अमेरिकी किशोरों में आत्महत्या की भावना का बढ़ना चिंताजनक

punjabkesari.in Sunday, Jun 17, 2018 - 02:37 AM (IST)

अमरीका भर में किशोरों पर हुए एक सर्वेक्षण ने व्यापक डर और निराशा की बढ़ती भावना को उजागर किया है। हाई स्कूल के प्रत्येक 7 छात्रों में से एक द्वारा डाक्टरों के नुस्खे पर उपलब्ध अफीम आधारित दवाइयों का दुरुपयोग इस स्थिति का केवल एक लक्षण है। 

‘उदासी तथा नाउम्मीदी’ की भावना, आत्मघाती विचारों को व्यक्त करने वाले एवं हिंसा या दादा किस्म के सहपाठियों के भय से कई दिनों तक स्कूल से गैर-हाजिर रहने वाले किशोरों की संख्या 2007 से लगातार बढ़ रही है। लैस्बियन, गे तथा द्विलिंगी हाई स्कूल छात्रों के मामले में तो यह वृद्धि खास तौर पर उल्लेखनीय है। राष्ट्रीय स्तर पर प्रत्येक 5 में से एक छात्र ने स्कूल में ‘दादा किस्म के लोगों’ की पिटाई का शिकार होने की शिकायत की। वहीं प्रत्येक 10 में से एक छात्रा और प्रत्येक 28 में से एक छात्र ने बताया कि उन्हें सैक्स करने के लिए शारीरिक रूप से मजबूर किया गया। 

सर्वेक्षण करने वाली अमरीकी संस्था के सैंटर फार डिजीज कंट्रोल एंड प्रीवैंशन के अधिकारी डा. जोनाथन मर्मिन ने बताया, ‘‘एक किशोर की दुनिया बिल्कुल नीरस हो सकती है, लेकिन नाउम्मीदी की सतत् भावनाओं की शिकायत करने वाले छात्रों का उच्चानुपात और आत्महत्या के बारे में सोचने वाले छात्रों की संख्या का 17 प्रतिशत बढ़ जाना बहुत गहरी चिन्ता का विषय है।’’ 2017 में जिन विद्यार्थियों का सर्वेक्षण किया गया था, उनमें से 31 प्रतिशत ने इस तरह की भावनाओं की स्वीकारोक्ति की थी, जबकि 2007 में यह आंकड़ा 28 प्रतिशत था। 2017 में लगभग 14 प्रतिशत छात्रों ने सचमुच में आत्महत्या की योजना बनाई थी, जबकि 2007 मेें यह आंकड़ा 11 प्रतिशत था। 

‘यूथ रिस्क बिहेवियर सर्वे’ अमरीका में प्रति दो वर्ष बाद किया जाता है और यह अमरीका के 39 राज्यों में लगभग 15000 छात्रों पर आधारित होता है। इस सर्वेक्षण में अनेक प्रकार की गतिविधियों और रवैयों के बारे में सवाल पूछे जाते हैं। वैसे सर्वेक्षण रिपोर्ट में कुछ उत्साहवद्र्धक रुझान भी देखने को मिले हैं जिससे यह संकेत मिलता है कि किशोरों की समूची छवि में छोटी-छोटी भिन्नताएं हैं। एक दशक पूर्व की तुलना में अब सैक्स करने, शराब पीने या कोकीन, हैरोइन अथवा चरस-गांजा जैसे नशीले पदार्थ प्रयुक्त करने वाले छात्रों की संख्या कम हुई है। लेकिन ऐसा सवाल सर्वेक्षण में पहली बार पूछा गया था इसलिए शोधकत्र्ता यह नहीं कह सकते कि प्रत्येक 7 में से 1 यानी 14 प्रतिशत छात्रों द्वारा डाक्टरी पर्ची पर उपलब्ध अफीम आधारित दवाइयों का सेवन वृद्धि का रुझान दिखाता है या गिरावट का। 

नैशनल कोलीशन आफ एस.टी.डी. डायरैक्टर्स के कार्यकारी निदेशक और सामाजिक कार्यकत्र्ता डेविड सी. हार्वे ने कहा कि बेशक उक्त आंकड़ा तुलनात्मक रुझान न भी पैदा करता हो तो भी इससे यह महत्वपूर्ण खुलासा होता है कि किशोर अफीम आधारित कुछ दुर्लभ पदार्थों से प्रभावित हो रहे हैं। उन्होंने बहुत दृढ़ता से यह संकेत दिया है कि कोकीन, हैरोइन और मारीजुआना (चरस-गांजा इत्यादि) जैसे पदार्थों का सेवन भी युवा लोगों में संक्रामक यौन रोगों में बढ़ौतरी के लिए जिम्मेदार है। हार्वे ने बताया कि रिपोर्ट यह भी संज्ञान लेती है कि किशोरों में निरोध प्रयुक्त करने की प्रवृत्ति घट रही है। 

यौन सक्रियता की आयु में प्रविष्ट हो चुके 54 प्रतिशत किशोरों ने बताया कि आखिरी बार सैक्स करते समय उन्होंने निरोध प्रयुक्त किया था, जबकि 2007 में यह स्वीकारोक्ति करने वाले किशोर छात्रों की संख्या 62 प्रतिशत थी। इस गिरावट को यदि हम डाक्टरी पर्ची पर उपलब्ध अफीम आधारित नशीले पदार्थों के प्रयोग में आई गिरावट से जोड़कर देखें तो यह सचमुच ही खतरे को बुलावा देने का संकेत है क्योंकि यह एच.आई.वी. तथा हैपेटाइटिस संक्रमण के साथ-साथ आत्शक (सिफलिस) जैसे यौन संक्रमण रोगों के बढ़ते खतरे की चेतावनी है। सी.डी.सी. के नैशनल सैंटर फार एच.आई.वी. (एड्स), वायरल हैपेटाइटिस, एस.टी.डी. एवं टी.बी. निदान के निदेशक डा. मर्मिन ने यह भी यही चिन्ता व्यक्त करते हुए कहा कि ये आंकड़े हमारे लिए त्वरित और प्रभावी कदम उठाने की चेतावनी हैं। 

बेशक विभिन्न नस्लों में स्वास्थ्य संबंधी विषमताएं अभी भी मौजूद हैं तो भी सभी समुदायों में कुछ जोखिम भरे यौन व्यवहार घट रहे हैं। उदाहरण के तौर पर जिंदगी में कभी भी सैक्स कर चुके श्वेत छात्रों की संख्या 2017 में घट कर 39 प्रतिशत पर आ गई है जोकि 2007 में 44 प्रतिशत थी, जबकि अश्वेत छात्रों के मामले में यह आंकड़ा 66 प्रतिशत से लुढ़क कर 46 प्रतिशत पर आ गया है और हिसपानी विद्यार्थियों में 52 प्रतिशत से 41 प्रतिशत पर। जिंदगी में कभी भी सैक्स कर चुके छात्रों की सकल संख्या 2007 में 48 प्रतिशत थी, लेकिन 2017 में यह घटकर 39 प्रतिशत पर आ गई है। जबकि डेटिंग के मौके पर यौन हिंसा झेलने वाले छात्रों की संख्या 2013 में 10 प्रतिशत थी, लेकिन 2017 में घटकर 7 प्रतिशत पर आ गई है। 

विशेषज्ञों का कहना है कि जोखिम भरे यौन व्यवहार तथा ड्रग एवं अल्कोहल प्रयोग में एक दशक दौरान आई गिरावट इस बात को रेखांकित करती है कि किशोरों में समझदारी भरे फैसले लेने की योग्यता बढ़ी है और इसी बात के कारण डा. मर्मिन बहुत आशान्वित हैं। उनका कहना है : ‘‘यह सिद्ध करने के लिए हमारे पास मजबूत आंकड़े हैं कि किशोर जो भी करते हैं उस पर यदि उनके माता-पिता तवज्जो दें और उन्हें स्नेहपूर्वक सुधारने की कोशिश करें तो इससे बहुत बड़ा अंतर आ सकता है। सामुदायिक स्तर पर भी मानसिक स्वास्थ्य और नशीले पदार्थों की लत के इलाज से संबंधित सेवाओं तक पहुंच बनाने में सहायता मिल सकती है। स्कूल भी ऐसा कौशल सिखा सकते हैं कि नशीले पदार्थों के संंबंध में पैदा होने वाली समस्याओं से खुद कैसे निपटना है और आसपास के किसी नशेड़ी साथी के मामले में सहायता के लिए हस्तक्षेप कैसे करना है।’’ 

जहां तक जोखिम भरे व्यवहार का सवाल है, गे और द्विलिंगी किशोरों के मामले में इनका आंकड़ा असाधारण  रूप में ऊंचा है। उनकी भावनात्मक और शारीरिक सुरक्षा का भाव केवल अधिक से अधिक खतरे में घिरता जा रहा है। 2015 के एक सर्वेक्षण में सामान्य छात्रों की तुलना में 3 गुना अधिक गे, द्विलिंगी और लैस्बियन किशोरों ने बताया था कि उन्हें सीनियर्स द्वारा सैक्स के लिए शारीरिक रूप से मजबूर किया गया था, लेकिन यह आंकड़ा चार गुना अधिक हो गया। 2015 की तुलना में 2017 में स्कूल से गैर हाजिर रहने की उनकी सम्भावना अधिक बढ़ गई थी। इन परिणामों पर भौगोलिक स्थिति का भी प्रभाव होता है। उदाहरण के तौर पर न्यूयार्क में 31 प्रतिशत छात्रों ने कभी न कभी सैक्स करने की बात मानी। इसके विपरीत डैलावेयर में यह आंकड़ा 45 प्रतिशत और साऊथ कैरोलिना में 39 प्रतिशत रहा। 

लेकिन कंडोम के प्रयोग में आ रही गिरावट को लेकर विशेषज्ञ हतप्रभ हैं। डा. मर्मिन का कहना है : ‘‘गर्भ नियंत्रण के हार्मोन आधारित उपायों के चलते कंडोम का प्रयोग कम हो रहा है। कुछ छात्रों को यह समझ नहीं आता कि गर्भ नियंत्रण के अलावा भी कंडोम प्रयुक्त करने के अन्य कई लाभ हैं।’’ डा. मर्मिन का कहना है कि कंडोम के घटते प्रयोग का संबंध घटती स्वास्थ्य शिक्षा से भी है। उनका कहना है, ‘‘हम स्कूल स्वास्थ्य नीतियों की मोनीटरिंग करते हैं और हमने पाया है कि एच.आई.वी., एस.टी.डी. (यौन संक्रमण से होने वाले रोग), संक्रामक रोगों को रोकने के संबंध में शिक्षा समय में कमी आई है। शायद यही कारण है कि युवा एच.आई.वी. और एस.टी.डी. के प्रति अधिक उदासीन हो गए हैं।’’-जे. हॉफमैन


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Punjab Kesari

Recommended News

Related News