Kundli Tv- आईए जानें, क्या है मृत्यु का रहस्य

punjabkesari.in Saturday, Jun 16, 2018 - 01:46 PM (IST)

ये नहीं देखा तो क्या देखा (देखें VIDEO)

PunjabKesariदुनिया के किसी भी कोने में, किसी भी मजहब, जाति, उम्र और किसी भी लिंग के मनुष्य से यह पूछा जाए कि उसका सबसे बड़ा भय क्या है तो नि:संदेह उसका एक ही उत्तर होगा-मृत्यु। उसके क्षणिक विचार मात्र से ही हम कांप उठते हैं। इसका मतलब हम यही मानते हैं कि बस, सब कुछ खत्म। लगता है अभी तो जीवन यात्रा शुरू ही हुई थी कि अंत भी आ गया।

PunjabKesari
कितने ही अरमान संजोए थे, क्या सब आधे-अधूरे छूट जाएंगे? या फिर यह ऐशो-आराम, यह शानो-शौकत, क्या ये सब यूं ही धरे रह जाएंगे? हमने पूरा जीवन अपनी पहचान, अस्तित्व बनाने में, पद प्रतिष्ठा, धन-दौलत बटोरने में बिता दिया और यह निर्दयी आई तो एक ही सांस में सब कुछ लूट कर ले गई।

PunjabKesari
सच पूछें तो मृत्यु के प्रति हमारी यह नकारात्मक सोच बिल्कुल बेमानी है। मृत्यु तो मिथ्या है। सच तो यह है कि उसी की कोख में जीवन छिपा है। जैसे सूरज छिपने पर गुजरा हुआ दिन बीता हुआ कहलाता है और सूरज के उगने पर नया दिन जन्म ले लेता है। जीवन में अगर मरण है तो यह भी उतना ही बड़ा सच है कि मरण में ही जीवन है। दोनों एक ही सृष्टि चक्र के गले मिलते अंश हैं।

PunjabKesari
यह चक्र यूं ही सदा से चलता आया है। मनीषियों ने सैंकड़ों साल पहले ही इस शाश्वत सत्य को पहचान लिया था। एक दैहिक चोले से दूजे दैहिक चोले में जाना ही मृत्यु है। यह सत्य आज वैज्ञानिकों से भी नहीं छिपा है कि प्रकृति में विद्यमान ऊर्जा चाहे अपना रूप-रंग आकार हजार बार दल ले, खत्म नहीं होती। फिर जीवन ऊर्जा को यूं नाशवान समझ लेना, क्या हमारी भूल नहीं?

PunjabKesari
मृत्यु की सत्यता उन्हीं लोगों के लिए है जिनका समूचा जीवन केवल भौतिक दुनिया की चकाचौंध में लिप्त रहता है। वे लोग सदा मृत्यु से दूर भागने के प्रयास में जुटे रहते हैं, पर विफलता ही हाथ आती है। इसके विपरीत ऐसे ज्ञानी लोग, जो यह जानते हैं कि मृत्यु दैहिक चोले, अहंकार और इच्छाओं का नाश है, उनके लिए इसका दर्जा मात्र भौतिक है।


इस निर्मल, मुक्त बोध में ही मृत्यु के विवेकहीन भय से छुटकारा पाने का सुंदर पथ छिपा है। यह बोध ही हमें नित्य जीवन में विष फैला रही नकारात्मक शक्तियों यथा लोभ, ईर्ष्या, द्वेष, हिंसा, षड्यंत्र से मुक्त करवा सकता है। प्रेम ही जीवन है और द्वेष इसका अंत, विस्तार में ही सांसें हैं और संकोच में ऊर्जा का ह्रास। न तो इस दुनिया की रचना संयोग की बिखरी हुई ईंटों से हुई है, न ही उसके नियम इस प्रकार किन्हीं भाग्य रेखाओं के अधीन रचे बने हैं। 

दरिद्रता को घर से दूर रखती है ये चीज़


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Niyati Bhandari

Recommended News

Related News