येदियुरप्पा की तरह जब वीरभद्र सिंह भी महज 6 दिन के लिए बने थे CM

punjabkesari.in Sunday, May 20, 2018 - 02:09 PM (IST)

ऊना (सुरेन्द्र शर्मा): कर्नाटक के येदियुरप्पा ही नहीं बल्कि कई और भी ऐसे मुख्यमंत्री रहे जिन्हें कुछ दिन ही सी.एम. बनने का मौका मिला और अंतत: कुर्सी छोड़नी पड़ी। कुछ ऐसा भी वक्त वीरभद्र सिंह पर भी आया था जब उन्हें महज 6 दिन बाद ही त्याग पत्र देना पड़ा था। यह बात साल 1998 की है, जब विधानसभा के चुनाव हुए तो किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला। वीरभद्र सरकार ने समय से पहले ही विधानसभा भंग कर दी थी और एक वर्ष पहले ही चुनाव करवाने का ऐलान कर दिया था। उन्हें पूर्ण बहुमत मिलने की उम्मीद थी। वर्ष 1993 में पार्टी की अंदरूनी जंग के बीच उन्होंने मुख्यमंत्री पद तो संभाला था लेकिन कांग्रेस के ही कदावर नेता तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री सुखराम से कड़ी चुनौती मिली थी। 


चुनौतियों के बीच वीरभद्र ने 4 वर्ष के बाद ही पुन: चुनाव करवाकर सरकार रिपीट करने का दाव खेला था। जब 1998 में चुनाव हुए उनकी अगुवाई में कांग्रेस पार्टी को 31 सीटें मिली थी। कांग्रेस से अलग होकर पार्टी बनाने वाले सुखराम की हिमाचल विकास कांग्रेस को 4, भाजपा को 29 तो एक सीट पर निर्दलीय के रूप में रमेश ध्वाला चुनाव जीतकर आए थे। बर्फफारी की वजह से ट्राइवल की 3 सीटों के चुनाव बाद में होने थे। किसी को भी स्पष्ट बहुमत न मिलने के चलते मार्च 1998 में प्रदेश में जबरदस्त सत्ता संघर्ष हुआ।  


कांग्रेस पार्टी ने निर्दलीय रमेश ध्वाला का समर्थन लेकर सरकार के गठन का फैसला लिया और वीरभद्र ने 6 मार्च, 1998 को बतौर मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। उन्हें विधानसभा में बहुमत साबित करना था परंतु 12 मार्च, 1998 को इसमें बहुमत न मिलने के चलते इस्तीफा देना पड़ा। इस प्रकार वीरभद्र केवल 6 दिन के लिए ही मुख्यमंत्री बन पाए थे। बाद में ध्वाला ने भाजपा को समर्थन दिया। हिविका ने भी भाजपा को समर्थन दिया, जिससे प्रेम कुमार धूमल चीफ मिनिस्टर बने और 5 वर्ष तक सरकार चली। 


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Ekta

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