जापान जैसा आधुनिक देश बनने के लिए समाज को स्वयं बदलना होगा

punjabkesari.in Monday, Jun 11, 2018 - 11:41 AM (IST)

नेशनल डेस्कः भारत ने अपनी बुलेट ट्रेन योजना  के कार्यान्वयन का काम शुरू कर दिया है। मुम्बई-अहमदाबाद पाथ-वे पर भूमि अधिग्रहण के संबंध में समस्याएं आने की रिपोर्टें मिली हैं परन्तु फिर भी हमें उम्मीद करनी चाहिए कि इन्हें हल कर लिया जाएगा। यह आलेख इस मान्यता के आधार पर लिखा जा रहा है कि रेल परियोजना सचमुच जल्दी ही शुरू हो जाएगी।

इस आकार की परियोजना में  कुछ समस्याएं आनी अटल हैं परन्तु उम्मीद करनी चाहिए कि ये छोटी-मोटी ही होंगी। यदि सब कुछ ठीक-ठाक चलता रहा तो हम कुछ ही वर्षों में विदेशी सहायता और टैक्नोलॉजी के बूते बुलेट ट्रेन को दौड़ती हुई देखेंगे। जापान गत 50 वर्षों से बुलेट ट्रेनों का परिचालन कर रहा है और पूरा देश उनके दायरे में आता है। कुछ वर्ष पूर्व जापान के दूरदराज  उत्तर-पूर्वी राज्य हक्कायडो तक भी बुलेट ट्रेन पहुंचा दी गई थी। ऐसा समुद्र के नीचे सुरंग बनाने के कारण संभव हुआ था।

मैं 2 बार जापान गया और लम्बी अवधि तक वहां रुकता रहा हूं। मेरे विचार के अनुसार जापान दुनिया में एकमात्र अति विकसित समाज है। यह नि:संदेह जरूरत से अधिक विकसित है और चीन से तो निश्चय ही कई गुणा विकसित है। ‘विकसित’ से मेरा तात्पर्य यह है कि इसके नागरिक बहुत आधुनिक हैं। उनके आधुनिक होने के कारण ही उनकी टैक्नोलॉजी भी आधुनिक है न कि टैक्नोलॉजी आधुनिक होने के कारण वे आधुनिक हैं। जापान इसलिए आधुनिक नहीं कि इसके लोग बहुत लुभावने गैजेट्स प्रयुक्त करते हैं।

दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि जापान अंग्रेजी में काम काज करने के कारण आधुनिक नहीं है।  वास्तविकता यह है कि जापान में लगभग कोई भी अंग्रेजी नहीं बोलता और वहां यात्रा कर चुका हर व्यक्ति इस तथ्य को प्रमाणित करेगा। इसके बावजूद जापान की यात्रा करने वालों को उस देश का अनुभव आसानी से हासिल करने में कोई समस्या नहीं आती क्योंकि वहां के लोग आधुनिक हैं।  उनकी आधुनिकता  उनके डिजाइन और संस्कृति में से  झलकती है। पर्यटकों के लिए एक जगह से दूसरी जगह जाने हेतु जापान दुनिया का सबसे सुखद और आसान देश है क्योंकि जापानी लोग  डिजाइन में उत्कृष्टता पर ही फोकस किए रहते हैं।

मैं कुछ उदाहरण देना चाहूंगा। जापान में बहुत से वाशबेसिन शौचालय के लिए पानी के टब के रूप में भी प्रयुक्त होते हैं यानि कि आप हाथ-मुंह धोते हुए जो पानी प्रयुक्त करते हैं वही पानी जमा कर दिया जाता है और शौचालय को फ्लश करने के लिए प्रयुक्त होता है। यह कितनी सरल अवधारणा है! इससे संभवत: शौचालय में प्रयुक्त होने वाले पानी की 30 से 40 प्रतिशत तक बचत होती है। लेकिन मैंने दुनिया में एक भी समाज ऐसा नहीं देखा जिसको  यह साधारण-सा विचार सूझा हो और उसने इस पर कार्रवाई की हो।

जापानी बुलेट ट्रेन (शिंनकान्सन) में आपकी सीट के सामने यानि आपके आगे बैठे यात्री की बैकरैस्ट के पीछे  धातु की एक छोटी-सी गुलक लगी होती है। इसमें आपने अपनी टिकट डाल देनी होती है ताकि यदि कंडक्टर के आने पर आप सो रहे हों तो उसे टिकट चैक करने के लिए आपको जगाने की जरूरत न पड़े।  यह एक बहुत विवेकशील तथा कम खर्चीली परिकल्पना है जो आपकी नींद तथा कंडक्टर के समय का सम्मान करती है।

रेलगाडिय़ों में सीटों को एक-दूसरी के सामने लाने के लिए आसानी से मोड़ा जा सकता है यानी कि यदि 6 लोगों का परिवार एक साथ यात्रा कर रहा हो तो वे तीन सीटों को उलटा घुमाकर आमने-सामने होकर बैठ सकते हैं। यह भी कितनी सरल और गजब की परिकल्पना है।

मैंने दुनिया के कई देशों की यात्रा की लेकिन मैंने कहीं भी जापानियों जैसी कार्यकुशलता और डिजाइन की गुणवत्ता नहीं देखी। जापानी लगातार अपने उत्पादों और प्रक्रियाओं को बेहतर बनाने के छोटे-से छोटे तरीके सोचते रहते हैं। यह दावा किया जाता है कि जापानियों का यह रवैया अमरीका के एक विशेषज्ञ ने अपने यहां इम्पोर्ट किया था। मेरे लिए इस बात पर विश्वास करना बहुत मुश्किल है। मुझे इस बात पर संदेह नहीं कि डैमिंग नामक एक मैनेजमैंट कंसल्टैंट जापान में आया था ताकि उनके उद्योग को कुछ तकनीकें सिखा सके। मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि छोटी-छोटी बातों से सतत सुधार की यह जापानी संस्कृति और रवैया (जिसे जापानी भाषा में कॉइजनकहा जाता है) अनंतकाल से जापानी समाज में मौजूद है।

165 वर्ष पूर्व तक जापानी शासकों ने जापान के दरवाजे जानबूझ कर बाहरी दुनिया के लिए बंद कर रखे थे। एशियन मानकों से देखा जाए तो  उस जमाने में भी जापान काफी खुशहाल था। इसने भारत से अच्छी नस्ल के चावल का बीज मंगवाया और जरूरत से अधिक चावल उत्पादन करने में सक्षम हो गया। लेकिन जापान ने जो बड़ी-बड़ी छलांगें लगाई हैं वे लगभग सभी की सभी गत एक शताब्दी दौरान ही देखने को मिली हैं।

दुनिया के 50 प्रतिशत से अधिक बुलेट ट्रेन यात्री जापानी हैं। कमाल की बात तो यह है कि गत 50 वर्षों दौरान उनकी बुलेट ट्रेनों में दुर्घटना दर शून्य है। यानी कि ‘शिनकॉन्सन’  में करोड़ों लोगों के सफर करने के बावजूद अभी तक रेल दुर्घटना में एक भी यात्री की जान नहीं गई। यह न तो कोई चमत्कार है और न अच्छी किस्म। यह सब कुछ सोचा-समझा है और सतत प्रयासों, बुद्धि के प्रयोग तथा सावधानी की पैदावार है।

बुलेट ट्रेन अपने आप में आधुनिकता नहीं है। यह आधुनिकता का उत्पाद है। हम यही उत्पाद जापान से आयात करने का प्रयास कर रहे हैं और यदि हम इसमें सफल होते हैं तो यह हमारा सौभाग्य ही होगा लेकिन यह आधुनिकता वैसी चीज नहीं है जिसे बोतल में बंद करके किसी दूसरे देश में भेज दिया जाए। 

हमारे पास जो भी सांस्कृतिक रूप में उपलब्ध उपकरण हैं उन्हीं के बूते हमें यह आधुनिकता विकसित करनी होगी। और यदि हमारे पास ऐसे उपकरण नहीं तो हमें किसी न किसी ढंग से इनकी शिक्षा लेनी होगी। मैं वर्तमान या किसी अन्य सरकार की आलोचना नहीं कर रहा हूं परन्तु मेरे दिमाग में रुक-रुक कर यह विचार कौंधता है कि  हम इस भ्रम में हैं कि आधुनिकता के इन खिलौनों को हासिल करके ही हम एक आधुनिक राष्ट्र बन जाएंगे। यह सच्चाई नहीं है। आधुनिक बनने के लिए समाज को अपना आप अवश्य ही बदलना होगा और यह काम न तो कोई कंसल्टैंट कर सकता है और न ही कोई सरकार।- आकार पटेल


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