ऑफ द रिकॉर्डः 30 वर्षों के बाद चीनी चक्कर, मोदी को चीन यात्रा की जल्दी क्यों

punjabkesari.in Thursday, Apr 26, 2018 - 08:21 AM (IST)

नेशनल डेस्कः अपना 56 इंच का सीना थपथपाने के बाद जब डोकलाम विवाद हुआ तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को यह महसूस करने में लम्बा समय लगा कि इस तरह की हेकड़ी चीन के साथ नहीं चलेगी। नेपाल, माले, बंगलादेश, भूटान, श्रीलंका और पाकिस्तान में चीन के लगातार बढ़ते दबदबा से मोदी चिंतित हुए और वह चीनी सीमाओं पर शांति बनाने के इच्छुक रहे हैं। चीन के मामलों के जानकार पूर्व विदेश सचिव गोखले ने 3 महीने पूर्व चीन की यात्रा की। उसके बाद सख्त स्वभाव के अजीत डोभाल ने चुपचाप चीन की यात्रा की। उसके उपरांत विदेश मंत्री सुषमा स्वराज पेइचिंग गईं। इतने प्रयास भी काफी नहीं हुए तो मोदी ने रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण को वहां भेजा कि वह पश्चिमी देशों से बड़े पैमाने पर रक्षा साजो-सामान की खरीद का स्पष्टीकरण दें।

अंत में यह घोषणा की गई कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 27-28 अप्रैल को चीन की यात्रा करेंगे। यद्यपि उनका जून में चीन में एस.सी.ओ. शिखर में भाग लेने का कार्यक्रम था। इस संबंध में इतनी जल्दी क्यों? सूत्रों का कहना है कि मोदी चीनी राष्ट्रपति जिनपिंग के साथ वुहान शिखर सम्मेलन चाहते हैं ताकि सभी गलतफहमियों को दूर किया जा सके। स्व. राजीव गांधी ने भी 1988 में अपने शासन के चौथे वर्ष में अचानक चीन की यात्रा की थी और 1989 में वह सत्ता से बाहर हो गए। यह यात्रा राजीव गांधी के लिए भाग्यशाली साबित नहीं हुई। यद्यपि इसे ऐतिहासिक बताया गया था जब राजीव गांधी ने 1988 में चीन के नेता डेंग के साथ मुलाकात की थी।

मोदी और जिनपिंग द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत बनाने के लिए एक नई रूपरेखा तैयार करेंगे और विवादों व मतभेदों को दूर करने की कोशिश करेंगे। विडम्बना यह है कि मोदी सरकार ने उस समय इस बात को लेकर कड़ी आपत्ति जताई थी जब राहुल गांधी ने डोकलाम विवाद के संबंध में भारत में स्थित चीनी राजदूत के साथ मुलाकात की थी। अब वही चीनी राजदूत मोदी-जिनपिंग मुलाकात का आयोजन करवाने में अहम भूमिका निभा रहे हैं।


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