Kundli Tv- युद्ध से पहले यहां की थी पांडवों ने पूजा-अर्चना

punjabkesari.in Thursday, Jun 14, 2018 - 04:52 PM (IST)

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भारत की राजधानी दिल्ली के कमल मंदिर के समीप सूर्यकूट पर्वत पर कालिका मंदिर स्थापित है। कुछ मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर का निर्माण 18वीं शताब्दी में किया गया था। यह देवी कालका यानि देवी काली को समर्पित है। इसे देश के प्राचीनतम सिद्धपीठों में से एक कहा जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार इसी जगह आद्यशक्ति माता भगवती ने 'महाकाली' के रूप में प्रकट होकर असुरों का संहार किया था। इसके बाद से यह मंदिर मनोकामना सिद्धपीठ के रूप में विख्यात है। 
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पौराणिक कथा
कुछ मान्यताओं के अनुसार महाभारत काल में युद्ध से पहले भगवान श्रीकृष्ण ने पांडवों के साथ इस जगह (सूर्यकूट पर्वत) पर देवी भगवती की पूजा-अर्चना की थी। जहां बाद में बाबा बालकनाथ ने तपस्या कर माता भगवती के दर्शन पाए थे। 
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मंदिर के महंत के अनुसार असुरों द्वारा सताए जाने पर देवताओं ने इसी जगह देवी (शक्ति) की अराधना की थी। देवताओं के वरदान मांगने पर मां पार्वती ने कौशिकी देवी को प्रकट किया। जिन्होंने अनेक असुरों का संहार किया था लेकिन वह रक्तबीज को नहीं मार सकीं थी। तब माता पार्वती ने अपनी भृकुटी से महाकाली को प्रकट किया। जिन्होंने रक्तबीज का संहार किया। महाकाली का रौद्र रूप देखकर सभी भयभीत हो गए। तब उन्होंने ने मिलकर मां काली की स्तुति की तब मां भगवती ने उनकी स्तुति से प्रसन्न होकर आर्शीवाद दिया था कि जो भी इस स्थान पर श्रृद्धाभाव से पूजा करेगा, उसकी सभी मनोकामना पूर्ण होंगी।
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इसके प्राचीन इतिहास के चलते है कालका जी का मंदिर विश्वभर में बहुत प्रसिद्ध व हिंदूओं के लिए आस्था का केंद्र है। साथ ही यह मंदिर यह मंदिर दिल्ली के प्रमुख पर्यटक स्थलों में से भी एक है।

मुख्य मंदिर में 12 द्वार हैं, जो 12 महीनों का संकेत देते हैं। हर द्वार के पास माता के अलग-अलग रूपों का चित्रण किया गया है। मंदिर के परिक्रमा में 36 मातृकाओं के द्योतक हैं। माना जाता है कि ग्रहण में सभी ग्रह इनके अधीन होते हैं। इसलिए दुनिया भर के मंदिर ग्रहण के वक्त बंद होते हैं, जबकि कालका मंदिर खुला रहता है।
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आम दिनों में इस मंदिर में वेदोक्त, पुराणोक्त व तंत्रोक्त तीनों विधियों के साथ पूजा की जाती है। परंतु नवरात्रि के दौरान यहां में विशाल मेला लगता है। मंदिर के भीतर अखंड दीप प्रज्जवलित है। लोक मान्यता है कि अष्टमी व नवमी को माता मेले में विचरती यानि घूमती हैं। 
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Jyoti

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