सचमुच, ‘किंग’ साबित हुए कुमारस्वामी, आसान नहीं रहा राजनीतिक सफर

punjabkesari.in Wednesday, May 23, 2018 - 06:53 PM (IST)

बेंगलुरू: कर्नाटक जद (एस) प्रमुख एच डी कुमारस्वामी ने चुनाव से पहले दावा किया था कि वह ‘किंगमेकर’ नहीं बल्कि ‘किंग’ होंगे। उनकी यह बात सही साबित हुई और अपनी पार्टी को कर्नाटक विधानसभा चुनाव में मात्र 37 सीटें मिलने के बावजूद वह राज्य के मुख्यमंत्री बने। अपने पिता एवं पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवेगौड़ा से मौके का सर्वश्रेष्ठ इस्तेमाल अपने पक्ष में करने का गुण सीखने वाले कुमारस्वामी ने आज राज्य के मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली। कांग्रेस के समर्थन से जद(एस) ने कर्नाटक में सरकार बना ली लेकिन खुद कुमारस्वामी यह बात कह चुके हैं कि उनके लिए गठबंधन सरकार चलाना बड़ी चुनौती होगा।
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कुमारस्वामी के जीवन पर एक नजरः

  • कुमारस्वामी के बारे में कहा जाता है कि वह अचानक राजनीति में आ गए क्योंकि उनकी पहली पसंद फिल्में थीं।
  • कुमारस्वामी का जन्म हासन जिले के होलेनरसीपुरा तहसील के हरदनहल्ली में हुआ था।
  • उन्होंने अपनी प्रारंभिक स्कूली शिक्षा हासन में हासिल की और उसके बाद उच्च शिक्षा के लिए बेंगलुरू चले आए।
  • विज्ञान विषय में स्नातक करने वाले 58 वर्षीय कुमारस्वामी के लिए राजनीति उनकी पहली रूचि नहीं थी।
  • कन्नड़ अभिनेता डॉ. राजकुमार के प्रशंसक कुमारस्वामी अपने कालेज के दिनों में सिनेमा की ओर आर्किषत हुए और इससे वह बाद में फिल्म निर्माण और वितरण के व्यापार में आए।
  • उन्होंने कई सफल कन्नड़ फिल्मों का निर्माण किया है जिसमें निखिल गौड़ा अभिनीत ‘‘जगुआर’‘ शामिल है। 

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आसान नहीं रहा कुमारस्वामी का राजनीतिक सफरः

  • कुमारस्वामी का राजनीति में प्रवेश 1996 में कनकपुरा से लोकसभा चुनाव लडऩे और जीत दर्ज करने से हुआ।
  • 2004 में वह विधानसभा के लिए चुने गए जब जदएस ने त्रिशंकु विधानसभा होने की स्थिति में कांग्रेस की धर्म सिंह नीत सरकार का समर्थन किया था।
  • इसके बाद 2006 के शुरूआत में कुमारस्वामी ने अपनी पार्टी को खतरा बताते हुए देवेगौड़ा के विरोध के बावजूद सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया। कुमारस्वामी ने इसके बाद भाजपा के समर्थन से सरकार बनाई और मुख्यमंत्री बने।
  • पार्टी में उनका कद इस तेजी से बढ़ा कि इससे उनके परिवार में विवाद उत्पन्न हो गया क्योंकि उस समय तक उनके बड़े भाई एच डी रेवन्ना को गौड़ा का उत्तराधिकारी माना जाता था। उसके बाद पार्टी के वरिष्ठ नेता सिद्धरमैया भी यह महसूस करने लगे कि उन्हें किनारे किया जा रहा है।
  • सिद्धरमैया ने कथित असंतुष्ट गतिविधियां शुरू कर दीं जिसके चलते उन्हें जदएस से निष्कासित कर दिया गया। 

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  • कुमारस्वामी 20-20 महीने सत्ता साझा करने के समझौते का सम्मान करने में असफल रहे जिसके चलते भाजपा 2008 में पहली बार दक्षिण भारत के इस राज्य में सत्ता में आई।
  • जद(एस) उसके बाद सत्ता से बाहर रही। कुमारस्वामी ने हाल में कहा था कि यह चुनाव उनकी पार्टी के लिए ‘‘अस्तित्व की लड़ाई’’ है। इस लड़ाई में अपनी पार्टी को कर्नाटक की सत्ता पर ला चुके कुमारस्वामी के लिए अब एक नई चुनौती मुंह खोले खड़ी है और वह है पांच साल राज्य में गठबंधन सरकार चलाना। 
  • कुमारस्वामी ने इसके बाद 1999 में राज्य की राजनीति में कदम रखते हुए संथानुर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा, हालांकि यहां भी उन्हें हार का स्वाद चखना पड़ा। कुमारस्वामी ने लगातार हो रही हार से विचलित न होते हुए 2004 में रामनगर विधानसभा सीट से चुनाव मैदान में उतरे और जीत की पताका फहराई। 
  • वर्ष 2004 के विधानसभा चुनाव में राज्य में किसी भी पार्टी को बहुमत न मिलने की स्थिति में कांग्रेस और जनता दल (एस) ने गठबंधन सरकार बनाने का निर्णय लिया। 
  • कुमारस्वामी की परिस्थिति के साथ सामंजस्य बिठाने की क्षमता और दोस्ताना प्रकृति के चलते कांग्रेस के धरम सिंह गठबंधन सरकार के प्रमुख के तौर पर निर्विरोध रूप से दोनों दलों की पसंद बने और 28 मई 2004 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। बाद में हालांकि कुछ विवादों की लेकर कुमारस्वामी ने राजनीतिक पैंतरा बदला और उनकी पार्टी के 42 विधायकों ने 28 जनवरी 2006 को गठबंधन सरकार से किनारा कर लिया और सरकार गिर गई। इसके बाद तत्कालीन राज्यपाल टी एन चतुर्वेदी ने कुमारस्वामी को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया। 

2006 में बने मुख्यमंत्री

  • कुमारस्वामी ने चार फरवरी 2006 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और नौ अक्टूबर 2007 तक सत्तासीन रहे। 
  • उनके मुख्यमंत्रित्वकाल में राज्य का विकास दर सभी समय ऊंचा रहा और उन्हें जनता का मुख्यमंत्री कहा जाने लगा। राज्य के पहले मुख्यमंत्री के रूप में कार्यकाल के बाद भी कुमारस्वामी के राजनीतिक जीवन में विभिन्न उतार-चढ़ाव आते रहे। 
  • नवंबर 2014 में वह जद(एस) के कर्नाटक प्रदेश अध्यक्ष बने। इसी वर्ष मई 2018 के राज्य विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी संख्या बल के हिसाब से तीसरी बड़ी पार्टी के रूप में उभरी, लेकिन उन्होंने चुनाव पूर्व सहयोगी दल कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाने का फैसला किया और बदले राजनीतिक समीकरण के बीच अंतत: आज दूसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। 

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Anil dev

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