मोदी के मिशन 2019 पर भारी पड़ सकती हैं 349 सीटें
punjabkesari.in Thursday, May 24, 2018 - 11:27 AM (IST)
नई दिल्ली: कर्नाटक ने कुमारस्वामी की ताजपोशी के साथ ही भाजपा के सामने एक लंबी लकीर खींच दी है। सारे विपक्षी दलों को एक मंच पर लाकर खड़ा कर दिया है। लिहाजा, विपक्ष एकजुट हुआ तो फिर 13 राज्यों की 349 लोकसभा सीटें भाजपा पर बहुत भारी पड़ सकती हैं। बहाना तो था बुधवार को कुमारस्वामी के शपथग्रहण समारोह का। लेकिन, उसी की आड़ में देश व विभिन्न प्रदेशों के दिग्गज दिल्ली से दूर दक्षिण भारत में मंच पर 2019 में मोदी को शिकस्त देने की तस्वीर तैयार कर रहे थे।
कुमार स्वामी की ताजपोशी में शामिल इन विपक्ष के 11 बड़े नेताओं का लक्ष्य पीएम नरेंद्र मोदी हैं। इन नेताओं को एकजुट आने की वजह भारत की 64 फीसदी आबादी पर भगवा राज है। इसीलिए ये 64 फीसदी बनाम 36 फीसदी की जंग है। ये 20 राज्य बनाम 11 राज्यों की जंग है। 2019 के चुनावों में ये देश 36 फीसदी आबादी पर राज बचाने के लिए संघर्ष करने वाले नेता मोदी के खिलाफ मोर्चेबंदी में जुटे हैं और कर्नाटक में बीजेपी की सरकार गिराने की वजह से इनके हौसले की उड़ान को उम्मीदों के पंख लगे हैं। अगर पूरा विपक्ष एक साथ आ जाए, तो सवाल ये है कि 2019 में बीजेपी के सामने ये मोर्चा कितनी बड़ी चुनौती साबित होगा। 11 राज्यों की 13 पार्टियां मोदी को हराने के लिए एक हो सकती हैं इस बात के संकेत आज कर्नाटक में देखने को मिल गये। लिहाजा,13 राज्यों की 349 सीटों पर बीजेपी को एकजुट विपक्ष से टक्कर मिल सकती है।
तेलंगना-आंध्र में भाजपा का प्लान बी :
आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में लोकसभा की 42 सीटें हैं। 2014 में बीजेपी जब टीडीपी के साथ थी तब 3 सीट मिली थीं। टीडीपी के अलग होने के बाद वाईएसआर कांग्रेस से बीजेपी हाथ मिला सकती है। तेलंगाना में कांग्रेस- टीआरएस के साथ नहीं आने का फायदा भी बीजेपी उठाएगी।
महाराष्ट्र में कांग्रेस-एनसीपी का साथ
2014 में शरद पवार की पार्टी एनसीपी कांग्रेस के साथ ही थी। तब भी मोदी एनडीए को 48 में से 42 सीट मिलीं। इस बार शिवसेना अभी अलग लडऩे की बात कह रही है। ऐसे में अगर भाजपा और शिवसेना के बीच गठबंधन टूट जाए, तो इसका फायदा कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन को मिलने की उम्मीद बढ़ जाएगी। हालांकि, अभी तक शिवसेना ने कोई कड़ा कदम नहीं उठाया है, तो यहां की स्थिति साफ नहीं दिखाई पड़ रहा।
सपा-बसपा व कांग्रेस गठबंधन से बढ़ेगी मुश्किलें
अखिलेश और मायावती ने कांग्रेस के साथ कर्नाटक में मंच साझा किया है। उपचुनावों में बसपा और सपा के बीच बने गठबंधन के कारण भाजपा को फूलपुर और गोरखपुर लोकसभा की सीट गंवानी पड़ी थी और अगर आगे कांग्रेस और अजित सिंह इस गठबंधन में शामिल होते हैं, तो साल 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के लिए मुश्किलें बढ़ जाएगी। हालांकि, अभी इस गठबंधन में कुछ पेंच बाकी है।
बिहार में राजद के साथ आ सकती है कांग्रेस
हालांकि, अभी बिहार में नीतीश कुमार की जदयू के साथ भाजपा का गठबंध राजद के लिए मुश्किलें खड़ी कर रही है लेकिन यहां भी विपक्ष मजबूत होता दिखाई पड़ रहा है। एक तरफ कांग्रेस और राजद के बीच नजदीकी बढ़ रही है, तो दूसरी ओर जीतन राम मांझी की हिंदुस्तान आवामी मोर्चा ने पहले ही राजद का हाथ थाम लिया है।
तमिल राजनीति में संशय बरकरार
तमिलाडु की राजनीति में अभी संशय की स्थिति उत्पन्न हो गई है। एक ओर अन्नाद्रमुक दो खेमे में बंट गई है,तो दूसरी ओर राज्य के दो बड़े अभिनेता कमल हासन और रजनीकांत ने अपनी पार्टी बना ली है। दोनों अभिनेताओं ने अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं। हालांकि, द्रमुक का कांग्रेस के साथ गठबंधन बरकरार रहने की उम्मीद है, लेकिन यहां भाजपा भी एआईएडीएमके के साथ मिलकर चुनाव लड़ सकती है। रजनी-कमल के ऊपर कौन दांव लगाता है, यह दिलचस्प होगा।
बंगाल में ममता व माकपा पर दांव
बंगलूरू में भले ही ममता और सीताराम यचुरी एक मंच पर आए लेकिन दोनों के बीच यहां छत्तीस का आंकड़ा है। यचुरी ने पहले ही कह दिया है कि वे भाजपा को सत्ता से दूर करने के लिए किसी भी कीमत पर ममता बनर्जी के साथ नहीं आएंगे। ऐसे में अगर कांग्रेस ममता के साथ गठबंधन बनाती है, तो माकपा का साथ आना मुश्किल होगा। ऐसे में यहां भाजपा के पास 42 में से केवल 2 सीट ही हंै। यानी पश्चिम बंगाल में भाजपा खोने से ज्यादा पाने की स्थिति में है।
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