूली वृद्धि हुई है और यह 450 अरब अमरीकी डालर से उठकर 465 अरब डालर तक पहुंच गया है। कोई भी देश धमाकेदार निर्यात वृद्धि के बगैर अपने कारखाना क्षेत्र को ऊंचा नहीं उठा पाया है और न ही कोई देश कारखाना क्षेत्र को प्राण दान दिए बगैर गैर कृषि रोजगारों का सृजन कर पाया है। कारखाना उत्पादन तथा निर्यात मोर्चे पर विफलता के चलते बहुत से लोगों ने जी.डी.पी.वृद्धि के आंकड़ों को संदेह की दृष्टि से देखना शुरू कर दिया है। वैसे जी.डी.पी. वृद्धि दर का आंकड़ा भी 2015-16 के 8.2 प्रतिशत स्तर से लुढ़क कर 2017-18 में 6.7 प्रतिशत पर फिसल गया है। 

समझदारी का रास्ता 
प्रधानमंत्री ने हालांकि ग्लोबल अर्थव्यवस्था के परिप्रेक्ष्य में अपने शब्दों का चयन बहुत सावधानीपूर्वक किया था लेकिन इन शब्दों को भारतीय परिस्थिति को चित्रित करने के लिए भी भली-भांति प्रयुक्त किया जा सकता है: ‘‘...और भविष्य कम निश्चित दिखाई देता है। अपनी समस्त प्रगति के बावजूद हम अनिश्चितता के कगार पर जी रहे हैं। अनेक अनसुलझे सवाल मुंह बाय खड़े हैं और विवाद समाधान को तरस रहे हैं; हम दावों और प्रतिदावों तथा प्रतिस्पर्धात्मक विकास माडलों व परस्पर टकराते दृष्टिकोणों में जी रहे हैं।’’ 

प्रधानमंत्री के भाषण के अंतिम शब्द और इनका नतीजा बिल्कुल मौके के अनुरूप ही था : ‘‘हम वेदांत दर्शन के वारिस हैं। इस दर्शन का यह मानना है कि समस्त चराचर जगत एक सूत्र में पिरोया हुआ है। यह दर्शन अनेकता में एकता का जश्र मनाता है। इसका संदेश है ‘सत्य एक है लेकिन विद्वानजन इसे अनेक तरीकों से व्यक्त करते हैं।’ यही हमारी सभ्यतागत नैतिकता की आधारशिला है, इसे ही हम बहुलतावाद, सहअस्तित्व, खुलापन तथा संवाद का नाम देते हैं।’’ 

‘‘लेकिन एक रास्ता बुद्धिमता का भी है। यह हमें किसी उच्चतर उद्देश्य की ओर पुकारता है: यानी कि अपने स्वार्थ आधारित संकीर्ण दृष्टिकोण से ऊपर उठें और इस सच्चाई को स्वीकार करें कि हम में से हर कोई तब ही अपने हित बेहतर ढंग से साध सकता है जब हम सब बराबर के लोगों की तरह मिलकर व्यापक कल्याण के लिए काम करें...’’ ये शब्द कितने सत्य और समयानुकूल होंगे यदि ये विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल, राम सेना, हनुमान सेना, मजनू विरोधी दस्तों, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के साथ-साथ अनेक मंत्रियों, सांसदों और विधायकों को सम्बोधित किए जाएं जोकि ‘बुद्धिमता के रास्ते’ का परित्याग किए हुए हैं। मैं प्रधानमंत्री से अनुरोध करता हूं कि वह भारत में और भारतीय वास्तविकताओं को सम्बोधित होकर शांगरीला जैसा भाषण करें।-पी. चिदम्बरम 


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