देवी पार्वती की ये बात सुनकर, क्यों श्रीहरि ने मिटाना चाहा अपना अस्तित्व

punjabkesari.in Wednesday, Jun 13, 2018 - 03:47 PM (IST)

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एक बार की बात है कैलाश पर बैठे भगवान शंकर ने देवी पार्वती से कहा- "मुझे श्रीहरि सबसे अधिक प्रिय हैं, उनसे अधिक प्रिय मुझे अपना शरीर भी नहीं।"

पार्वती जी को विश्वास था, स्वामी सर्वाधिक मुझे ही प्रेम करते हैं। महेश्वर के यह वचन सुनकर माता पार्वती रूष्ट हो गई और बहुत क्रोधित होकर बोलीं- कपालधारी, अहि-भूषण, चर्माम्बर, विरूपाक्ष, विषभोजी, दिगम्बर, भूत-पिशाच-सहचर, श्मशान, भिश्रुक भला किसी से क्या प्रेम करेगा। उन्मत्तों के स्वामी के प्रेम में स्थिरता ही कितनी होगी।
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उसी समय वहां श्रीहरि प्रकट हो गए और उन्होंने देवी उमा से कहा- "भगवान शंकर की पत्नी होने के कारण आप जगतमाता हैं, मेरी पूज्य हैं, किंतु आप महादेव की निंदा कर रही हैं। इसे मैं सुन नहीं सकता। कोई दूसरा यह निंदा करता तो मैं अवश्य उसको दण्ड देता, किंतु आप पर मेरा कोई वश नहीं हैं, इसलिए शिव-निंदा श्रवण करने वाले इस शरीर को अब मैं धारण नहीं करूंगा।" 
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इतना कहकर भगवान विष्णु अपना मस्तक काटने को तत्पर हो गए। ज्यों ही उन्होंने चक्र उठाया, त्रिभुवन में हाहाकर मच गया। शिव ने उनका हाथ पकड़ कर इस दारूण दुस्साहस से उनको रोका। यह सब देखने के बाद देवी पार्वती को अपने इन वचनों पर बड़ी लज्जा आई। उन्होंने श्रीपति से अपने अपराध की क्षमा मांगी। 
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जब श्रीहरि बैकुंठ चले गए तब माता पार्वती ने महादेव से पूछा- "हरि के समान ही मैं भी आपको प्रिय हो सकूं, इसका कोई उपाय है।"

शिव ने इसका उत्तर देते हुए कहा कि, "जिस प्रकार मैं उनका नित्य अर्चन करता हूं, तुम भी करने लगो तो तुम भी उनके समान मुझे प्रिय हो जाओगे।"

इसके बाद से भगवती पार्वती उसी समय से विष्णु भगवान की नित्य अराधना करने लगी।
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Jyoti

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