कैप्टन अमरेन्द्र की बढ़ सकती हैं मुश्किलें,लैजिस्लेटिव असिस्टैंट फॉर्मूले को नहीं मिल रहा समर्थन

punjabkesari.in Friday, Apr 27, 2018 - 08:24 AM (IST)

जालंधर (चोपड़ा): मुख्यमंत्री कै. अमरेन्द्र सिंह द्वारा मंत्रिमंडल विस्तार में कुर्सी न मिल पाने को लेकर विधायकों में रोष लगातार बढ़ता ही जा रहा है जिसे शांत करने के लिए कांग्रेस सरकार द्वारा लगातार भरसक प्रयास किए जा रहे हैं। मुख्यमंत्री द्वारा मंत्री न बन पाने वाले विधायकों को एडजस्ट करने को लैजिस्लेटिव असिस्टैंट की नई पोस्ट क्रिएट करने के प्रस्तावित फैसले को विधायकों का पर्याप्त समर्थन न मिलने के कारण यह फार्मूला भी विफल होता दिखाई देता है। इसके अलावा कैप्टन सरकार में एक खौफ भी व्याप्त हो रहा है जिससे बचने के लिए सरकार इस बात को यकीनी बनाना चाहती है कि लैजिस्लेटिव असिस्टैंटों की नियुक्ति कहीं कानूनी विवाद में न फंस जाए क्योंकि अगस्त 2016 में पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने पंजाब के मुख्य संसदीय सचिवों की नियुक्ति को इस आधार पर रद्द कर दिया था कि सी.पी.एस. बनाना संविधान का उल्लंघन है।

मंत्री पद की दौड़ में लगे एक वरिष्ठ विधायक का मानना है कि लैजिस्लेटिव असिस्टैंट बने विधायकों के पास कोई स्वतंत्र प्रभार नहीं होगा। उन्हें अभी तक यही फीडबैक मिला है कि इस पद को हासिल करने वाले विधायकों को मौजूदा समय में जो वेतन व भत्ते मिल रहे हैं, उसमें कोई बढ़ौतरी नहीं होगा और न ही कोई नई सुविधा मिलेगी। एक अन्य विधायक का कहना है कि पूर्व समय के दौरान बनाए जाते मुख्य संसदीय सचिवों की तरह लैजिस्लेटिव असिस्टैंटों को सरकार की योजनाओं को लागू करने का काम नहीं मिलेगा।

उन्होंने बताया कि लैजिस्लेटिव असिस्टैंट केवल विधानसभा के कामों को देखेंगे, क्योंकि इनकी नियुक्ति विधानसभा अध्यक्ष द्वारा की जाएगी और वहां ही उन्हें कार्यालय दिया जाएगा। लैजिस्लेटिव असिस्टैंट को कोई अधिकार व प्रभाव न होने के कारण अधिकतर विधायकों को अब यह पद एक क्लर्क की भांति दिखाई देने लगा है। एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि सरकार अभी अध्ययन कर रही है कि क्या किन्हीं अन्य राज्यों में लैजिस्लेटिव असिस्टैंट बनाए गए हैं। उक्त अधिकारी ने कहा कि अगर इस प्रस्ताव को मंजूरी मिल गई तो इसे 30 अप्रैल को निर्धारित मंत्रिमंडल की अगली बैठक में पेश किए जाने की संभावना है परंतु अगर प्रस्ताव पास होने के बाद भी विधायकों का इस संबंधी समर्थन हासिल न हुआ तो पार्टी में फैले असंतोष को रोकने की कवायद में जुटे मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। 

विधायकों के बोर्डों और निगमों के चेयरमैन बनने के बढ़े क्रेज से कांग्रेस में बढ़ेगी अंतर्कलह
कै. अमरेन्द्र मंत्रिमंडल के दूसरे विस्तार में मंत्री पद की दौड़ में लगे 3 दर्जन के करीब वरिष्ठ विधायकों में अब पंजाब के निगमों व बोर्डों के चेयरमैन व प्रमुख बनने का क्रेज बढ़ गया है। मंत्री पद की दौड़ में अग्रणी रहे एक विधायक का कहना है कि लैजिस्लेटिव असिस्टैंट बनने की बजाय उनके लिए किसी बोर्ड या निगम का प्रमुख बनना ही उनके लिए बेहतर विकल्प होगा, क्योंकि पंजाब सरकार के 42 के करीब निगमों व बोर्डों के चेयरमैनों की नियुक्तियां बाकी हैं।

चेयरमैन बनने से एक तो उन्हें सबंधित विभाग की पावर मिलेगी वहीं उनका जनता के साथ सीधा संबंध भी बना रहेगा। परंतु अगर इन पोस्टों पर विधायकों को एडजस्ट किया जाता है तो कांग्रेस के अंदर अंतर्कलह बेहद बढ़ जाएगी, क्योंकि 2017 के चुनावों के दौरान पार्टी में उठी बगावत व गुटबाजी को रोकने की खातिर राहुल गांधी व कै. अमरेन्द्र ने ऐलान किया था कि विधायक टिकट पाने वाले किसी नेता को बोर्ड अथवा निगम की चेयरमैनी नहीं दी जाएगी बल्कि विधायक के लिए जीत का मार्ग प्रशस्त करने वाले टिकट के अन्य दावेदार ही चेयरमैनी के हकदार होंगे।

इससे कांग्रेस के टिकट दावेदारों की फौज ने बगावत न करते हुए एकजुट होकर चुनाव लड़ी जिसके कारण कांग्रेस 117 में से 77 सीटों पर ऐतिहासिक जीत हासिल कर सकी। अगर अब चेयरमैनियों की बांट में उक्त कांग्रेस नेताओं की अनदेखी हुई तो 2019 के लोकसभा चुनावों के लिए पार्टी की राहें बेहद कांटों से भरी हो जाएगी। 


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Anjna

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