सरकार गिरने के साथ ही येदियुरप्पा के नाम दर्ज हो गया अनचाहा रिकार्ड

punjabkesari.in Saturday, May 19, 2018 - 06:20 PM (IST)

नेशनल डेस्क (संजीव शर्मा): कर्नाटक में भाजपा सरकार गिरने के साथ ही बी एस येदियुरप्पा की बदकिस्मती का किस्सा फिर से आम हो गया। येदियुरप्पा तीसरी बार कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए। दक्षिण में भाजपा के गठन से ही येदियुरप्पा भाजपा का बड़ा चेहरा रहे हैं। वे कुशीनगर से चुनाव लड़े और वहां से सात बार जीत चुके हैं। बीच में येदियुरप्पा दो बार सांसद भी रहे। लेकिन आज जो हुआ उसने साबित कर दिया कि वे देश के सबसे बदकिस्मत मुख्यमंत्री हैं। वहीं कर्नाटक में सबसे छोटे कार्यकाल तीन दिन के लिए मुख्यमंत्री बनने का रिकार्ड भी येदियुरप्पा के नाम दर्ज हो गया है।
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  • येदियुरप्पा पहली बार 2007 में  जेडीएस के समर्थन से ही मुख्यमंत्री बने थे। लेकिन तब सात दिन बाद ही कुमारस्वामी ने समर्थन वापस ले लिया था और उनको इस्तीफ़ा देना पड़ा था।  
  • कुछ महीने बाद चुनाव हुआ और येदियुरप्पा सबसे ज्यादा 110 सीटें लेकर आए लेकिन बहुमत के लिए फिर उनको कुछ विधायकों की जरूरत थी। हालांकि तब येदियुरप्पा ने जेडीएस और कांग्रेस के सात विधायकों से इस्तीफ़ा दिलवाकर बहुमत हासिल कर लिया था। लेकिन येदियुरप्पा उस कार्यकाल को भी पूरा नहीं कर पाए थे।

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भष्ट्राचार के मामले में लोकपाल ने उन्हें दोषी करार दिया और येदियुरप्पा को न सिर्फ इस्तीफ़ा देना पड़ा बल्कि जेल भी जाना पड़ा। इस बार भी उनकी बदकिस्मती जारी रही और इस बार तो महज अढ़ाई दिन बाद ही सरकार खोनी पड़ी। इस तरह से येदियुरप्पा न चाहते भी देश के सबसे बदकिस्मत मुख्यमंत्री बन गए जिसने एक नहीं दो नहीं बल्कि तीन बार सरकार बनाने के बावजूद कार्यकाल पूरा नहीं किया।

आपको बता दें कि इससे पहले भी भारतीय इतिहास कई येदियुरप्पा रह चुके हैंः

जगदंबिका पाल (दो दिन)
21 फरवरी 1998 में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन रा’यपाल रोमेश भंडारी ने कल्याण सिंह को मुख्यमंत्री पद से बर्खास्त करने के बाद बिना पर्याप्त विधायकों के समर्थन के ही कांग्रेसी विधायक जगदंबिका पाल को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी थी। अगले दिन हाईकोर्ट ने राज्यपाल के आदेश पर रोक लगा दिया। सदन में जगदंबिका पाल अपना बहुमत साबित नही कर पाये और उन्हें 48 घंटे के अंदर ही पद से हटना पड़ा।

सतीश प्रसाद सिंह (सात दिन)
देश के इतिहास में सबसे कम उम्र  में सतीश प्रसाद सिंह ने 27 जनवरी 1968 को बिहार में मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। उन्हें उस समय कांग्रेसी मुख्यमंत्री महामाया प्रसाद सिन्हा के खिलाफ विधायकों की बगावत के बाद तब तक के लिए मुख्यमंत्री बने रहने का मौका दिया गया जब तक कि बागियों तथा संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के पसंदीदा उम्मीदवार बीपी मंडल संसद से इस्तीपा देकर एमएलसी नहीं चुन लिये जाते। इस तरह एक हफ्ते में उन्हें मंडल के लिए कुर्सी छोडऩा पड़ा। 

जानकी रामचंद्रन (22 दिन)
24 दिसंबर 1987 को जब तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमजी रामचंद्रन का निधन हुआ तो यह तय नहीं था कि उनका उत्तराधिकारी कौन होगा। पार्टी विधायकों के  एक गुट ने उनकी पत्नी के पक्ष में राज्यपाल को समर्थन पत्र भेज दिया। दूसरी ओर एमजीआर की निकट सहयोगी जयललिता भी उत्तराधिकार के लिए दावेदार थीं। रा’यपाल एसएल खुराना ने 7 जनवरी को जानकी रामचंद्रन को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी लेकिन वे सदन में बहुमत साबित नहीं कर पायीं और 28 जनवरी को उन्हें पद से हटना पड़ा। प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा।
 


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vasudha

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